उदयपुर: वर्ल्ड एपिलेप्सी डे पर पारस हेल्थ के मेडिकल एक्सपर्ट्स ने मिर्गी को लेकर जागरूकता बढ़ाने का आग्रह किया। मिर्गी भारत में 12 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित करती है और यह सबसे आम न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर में से एक है। इसके बावजूद, डायग्नोसिस में देरी और गलत धारणाओं के कारण इसका सही इलाज नहीं हो पाता। मिर्गी मस्तिष्क की एक बीमारी है, जो असामान्य इलेक्ट्रिकल गतिविधि के कारण दौरे पैदा करती है। ये दौरे हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकते हैं। हालांकि, हर दौरा मिर्गी का संकेत नहीं होता, इसलिए सही समय पर चिकित्सा जांच आवश्यक है।
पारस हेल्थ उदयपुर में डॉ. अजीत सिंह, न्यूरोसर्जन ने कहा, "हमने देखा है कि कई बार दौरे पड़ने के बाद ही डॉक्टर की मदद लेने वाले मरीजों की संख्या बढ़ रही है। जल्दी डायग्नोसिस कॉम्प्लिकेशन को रोक सकता है और मिर्गी से पीड़ित लोगों के लिए लॉन्ग टर्म परिणामों में सुधार कर सकता है।” भारत में मिर्गी को लेकर कई मिथक और गलत धारणाएं हैं। कुछ लोग इसे दैवीय कारणों से जोड़ते हैं, जिससे मरीजों को समय पर डॉक्टर की मदद लेने में कठिनाई होती है। जागरूकता से लोग लक्षणों को पहचानकर सही समय पर इलाज़ ले सकते हैं। मिर्गी के लगभग 70% मामलों को सही दवा और इलाज़ से नियंत्रित किया जा सकता है। कुछ मरीजों को लाइफस्टाइल और डाइट में बदलाव या सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। हालांकि, दवा का सही से पालन करना बेहद जरूरी है, क्योंकि अधूरे इलाज से दौरे फिर हो सकते हैं।
अगर किसी को दौरा पड़ता है, तो उसके आसपास के लोगों को शांत रहना चाहिए और उसे सुरक्षित रखना चाहिए। पीड़ित को पकड़ने या मुंह में कुछ डालने से बचें। अधिकतर दौरे कुछ मिनट में ठीक हो जाते हैं, लेकिन अगर यह पांच मिनट से अधिक चले तो तुरंत मेडिकल मदद लें।
पारस हेल्थ उदयपुर के डॉ.तरुण माथुर, न्यूरोलॉजी ने कहा, "मिर्गी का इलाज संभव है, लेकिन समाज में फैली भ्रांतियां इसे चुनौतीपूर्ण बना देती हैं। समय पर निदान और सही इलाज से मरीज़ सामान्य जीवन जी सकते हैं। हमें जागरूकता बढ़ाकर मिर्गी को सामान्य बीमारियों की तरह देखना चाहिए।" इसके अलावा, पारस हेल्थ उदयपुर के डॉ.मनीष कुलश्रेष्ठा, न्यूरोलॉजी, ने कहा, "माता-पिता, शिक्षकों और देखभाल करने वालों को शुरुआती लक्षण पहचानने चाहिए ताकि वे बिना देरी डॉक्टर से संपर्क करें। किसी को भी समाज के डर से चुपचाप पीड़ित नहीं होना चाहिए।"
पारस हेल्थ उदयपुर के डॉक्टर उदय भौमिक, न्यूरोसर्जन ने मुख्य बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा, “मिर्गी से पीड़ित कई लोग काम कर सकते हैं और सामान्य लोगों की तरह योगदान दे सकते हैं। एंप्लॉयर्स और सहकर्मियों को इस बीमारी के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए ताकि पीड़ितों के लिए समान अवसर मिले।”
इसके अलावा पारस हेल्थ उदयपुर में डॉ. अमितेन्दु शेखर, न्यूरोसर्जन, ने समय पर इलाज़ के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया, "जितनी जल्दी मिर्गी का डायग्नोसिस किया जाता है, इलाज़ का प्रभाव उतना ही ज्यादा होता है। माता-पिता, शिक्षकों और देखभाल करने वालों को शुरुआती लक्षणों के बारे में पता होना चाहिए ताकि वे बिना देरी किए डॉक्टर से मदद ले सकें। किसी को भी फैसले के डर से चुपचाप पीड़ित नहीं होना चाहिए।” भले ही चिकित्सा क्षेत्र में प्रगति हुई है, लेकिन मिर्गी से पीड़ित लोग अभी भी शिक्षा, रोजगार और समाज में भेदभाव का सामना करते हैं। विश्व मिर्गी दिवस पर हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स और जागरूकता समूह लोगों से अपील करते हैं कि वे मिथकों को दूर करने में योगदान दें और मिर्गी से पीड़ित लोगों के प्रति सहानुभूति रखें। सटीक जानकारी और सहयोग से हम मिर्गी से प्रभावित लोगों का जीवन बेहतर बना सकते हैं।