उदयपुर । महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय के सभागार में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् की अखिल भारतीय समन्वित कंदीय फसल अनुसंधान परियोजना के उत्तर एवं पश्चिमी क्षेत्र की दो दिवसीय समीक्षा दल बैठक का शुभारम्भ हुआ। इस बैठक में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् की कंदीय फसल अनुसंधान परियोजना की पांच वर्षीय कार्याें की समीक्षा की जायेगी। जिसमें देश के 04 विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के केन्द्र के वैज्ञानिक अपने कार्यो की प्रगति की समीक्षा हेतु प्रतिवेदन प्रस्तुत करेंगे।
डाॅ. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, मप्रकृप्रौविवि, उदयपुर ने अपना संदेश साझा करते हुए बताया कि पंचवर्षीय समीक्षा दल बैठक अनुसंधान कार्यों के मूल्यांकन एवं समीक्षा हेतु एक अतिमहत्वपूर्ण बैठक होती है। इस उच्च स्तरीय समीक्षा दल के सदस्य अतिअनुभवी पूर्व कुलपति एवं पूर्व निदेशक व अधिष्ठाता स्तर के अधिकारी होते है। समीक्षा दल की बैठक में विगत पांच वर्षों के अनुसंधान कार्यों की समीक्षा की जाती है तथा आने वाले समय में अनुसंधान कार्य को दिशा प्रदान की जाती है। डाॅ. कर्नाटक ने संदेश में कहा कि मेवाड़ क्षेत्र की जनजातियों का प्रमुख व्यवसाय कंदीय फसल है। जिसकी आय द्वारा अपना जीवनयापन करते है। माननीय कुलपति ने जोर दिया कि कंदीय फसलों पर जलवायु अनुकूलित एवं जैविक अनुसंधान होना चाहिए जिससे कृषकों की उपज में बढोतरी के साथ-साथ आय में भी वृद्धि हो सके।
कार्यक्रम एवं समीक्षा दल के अध्यक्ष डाॅ. एस. डी. शिखामणी, पूर्व कुलपति, डाॅ. वाई. एस. आर. उद्यानिकी विश्वविद्यालय, आन्ध्रप्रदेश ने कहा कि आज के समय में कंदीय फसल भोजन का अभिन्न अंग है। उन्होनें बताया कि केन्द्रीय कंद फसल अनुसंधान संस्थान के अन्तर्गत देश में 21 विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय समन्वित कंदीय फसल अनुसंधान परियोजना संचालित हो रही है। जिसमें शकरकंद, रतालु, अरवी, सुरण, हल्दी एवं अदरक फसलों पर सद्यन अनुसंधान जारी है।
केन्द्रीय कंद फसल अनुसंधान संस्थान, तिरूवनन्तपुरम के निदेशक एवं परियोजना निदेशक डाॅ. जी. बायजू ने कहा कि कन्दियों फसलों पर पिछले पांच वर्षों में सम्पूर्ण देश में 43 उन्नत किस्में विकसित की गई जिससे कृषकों की बढ़ोŸारी होगी। साथ ही उन्होंने बताया कि देश के 21 केन्द्र अपने स्तर पर कन्दिय फसलों के जर्मप्लाज्म संरक्षित रखते है।
डाॅ. अरविन्द वर्मा, अनुसंधान निदेशक ने समीक्षा दल के सदस्यों एवं विभिन्न अनुसंधान केन्द्रों से पधारे हुए परियोजना प्रभारियों एवं वैज्ञानिकों का स्वागत करते हुए कहा कि मेवाड़ कृषि के लिए कन्दीय फसल एक महत्वपूर्ण इनपुट है इसके राजस्थान के परिपेक्ष में इन फसलों का उपयोग के बारे में विस्तार से बताया। डाॅ. वर्मा ने बताया कि इस विश्वविद्यालय में कन्दीय फसलों पर 2005-2006 से स्वैच्छिक केन्द्र के रूप में अनुसंधान शुरू हुआ एवं वर्ष 2015 में इस केन्द्र को अखिल भारतीय समन्वित कंदीय फसल अनुसंधान परियोजना स्थायी केन्द्र के रूप में स्वीकृति दी गई। इस केन्द्र पर राजस्थान के दक्षिणी क्षेत्र में कंदीय फसलों पर अनवरत अनुसंधान जारी है।
इस कार्यक्रम में कंदीय फसल अनुसंधान परियोजना की आठवीं पंचवर्षीय समीक्षा दल की बैठक में डाॅ. एस. के. पाण्डे, पूर्व निदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला, डाॅ. वी. एस. कोरिकान्तीमठ, पूर्व निदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् केन्द्रीय तटीय कृषि अनुसंधान संस्थान, गोवा, डाॅ. जगन मोहन, छात्र कल्याण अधिकारी एवं अध्यक्ष, खाद्य विज्ञान एवं पोषण, निफटेम, तंजावार एवं डाॅ. जी. सूजा, विभागाध्यक्ष, फसल उत्पादन, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद केन्द्रीय कंद फसल अनुसंधान संस्थान, तिरूवनन्तपुरम ने सदस्य के रूप में सम्मिलित हुए। इस अवसर पर क्षेत्र के 50 कृषकों के साथ वैज्ञानिकों ने संवाद किया एवं उनकी समस्याओं का समाधान किया।
कार्यक्रम के दौरान अतिथियों द्वारा तीन तकनीकी बुलेटिन का विमोचन किया गया। डाॅ. विरेन्द्र सिंह, सह आचार्य एवं परियोजना प्रभारी, अखिल भारतीय समन्वित कंदीय फसल अनुसंधान परियोजना ने पधारे हुए अधिकारियों एवं वैज्ञानिकों का धन्यवाद प्रेषित किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. लतिका शर्मा, सह आचार्य एवं विभागाध्यक्ष, कृषि अर्थशास्त्र ने किया।