आज के इस वैश्विक युग में समानता और असमानता का दौर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। शिक्षाविदों के लिए यह चुनौती है परन्तु अच्छे नागरिक बनाने की जिम्मेदारी समाज और शिक्षाविदों की समान रूप से है। यह बात मुख्य अतिथि माननीय न्यायाधिपति सज्जनसिंह कोठारी लोकायुक्त राजस्थान ने ‘सामाजिक न्याय हेतु शैक्षिक नेतृत्व के मुद्दों एवं चुनौतियों’ को लेकर सोमवार को हरिदासजी की मगरी स्थित होटल चूंडा पेलेस में शुरू हुए तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में कही।
श्री कोठारी ने कहा कि हमें ‘क्या होता है,’ के साथ-साथ ‘क्या नहीं होना चाहिए’ पर भी ध्यान देना चाहिए। बच्चों में विद्यालय स्तर से ही सामाजिक न्याय के प्रति जागरूकता प्रदान की जाए और सामाजिक न्याय के लिए शैक्षिक नेतृत्व को बढावा देना चाहिए। उन्होंने आर्थिक एवं सामाजिक स्तर पर विकास के संदर्भ में सामाजिक न्याय की भूमिका को विस्तार से समझाते हुए सरकार तथा शैक्षिक संस्थाओं को प्रशासकों और शिक्षकों को जवाबदेही सुनिश्चित करने की बात कही। उन्होंने मूल्यों को सामाजिक न्याय के संदर्भ में विकसित करने पर बल दिया। श्री कोठारी ने कहा कि वैश्चिक सामाजिक न्याय के मायने कहीं ज्यादा हैं जिसमें आमदनी, स्वास्थ्य व शिक्षा मुख्य लक्ष्य होने चाहिए। सभी को सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से समान अधिकार उपलब्ध हो। न्यूनतम मापदंड तय होने के साथ ही पारस्परिक जिम्मेदारी सुनिश्चत होने से इस विसंगति से उभरा जा सकता है।
सम्मेलन में शिक्षा जगत की देश-विदेश की 200 नामी हस्तियां विभिन्न मुद्दों पर गहन विचार-मंथन करने जुटी हैं। उद्घाटन सत्र में कनाडा के कॉमनवेल्थ काउंसिल ऑफ एज्युकेशन एडमिनिस्ट्रेशन एवं मैनेजमेंट के अध्यक्ष डॉ. केन ब्रिन, रेडफोर्ड विश्वविद्यालय वर्जिनिया के प्रो. ग्लेन टी. मार्टिन, आध्यत्मिक हीलिंग संस्थान के संस्थापक डॉ. लाज उतरेजा, ओहियो विवि अमेरिका के एसीई प्रो. एसबी सिंह, आईएएसई विवि सरदारशहर के कुलपति डॉ. दिनेश कुमार, एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. उमाशंकर शर्मा एवं सचिव आरसीईएम की सचिव डॉ. इन्दू कोठारी ने सामाजिक न्याय के क्षेत्र में प्रो. हेमलता तलेसरा को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड ‘एजुकेशनल लीडरशिप फॉर सोशल जस्टिस’ से सम्मानित किया।
राजस्थान शैक्षिक प्रशासन एवं प्रबंध समिति (आरसीईएएम) की ओर से आयोजित सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में प्रो. एसबी सिंह ने कहा कि एजुकेशन सिस्टम को आगे बढाने के लिए शिक्षाविद् प्रमुख भूमिका निभाएं। शिक्षकों की जवाबदेही है, लेकिन उनके अधिकार सीमित हैं। शिक्षा के माध्यम से प्रत्येक नागरिक को पूर्णतः सामाजिक न्याय के प्रति जागरूक किया जा सकता है। भारतीय शिक्षक विश्व गुरू के रूप में अपनी पहचान बना कर राह दिखाएं। साथ ही तक्षशिला, नालंदा के आदर्शों को अपना कर शिक्षकों को अपने अधिकारों व दायित्वों को समझना होगा। शिक्षक ही वे लोग हैं जो आगे बढकर उच्च अधिकारियों को सही दिशा दिखा सकते हैं।
