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एमपीयूएटीः गाजरघास एक ज्वलंत समस्या ‘‘जनजागृति की आवश्यकता’’- डाॅ. कर्नाटक

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23 Aug 24
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एमपीयूएटीः गाजरघास एक ज्वलंत समस्या ‘‘जनजागृति की आवश्यकता’’- डाॅ. कर्नाटक

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के अनुसंधान निदेशालय की अखिल भारतीय समन्वित खरपतवार नियंत्रण अनुसंधान परियोजना के तहत् गाजरघास जागरूकता सप्ताह का आयोजन 16 से 23 अगस्त, 2024 तक राजस्थान कृषि महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय के अनुसंधान केन्द्रों, अन्य महाविद्यालयों एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों पर वृहद रूप से मनाया गया।
कार्यक्रम के समापन समारोह दिनांक 23 अगस्त, 2024 को राजस्थान कृषि महाविद्यालय में आयोजित गाजरघास जागरूकता कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक, माननीय कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने अपने उद्बोधन में बताया कि गाजर घास एक अत्यंत ही दुष्प्रभावी पादप है इसका मानव, पशु एवं पादप जैवविविधता पर दुष्प्रभाव वर्णन करते हुए चिन्ता व्यक्त की। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि देश में इसके तेजी से फैलना भी एक ज्वलन्त समस्या है। अपने उद्बोधन में उन्होंने कृषि विद्यार्थियों एवं संकाय सदस्यों की जिम्मेदारी को निभाते हुए जनमानस में इसके नियंत्रण एवं उनमुलन की जनजाग्रति के उत्तर दायित्व को याद दिलाया और बताया कि इसके प्रभावी नियंत्रण के लिए जनजागृति की आवश्यकता है। गाजर घास हमारे राष्ट्र का पौधा नही है इसके बीज देश के खाद्यान्न आपूर्ति के समय आयातित अनाज के साथ हुआ था। यह सर्वप्रथम देश में वर्ष 1955 में देखा गया एवं वर्तमान में एक विकराल समस्या का रूप धारण कर देश के 10 प्रतिशत से भी अधिक भौगोलिक क्षेत्रफल में फैल गया। उन्होंने कहा कि गाजर घास पर्यावरण के सभी घटकों को हानि पहुंचाता है। अतः इसके नियंत्रण के लिये जनसाधारण को जागरूक करना एवं इसके प्रभावी नियंत्रण के लिए योजनागत निरन्तर प्रयास अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने जैविक विधि से इसके प्रभावी नियंत्रण की तकनीक एवं मेक्सीकन बीटल (जाइगोग्रामा बाइकोलाराटा) द्वारा इसके नियंत्रण को विस्तृत से बताया।
कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि डॉ. आर. बी. दूबे, अधिष्ठाता, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर ने कहा कि गाजर घास का मुख्य प्रसार बीजों के माध्यम से होता है अतः बीज बनने से पहले ही इसे नष्ट कर देना चाहिए। उन्होंने बताया की गाजर घास से कई प्रकार के रोग होते है जिसमे त्वचा एवं श्वसन की एलर्जी प्रमुख है। गाजर घास की वृद्धि बहुत तीव्र गति से होती है जिसके कारण अन्य प्रकार के पौधे वनस्पति उत्पन्न नहीं हो पाते, जिससे जैवविविधता को बहुत बड़ी हानि होती है।
कार्यक्रम में अखिल भारतीय समन्वित खरपतवार नियंत्रण अनुसंधान परियोजना प्रभारी के एवं निदेशक अनुसंधान, डॉ अरविंद वर्मा ने गाजर घास के हानिकारक प्रभावों का विस्तृत वर्णन किया एवं गाजर घास के नियंत्रण हेतु कई प्रकार के यांत्रिक, रासायनिक एवं जैविक नियंत्रण के बारे में विद्यार्थियों को जानकारी दी। इस अवसर पर डाॅ. वर्मा ने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि गाजरघास उन्मूलन हेतु वर्ष पर्यन्त क्रियाशील रहने का आवहान् किया साथ ही उन्होंने बताया कि अल्पकाल में ही गाजरघास पूरे देश में एक भीषण प्रकोप की तरह लगभग 35-40 मिलीयन हैक्टेयर भूमि पर फैल चुकी है। गाजरघास से होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक रहने का स्पष्ट संदेश देते हुए कहा कि विगत वर्षों से इस कार्यक्रम को संचालित किया जाता रहा है जिसके फलस्वरूप महाविद्यालय परिसर में गाजरघास के संक्रमण में सार्थक कमी आयी है परन्तु इस कार्यक्रम की सार्थकता व्यापक क्षेत्र के परिपेक्ष्य में देखी जानी चाहिए। अतः इस दिशा में हमें निरन्तर अथक प्रयास की आवश्यकता पर बल दिया एवं भविष्य में गाजर घास मुक्त परिसर के लिए विद्यार्थियों को शपथ दिलायी।
इस अवसर पर माननीय कुलपति के विशेषाधिकारी डाॅ. विरेन्द्र नेपालिया, क्षेत्रीय अनुसंधान निदेशक डाॅ. अमित त्रिवेदी एवं उप निदेशक अनुसंधान डाॅ. रवि कान्त शर्मा, महाविद्यालय के सह छात्र कल्याण अधिकारी डाॅ. राम हरि मीणा, समस्त विभागाध्यक्ष, समस्त शिक्षकगण एवं 128 विद्यार्थियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया।


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