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टीवी-रेडियो पर अब प्रसारित होंगे मेवाड़ मॉडल आधारित कृषि कार्यक्रम

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04 Mar 25
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टीवी-रेडियो पर अब प्रसारित होंगे मेवाड़ मॉडल आधारित कृषि कार्यक्रम

उदयपुर। प्रसार भारती कृषि से जुड़े लोगों और खासकर किसानों के लिए ’मेवाड़ मॉडल’ को रेखांकित करते हुए ऐसे कार्यक्रम तैयार कर प्रसारण करेगा ताकि कृषक आत्महत्या के लिए मजबूर न हो। उसका जीवन और आजीविका दोनों सुरक्षित रहे। यही नहीं झाबुआ (मध्यप्रदेश) में कड़कनाथ और एमपीयूएटी द्वारा विकसित प्रतापधन मुर्गीपालन को भी देश भर में परिचित कराने संबंधी कार्यक्रम तैयार किए जाएंगे। इसके अलावा संरक्षित खेती, जैविक खेती, प्रकृतिक खेती को भी देश भर में प्रचारित किए जाने की जरूरत हैं। कुल मिलाकर प्रसार भारती से सबद्ध आकाशवाणी और दूरदर्शन एक सशक्त विस्तार कार्यकर्ता की भूमिका निभाते हुए देश के किसानों का कल्याण करने का कार्य करेंगे।
प्रसार शिक्षा निदेशालय मेें ’कृषि में संकट और तनाव’ विषयक पांच दिवसीय कार्यशाला में शिरकत करने वाले बारह राज्यों से रेडियो-दूरदर्शन अधिकारियों ने अपने अनुभव साझा किए और इस निष्कर्ष पर पहंुचे कि कृषि क्षेत्र में हो रहे शोध और शिक्षण पर भरपुर काम हो रहा है लेकिन विस्तार कार्यकर्ताओं के अभाव में तकनीक सही मायने में किसानों तक नहीं पहुंच रही है।
कार्यशाला में यह बात भी उभर कर आई कि प्रतिवर्ष सरकार 500 करोड़ रूपए विस्तार पर खर्च कर रही हैं। 180 करोड़ रूपए कृषि दर्शन और कृषि वाणी जबकि करोड़ांे रूपए कृषि संबंधी लघु कार्यक्रमों व मासमीडिया पर खर्च कर रही है लेकिन फील्ड मेें किसानों तक सीधी पहुंच रखने वाले विस्तार कार्यकर्ताओं का सख्त अभाव है। ऐसे मेें प्रसार भारती की जिम्मेदारी और बढ़ जाती हैं। कार्यशाला में इस बात पर भी सर्वसम्मति बनी कि राजस्थान खासकर मेवाड़ संभाग में जलवायु परिवर्तन या बाजार में उतार-चढ़ाव के बावजूद यहां का किसान आत्महत्या नहीं करता, क्यांेकि वह खेती के साथ-साथ पशुपालन और एकाधिक फसलों की खेती करता है।  
रेडियो- टेलीविजन के लिए ’कृषि में संकट और तनाव’ विषयक कार्यक्रमों की अवधारणा और डिजाइन तैयार करने तथा प्रसारण के लिए पांच दिवसीय कार्यशाला सोमवार को सपन्न हो गई। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली (आईसीएआर) के अधीन कृषि तकनीकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (अटारी) जोन द्वितीय, जोधपुर तथा राष्ट्रीय प्रसारण एवं मल्टीमीडिया प्रसार भारती, नई दिल्ली (एनएबीएम) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस कार्यशाला की मेजबानी प्रसार शिक्षा निदेशालय, एमपीयूएटी ने की।
कार्यशाला के समापन समारोह के मुख्य अतिथि एमपीयूएटी के पूर्व कुलपति डॉ. उमाशंकर शर्मा ने कहा कि कृषि में संकट और तनाव को राजस्थान खासकर मेवाड़ और मारवाड़ का किसान बखूबी जानता है। मारवाड़ में अत्यल्प वर्षा के बावजूद किसान हार नहीं मानता। यही नहीं सीमावर्ती जिलों के युवा सेना में बड़ी संख्या मेें भर्ती होते हैं। ऐसे युवा देश के लिए जान तक न्योछावर कर देता है लेकिन यहां का किसान ऐसे संकट और तनाव को भी सहन कर जाता है। जलवायु परिवर्तन की बात करें तो बांसवाड़ा में माही डेम बनने के बाद पाला कम पड़ने लगा। ऐसे में बांसवाड़ा में किसान रबी मक्का की फसल भी लेने लगे जो एक हैक्टर में 80 क्विंटल तक उत्पादन देती हैं। इसके अलावा प्रतापधन मुर्गी पालन भी किसानों को खूब संबल देती है। महज दो माह में ही इसमें छह किलों मांस हो जाता हैं। इसका अंडा भी 25 रूपए प्रतिनग बिकता हैं।
प्रसार भारती की अतिरिक्त महानिदेशक अनुराधा अग्रवाल ने कहा कि आकाशवाणी-दूरदर्शन केन्द्र रेतीली फसल एपीसोड तैयार करेंगे। कार्यशाला में कृषि उत्पादों में क्या कुछ नया हो रहा है, विस्तृत सीखने को मिला। देश के अन्यत्र राज्यों में भी इस तरह के कार्यक्रमों के प्रसारण से किसानों के मार्गदर्शन का काम प्रसार भारती करेगा।
अटारी जोधपुर के निदेशक डॉ. जे.पी. मिश्रा ने कहा कि संकट को संकट ही बना रहने देंगे तो समाधान संभव नहीं हैं। बदलाव एकाएक किसी को रास नहीं आता है लेकिन बदलाव जरूरी है तभी संकट का समाधान हो पाएगा।
आरंभ में प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. आर.एल. सोनी ने स्वागत भाषण दिया तथा संचालन प्रोफेसर डॉ. लतिका व्यास ने किया।


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