सीसीइएएम के प्रेसिडेंट केन ब्रिन ने शिक्षा, उच्च शिक्षा तथा अन्य कई माध्यमों से सामाजिक न्याय को प्राप्त करने में सीसीईएसम की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शैक्षिक प्रशासन के क्षेत्र में 2020 तक की योजना बना कर सामाजिक न्याय के क्षेत्र में परिवर्तन लाने का प्रयास किया जा रहा है। सामाजिक न्याय एवं शैक्षिक नेतृत्व के क्षेत्र में शोध की अत्यधिक आवश्यकता है। ज्ञान प्राप्ति और आदान-प्रदान के माध्यम से शैक्षिक नेतृत्व को सामाजिक न्याय में अपनी विस्तृत भूमिका निभाने के लिए तैयार किया जाना चाहिए।
महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. उमाशंकर शर्मा ने कहा कि शिक्षा प्रशासन और शिक्षकों के कार्य एवं उत्तरदायित्वों को नए आधार पर शिक्षक नेतृत्व की परिभाषाएं विकसित करनी होंगी। इसमें नैतिक आधार का भी समावेश जरूरी है। समाज को कक्षा तथा विद्यालयों के अंदर एवं बाहर परिवर्तन लाकर सामाजिक नेतृत्व के माध्यम से सामाजिक न्याय को विकसित किया जा सकता है। इसके लिए नए शोध एवं विश्लेषण की आवश्यकता है।
सेमिनार के निदेशक डॉ. दिनेश कुमार ने कहा कि हमें विश्व में पुनः वसुधैव कुटुम्बकम की पुनर्स्थापना शिक्षा के माध्यम से करनी होगी ताकि सभी को समान रूप से सामाजिक न्याय मिल सके।
प्रो. हेमलता तलेसरा ने संगोष्ठी के उद्द्ेश्य एवं विषयों की व्याख्या करते हुए इसके माध्यम से सामाजिक न्याय के क्षेत्र में परिवर्तन लाने के प्रयासों के बारे में बताया। प्रो. इंदू कोठारी ने आभार व्यक्त करते हुए आह्वान किया कि शिक्षाविदों को सामाजिक न्याय के लिए चिरस्थायी समाज के विकास में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। शिक्षा एवं शैक्षिक नेतृत्व के माध्यम से परिवर्तन लाया जा सकता है। इस अवसर पर डॉ. वाशिफ मरसड, डॉ. दिनेश कुमार, डॉ. उषाशी , डॉ. वी.एम. शशिकुमारी, डॉ. राजेश मंत्री, डॉ. मनीष भटनागर, डॉ. कुमुदचन्द्र दवे, डॉ. भाती माटे, डॉ. सुधा सत्या, डॉ. निम्मी मरिया, डॉ. नसरीन आदि मौजूद थे।
उद्घाटन सत्र के पश्चात दोपहर 12 से 1 बजे रेडफोर्ड विवि वर्जिनिया के प्रो. ग्लेन टी मार्टिन का व्याख्यान तथा प्रश्नोत्तरी सत्र हुआ। इसकी अध्यक्षता आध्यात्मिक हिलिंग संस्थान के संस्थापक डॉ. लाज उतरेजा ने की। तकीनीकी सत्रों में स्कूली शिक्षा में सुधार, अध्यापक शिक्षा के माध्यम से वैश्विक सामाजिक न्याय, शिक्षा में तकनीकी
