नई दिल्ली। भारतीय लोकतंत्र के सफल संचालन में कांग्रेस पार्टी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, लेकिन वर्तमान में पार्टी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। राजनीतिक रणनीतिकार अतुल मलिकराम का मानना है कि कांग्रेस को संगठनात्मक ढांचे में व्यापक बदलाव की आवश्यकता है, विशेष रूप से युवाओं को नेतृत्व में लाने की जरूरत है।
दिल्ली विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की लगातार तीसरी हार ने पार्टी की गिरती साख को उजागर कर दिया है। कभी शीला दीक्षित के नेतृत्व में लगातार 15 वर्षों तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस आज शून्य सीटों पर सिमट गई है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए मलिकराम ने कहा कि हाईकमान को कांग्रेस की गिरती स्थिति दिखाई क्यों नहीं दे रही?
पिछले एक दशक में 50 से अधिक वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी छोड़ दी, जिनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया, अशोक चव्हाण, मिलिंद देवड़ा, गुलाम नबी आज़ाद और कपिल सिब्बल जैसे बड़े नाम शामिल हैं। यह लगातार होती टूटन कांग्रेस के लिए घातक साबित हुई है। इसके अलावा, पार्टी में युवा नेताओं और जमीनी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भी इसकी कमजोरी बनती जा रही है।
मलिकराम ने सुझाव दिया कि कांग्रेस को संगठनात्मक बदलाव के तहत 50 वर्ष से कम उम्र के नए नेताओं को आगे लाना चाहिए और पार्टी को ‘आलाकमान’ संस्कृति से बाहर निकलना होगा। गांधी परिवार को आगामी लोकसभा चुनाव तक केवल जमीनी स्तर पर जनता से जुड़ने पर ध्यान देना चाहिए।
इसके साथ ही, कांग्रेस को जन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कारोबारी संबंधों या संविधान से जुड़े विषयों पर अपनी ऊर्जा व्यर्थ करनी चाहिए। कांग्रेस के लिए यह समय कठोर निर्णय लेकर अपनी खोई हुई साख वापस पाने का है।