उदयपुर। अपनी स्वच्छता और खूबसूरती के लिए देशभर में विख्यात झीलों की नगरी उदयपुर नगर निगम की उदासीनता और गलत निर्णयों के चलते गंदगी का दंश झेल रही है। शहर में जब से कचरा पात्र हटाए गए हैं, तब से ही सफाई व्यवस्था दम तोड़ चुकी है। आलम यह है कि उदयपुर में जिस किसी क्षेत्र से गुजरेंगे वहां पर हमें खुले में पड़ा कचरे का ढेर आपको दिख जाएगा। कचरा पात्र नहीं होने से आज शहरवासी खुले में कचरा फेंकने को मज़बूर है। क्योंकि नौकरी और घर के दूसरे कामों के चलते कचरा एकत्र करने आने वाली गाड़ी में कई लोग कचरा नहीं फेंक पाते हैं। ऐसे में वे उन जगहों पर खुले में कचरा फेंक देते हैं, जहाँ कभी कचरे के कंटेनर हुआ करते थे। ऐसे में अगर इन जगहों पर पुनः कंटेनर स्थापित कर दिए जाए तो शहर में खुले में कचरे से निजात मिल जाए। इसी को लेकर उदयपुर शहर के युवा सिद्धार्थ सोनी और उनके साथियों ने एक अनूठी पहल कर अपना विरोध दर्ज करवाया है।
कचरा पात्र वाली जगहों का किया नामकरण
उदयपुर के युवा सिद्दार्थ सोनी और उनकी टीम ने शहर में ऐसे कचरा पात्रों को चिन्हित कर उनका नामकरण किया है। इनमें मल्लातलाई, खांजीपीर, अम्बामाता, हाथीपोल सहित करीब 15 से अधिक ऐसे क्षेत्रों का चयन किया है, खुले में कचरा फेंका जाता है। टीम ने इन कचरा पात्रों वाली जगहों को मेयर, उप महापौर, विधायक और नगर निगम कचरा पात्र नाम देकर अपना विरोध दर्ज कराया है। टीम के सिद्धार्थ सोनी ने बताया कि पिछले करीब 2 वर्षों में उदयपुर में खुले में कचरा फेंका जा रहा है। इससे न सिर्फ पर्यटकों के सामने उदयपुर की छवि धूमिल हो रही है। बल्कि आसपास के लोगों को भी दुर्गन्ध और गंदगी का सामना करना पड़ रहा है। अगर इन जगहों पर एक बार फिर कंटेनर स्थापित कर दिए जाए तो खुले में कचरा नहीं पड़ा रहेगा जिससे गंदगी नहीं फैलेगी।
हड़ताल की चेतावनी
युवा सिद्दार्थ सोनी ने बताया कि नगर निगम को नींद से जगाने के लिए उदयपुर हितैषियों की ओर से यह अभियान शुरू किया गया है। जब तक नगर निगम इन जगहों पर कंटेनर नहीं रखवाता, हमारा अभियान जारी रहेगा। आने वाले दिनों में हम नगर निगम के बाहर हड़ताल करेंगे।
हटाना था कचरा, हटा दिए कंटेनर, नतीजा आपके सामने
दरअसल, नगर निगम के द्वारा जिस फर्म को घर घर कचरा संग्रहण का ठेका दिया गया था। उस करार में ये भी शामिल था कि कचरा संग्रहण के बाद हर वर्ष निश्चित संख्या में कंटेनर हटाए जाएंगे और आने वाले तीन वर्षों में उदयपुर को कंटेनर फ्री कर दिया जाएगा। अगर कंटेनर नहीं हटते हैं तो निगम के द्वारा उस फर्म पर पैनल्टी लगाई जाएगी। इसके पीछे यह तर्क था की घर घर कचरा संग्रहण से लोग बाहर कचरा फेंकना बंद कर देंगे और कंटेनर की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। लेकिन हुआ यूँ कि नौकरी, समय का तालमेल आदि के चलते सभी लोग कचरे को कचरा ले जाने वाले गाड़ी में फेंकने में असमर्थ रहे। लेकिन फर्म के द्वारा करार के तहत हर वर्ष कंटेनर हटा लिए गए और कचरा सड़कों पर ही फेंका जाने लगा। जिस पर निगम ने कोई ध्यान नहीं दिया।
यह था नियम
नियमानुसार अगर आप नौकरी पेशा है तो कचरे की थैली को घर के बाहर रख कर जा सकते हैं। कचरा गाड़ी में मौजूद हेल्पर की यह जिम्मेदारी थी कि वह घर के बाहर से कचरे को गाड़ी में डाले। लेकिन न तो निगम की ओर से लोगों को इस तरह जागरूक किया गया और न ही हेल्पर ने इस तरह की जिम्मेदारी निभाई। नतीजन कचरा सड़कों पर ही फेंका जाने लगा।