गरीबी व आधारभूत परिवर्तन, महिला शिक्षा विषयों पर ऑस्ट्रेलिया के डॉ. डेविड गुर, द.अफ्रीका के डॉ. ले.बी रामरथन, गुवाहाटी के डॉ. डुलुमनी गोस्वामी, नागपुर की डॉ. उषाशी गुहा, मालपुरा गुजरात की डॉ. उषा बक्षी, नाइजीरिया के वीओ इगबिने वेक्स, मुम्बई की डॉ. हर्षा मर्चेन्ट, लाडनूं के डॉ. मनीष भटनागर, नइजीरिया के प्रो. फेलिशिया, द. अफ्रीक के डॉ. इबाना नेकर, केनेडा के डॉ. किरीक एंडरसन, मुम्बई के डॉ. विजयमूर्ति, बडदा के डॉ. पुष्पनाधम, आस्ट्रेलिया के नाडी जरनी, केरल के एन.के वेणुगोपालन, नई दिल्ली की डॉ. अदिति सरन तथा मुम्बई की डॉ. मिंटू सिन्हा ने मंथन किया।
सदस्य राजकुमार अग्रवाल ने बताया कि मंगलवार 20 सितंबर को सत्रारंभ के मुख्य वक्ता प्रो. अम्बिकाप्रसाद शर्मा होंगे जबकि अध्यक्षता केनेडा के मेमोरियल विश्वविद्यालय के डीन प्रो. किरिक एंडरसन करेंगे। द्वितीय सत्र में इरविट राष्ट्रीय विवि जार्डन के प्रो. वासिफ मरसड मुख्य वक्तव्य देंगे। दोपहर 12 से 1 बजे सामाजिक विभिन्नता विषय पर परिचर्चा होगी।
सम्मेलन में भाग लेने आए अतिथियों के साक्षात्कार
पूरे विश्व का हो एक संविधान
सम्मेलन में भाग लेने आये रेडफोर्ड विश्वविद्यालय वर्जीनिया के प्रो. ग्लेन मार्टिन ने कहा कि सभ्यताओं के मिलन का वक्त आ गया है। उन्होंने 20वीं और 21वीं सदी के विचारों के सम्मिश्रण से तैयार ‘कंस्टीट्यूशन फोर द फेडरेशन ऑफ अर्थ’ की अवधारणा प्रस्तुत की। प्रो. ग्लेन ने बताया कि पूरा विश्व वर्तमान में असमानताओं से भरा पडा है। वैश्विक स्तर पर हर क्षेत्र में होड मची है। संसाधनों पर अमीरों के आधिपत्य का विस्तार होता जा रहा है। ऐसे में संयुक्त राष्ट्रसंघ जैसी एजेंसी की महत्ता भी कम हो रही है। इसका संविधान फिर से लिखे जाने की जरूरत है। सभ्यताओं के विकास क्रम में हम आज जिस प्रतिस्पर्धी युग में पहुंच गए हैं, वहां पर एक ‘विश्व संविधान’ की जरूरत है। केवल 2500 साल पहले हमने उस जीवन को जीना सीखा जिसका परिष्कृत रूप हम आज जी रहे हैं। हम अब तक सफलतापूर्वक साथ रहना नहीं सीखे हैं। हमारे पूर्वाग्रह, हमारे आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक हित हमें ऐसा करने से रोक रहे हैं। ऐसे में हम सबको ऐसे वातावरण में लाएं जहां पर विश्व की सभी समस्याओं को एक साथ मिल कर सुलझा सकें। शांति व निरस्त्रीकरण की बात कर सकें।
उन्होंने इसके लिए द वर्ल्ड पार्लियामेंट, द वर्ल्ड एक्जीक्यूटिव, द वर्ल्ड एडमिनिस्ट्रेशन, द वर्ल्ड ज्यूडिशियरी संकाय बनाने का सुझाव दिया। प्रो. ग्लेन मानते हैं कि इनमें हर देश को उसके क्षेत्रफल के हिसाब से प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। यही संगठन विश्व की समस्या समस्याओं का समाधान भी सुझाए। हम नए विश्व की चौखट पर खडे हैं, हमें अपने समय के विश्व को शांति, समृद्धि, समरसता दिलाने के लिए यह सब करना ही होगा। भारत-पाकिस्तान रिश्तों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यह अचरज की बात है कि दोनों ने क्षेत्र में शांति स्थापना के लिए अपने पास परमाणु हथियार जमा कर रखे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का जिक्र करते हुए कहा कि जब वे जापान में हिरोशिमा त्रासदी में मारे गए लोगों पर संवेदना जता रहे थे तब उन्हीं के देश में नई सदी के उन्नत हथियारों का खरबों रूपए का समझौता किया जा रहा था। हिंसा कहीं भी हो, मानवता विरोधी है।
