उदयपुर | महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय के अंतर्गत फसल विविधीकरण परियोजना के तहत “सतत कृषि की क्षमता को बढ़ाने हेतु उन्नत फसल विविधीकरण रणनीतियों” पर दो दिवसीय विस्तार अधिकारियों का प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्घाटन किया गया। कार्यक्रम में कृषि अधिकारियों, शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों ने सतत कृषि और फसल विविधीकरण के नवीन दृष्टिकोणों पर विचार-विमर्श किया जायेगा। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम जलवायु परिवर्तन, मृदा क्षरण और खाद्य सुरक्षा जैसी बढ़ती चुनौतियों का समाधान करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य अधिकारियों को उन्नत ज्ञान और रणनीतियों से सुसज्जित करना है, ताकि वे फसल विविधीकरण को बढ़ावा देकर कृषि उत्पादकता बढ़ाने और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने में योगदान कर सकें। कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में डॉ. अरविंद वर्मा, निदेशक अनुसंधान, ने प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए प्रशिक्षण के उद्देश्यों की जानकारी दी। उन्होंने विविधीकृत फसल प्रणालियों को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया, जिससे मृदा स्वास्थ्य में सुधार होगा, एकल फसल पर निर्भरता कम होगी और किसानों की आय में वृद्धि होगी। उन्होंने फसल विविधीकरण में खरपतवार प्रबंधन की उन्नत तकनीकों पर विस्तार से चर्चा की। परियोजना प्रभारी डॉ. हरि सिंह ने अपने संबोधन में सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने में फसल विविधीकरण की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने पारंपरिक कृषि ज्ञान और आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकों के समावेश से कृषि प्रणालियों को अधिक सक्षम और लचीला बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। डॉ. एच.एल. बैरवा, आर्चाय (उद्यानिकी) ने पर्यावरण अनुकूल और लाभकारी विविधीकृत उद्यानिकी में फसल विविधीकरण पर चर्चा की। उन्होंने किसानों को विभिन्न फसलों को उद्यानिकी फसलों के साथ एकीकृत करने के आर्थिक और पारिस्थितिक लाभों के बारे में बताया। उन्होंने फलोत्पादन के दस आयाम बताये जिससे किसानो की आय व रोजगार म वृद्धि हो। डॉ. लतिका व्यास, आचार्य (कृषि विस्तार), ने फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने में कृषि विज्ञान केंद्रों की महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा की। उन्होंने अधिकारियों को उन्नत कृषि तकनीकों के प्रभावी स्थानांतरण की विभिन्न विधियो का प्रायोगिक प्रशिक्षण प्रदान किया, जिससे वे किसानों को नवाचारों और सतत कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रेरित कर सकें। कार्यक्रम में उपस्थित मृदा वैज्ञानिक डॉ. सुभाष मीणा, ने कहा कि लगातार एक ही फसल उगाने से मृदा में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, जिससे उत्पादकता प्रभावित होती है। उन्होंने फसल चक्र, मिश्रित फसल प्रणाली और जैविक खादों के उपयोग पर जोर दिया। इस दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान प्रतिष्ठित कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों द्वारा विभिन्न तकनीकी सत्र आयोजित किए जाएगें, जिनमें विस्तार अधिकारियों को जलवायु अनुकूलन, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, समेकित कृषि प्रणाली, नीतिगत ढाँचे और सरकारी पहल व्याख्यान व व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जायेगा।