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फसल विविधीकरण में फूलों और मशरूम की खेती के महत्व पर दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम

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18 Feb 25
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फसल विविधीकरण में  फूलों और मशरूम की खेती के महत्व पर दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम
तुरगढ़ गांव, झाड़ोल तहसील, उदयपुर में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय के अंतर्गत फसल विविधीकरण परियोजना के तहत दो दिवसीय कृषक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम का उद्देश्य फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करते हुए किसानों की आय और कृषि स्थिरता को बढ़ाना था।
कार्यक्रम के शुरू में परियोजना अधिकारी डॉ. हरि सिंह ने फसल विविधीकरण की परिभाषा और इसकी आवश्यकता व आर्थिक महत्व पर चर्चा की। उन्होने बताय कि पारंपरिक फसलों के साथ अन्य फसलों को अपनाने से न केवल मुनाफा बढ़ता है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता और जल संरक्षण भी होता है। एकल फसल प्रणाली के विपरीत, विविध फसलें बाजार के उतार-चढ़ाव और मूल्य अस्थिरता से सुरक्षा प्रदान करती हैं। इसके अलावा डॉ. सिंह ने किसानो को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, ई-नाम व न्युनतम समर्थन मूल्य जैसी केन्द्र द्वारा संचालित परियोजनाओ की जानकारी प्रदान की।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, प्रोफेसर लक्ष्मी नारायण महावर ने अपने संबोधन में कहा कि फसल विविधीकरण दक्षिणी राजस्थान के किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण बदलाव लेकर आया है। उन्होनें दक्षिण राजस्थान में फूलों की खेती के महत्व के बारे में बताया कि यहां की जलवायु फूलों की खेती के लिए अनुकूल है, जिससे किसानों को पारंपरिक खेती की तुलना में अधिक लाभ मिल सकता है।
प्रोफेसर नारायण लाल मीना ने मशरूम की खेती पर ध्यान केंद्रित करते हुए इसके आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी लाभों के बारे में बताया और बताया कि किस प्रकार हम कम निवेश में अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं, इसके साथ ही उन्होंने मशरूम पाउडर के पोषण मूल्य और बाजार मूल्य के बारे में भी बताया।
प्रशिक्षण के दौरान मदन लाल मरमट, नारायण सिंह झाला और नरेन्द्र यादव ने किसानों के साथ सूखे और एकल फसल से होने वाले नुकसान और उनकी चुनौतियों पर चर्चा की और बताया कि कैसे हम फसल विविधीकरण के माध्यम से ऐसी समस्याओं पर काबू पा सकते हैं, जिससे कृषि स्थिरता और किसानों की आय में वृद्धि होगी।
कार्यक्रम के अंत में परियोजना अधिकारी डॉ. हरि सिंह ने खरीफ और रबी फसलों की उन्नत किस्मों की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने किसानों को बताया कि उन्नत किस्में न केवल अधिक उत्पादकता देती हैं, बल्कि कीट और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी रखती हैं। उन्होंने कहा, फसलों की उन्नत किस्मों का चयन और सही समय पर बुवाई किसानों की उत्पादकता में वृद्धि कर सकता है। साथ ही, संतुलित उर्वरक और सिंचाई प्रबंधन भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने खेती के नवीनतम तरीकों जैसे बीज उपचार, समय पर खरपतवार नियंत्रण, और फसल चक्र अपनाने पर जोर दिया।
दो दिवसीय इस कार्यक्रम में 40 से अधिक किसानों ने भाग लिया और प्रशिक्षण को अत्यंत लाभप्रद बताया। प्रतिभागियों ने इस ज्ञान को अपने खेतों में लागू करने का संकल्प लिया, ताकि फसल विविधीकरण के माध्यम से उनकी कृषि आय और स्थिरता में सुधार हो सके।

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