जागरूकता से मिलेगा सामाजिक न्याय ः गुहा
महाराष्ट्र नागपुर से आईपीआर एट्रोनी एवं एडवोकेट्स उषोशी गुहा ने कहा कि लोगों में जागरूकता नहीं है। इसके लिए शैक्षिक प्रबंधन आवश्यक है। राजनीति, प्रशासन एवं शिक्षा में समन्वय और योजनागत नीति बनाकर हर देश में लागू किया जाना चाहिये। सम्मेलन में इसी की शुरूआत उदयपुर से होगी जिसमें कुलपति एवं अन्य विद्वजन मंथन कर नीति तय करेंगे। लगभग सभी देशों में लैंगिक, गरीबी, पर्यावरण, सांस्कृतिक, भौगोलिक, संसाधनों जैसे विषयों पर असमानताएं हैं जिन्हें आपसी सामन्जस्य से दूर किया जा सकता है।
सामाजिक न्याय के लिए समरसता जरूरी ः रामरथन
दक्षिण अफ्रीकी की क्वाजुलु नताल यूनिवर्सिटी के सह आचार्य प्रो. लेबी रामरथन ने कहा कि सामाजिक न्याय की शुरूआत स्कूल से होनी चाहिये। साथ ही स्कूल एज्युकेशन के बाद सभी को समान अवसर वैश्विक स्तर पर मिलने चाहिये। वर्तमान में सामाजिक न्याय नहीं हो पा रहा है क्योंकि सभी मंचों पर पारस्परिक विरोध है। आप स्कूल या कहीं पर भी जाएं वर्गों में समरसता नहीं है। ऊंच-नीच के भेदभाव को खत्म कर इस विसंगति को समाप्त किया जा सकता है।
वसुधैव कुटुम्बकम की पुनः स्थापना हो ः डॉ. दिनेश
आईएएसई विवि सरदारशहर के कुलपति डॉ. दिनेश कुमार ने कहा कि सामाजिक अन्याय पढेलिखे व्यक्तियों में अधिक है जबकि अनपढों में स्वाभाविक रूप से चल रहा है। पुनः वसुधैव कुटुम्बकम की स्थापना कर मूल्यों की स्थापना शिक्षा के माध्यम से हों। अंतर्राष्ट्रीय स्तर सामाजिक न्याय एवं शिक्षा के नैतृत्व पर कार्य हो और विश्व में जो भी विसंगतियां हैं उन्हें शिक्षा के माध्यम से ठीक किया जाए।
सम्मेलन में उपस्थित प्रतिभागी
संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, इंग्लैण्ड, यूके, आस्ट्रेलिया, दक्षिणी अफ्रीका, कीनिया, नाइजेरिया, युगाण्डा तथा जार्डन और राजस्थान के अलावा केरल, उडीसा, गोआ, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, कर्नाटक, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी बंगाल, मणिपुर, आन्ध*प्रदेश, आसाम, उत्तराखंड से शिक्षाविद सम्मेलन में शामिल हो रहे हैं।
आयोजक संस्थानों में मुख्य आयोजक संस्थान राजस्थान शैक्षिक प्रशासन एवं प्रबंधन समिति है। सहायक आयोजकों में बेसिक शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय, गांधी विद्यामंदिर सरदारशहर, महाराणा प्रताप कृषि एवं तकनीकी विश्विविद्यालय उदयपुर, श्रीमती के.बी. दवे कॉलेज ऑफ एज्युकेशन पिलवई, मेहसाणा एवं कॉमनवेल्थ काउंसिल ऑफ एज्युकेशनल एडमिनिस्ट्रेशन एवं मैनेजमेंट शामिल हैं।
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