
वैदिक साधन आश्रम तपोवन-देहरादून का शरदुत्सव आज 3 अक्टूबर, 2018 को आरम्भ हुआ। प्रातः काल 5.00 बजे से एक घंटा तक योग साधना करने के बाद आश्रम में पधारे ऋषि भक्तों ने मिलकर यजुर्वेद पारायण यज्ञ किया। यज्ञ के ब्रह्मा आर्यजगत् के सुप्रसिद्ध संन्यासी स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती थे। मन्त्रपाठ गुरुकुल पौंधा के दो ब्रह्मचारियों ने किया। यज्ञ के ब्रह्मा जी के साथ मंच पर विश्व प्रसिद्ध आर्य भजनोपदेशक व गीतकार पं० सत्यपाल पथिक जी एवं उत्सव में प्रवचनों के लिये आगरा से पधारे प्रसिद्ध विद्वान् आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ सहित आश्रम के धर्माधिकारी पं० सूरत राम जी उपस्थित थे। यज्ञ तीन कुण्डों में किया गया जिसके चारों ओर अनेक यजमानों ने यज्ञ किया। अन्य श्रोतागण कुर्सियों व दरियों पर बैठकर यज्ञ के मन्त्रों का पाठ सुनते रहे व आहुतियों के यज्ञ में पड़ने को देखते रहे। यज्ञ के समापन पर सभी यजमानों व यज्ञ में उपस्थित लोगों को आशीर्वाद दिया गया। यज्ञ के बाद यज्ञ के ब्रह्मा स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी ने सामूहिक प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्र का कल्याण हो। हमने वेद की विद्या व ज्ञान को छोड़ दिया है। हे ईश्वर ! आपने देश के नेतृत्व के लिये जिस आत्मा को भार सौंपा है, वह देश का उपकार करने में सफल हो। आप प्रजा को भी सुमति दें। वेद ज्ञान को आगे बढ़ाने वाली विद्या है, वह उन्नति को प्राप्त हो। यज्ञ का संचालन व प्रशासन का कार्य प्रसिद्ध ऋषि भक्त श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने योग्यतापूर्वक किया। उन्होंने कहा कि यज्ञ करते समय हमारा ध्यान यज्ञ में ही होना चाहिये। हमारा मन यज्ञ से भिन्न विचारों का चिन्तन न करे, इसका आपको ध्यान रखना चाहिये। इसके बाद प्रसिद्ध गीतकार और भजनोपदेशक पं. सत्यपाल पथिक जी का एक भजन हुआ। भजन के बोल थे ‘हे दुनिया के दाता हमको शक्ति दो। जगत पिता जगद माता हमको शक्ति दो। हम संकट की घड़ियों में घबरायें न, धर्म कर्म को छोड़ अधर्म कमायें न। यही पथिक मन भाता हमको शक्ति दो। हे दुनिया के दाता हमको शक्ति दो’। इसके बाद पं. उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का व्याख्यान हुआ। हम उनके प्रवचन के आरम्भ में कही कुछ बातों का उल्लेख कर रहे हैं।
आचार्य कुलश्रेष्ठ जी ने कहा कि हमारा सौभाग्य है कि हम इस यजुर्वेद पारायण यज्ञ में उपस्थित हैं। उन्होंने कहा कि हमारी पूजा पद्धति सर्वश्रेष्ठ पूजा पद्धति है। हमें जड़ व चेतन देवताओं को समझना होगा। उन्होंने जड़ देवता सूर्य, चन्द्र, पृथिवी, अग्नि, वायु, जल, अन्न आदि की विस्तार से व्याख्या की। इसके बाद उन्होंने चेतन देवताओं में माता, पिता, आचार्य, अतिथि आदि की चर्चा की और उनके प्रति हमारे कर्तव्यों का बोध कराया। ईश्वर के स्वरूप, गुण, कर्म व स्वभाव सहित उसकी उपासना पर भी विद्वान वक्ता ने प्रकाश डाला। उनका प्रवचन ज्ञानवर्धक एवं प्रभावशाली था। समयाभाव के कारण हम उनका विस्तृत प्रवचन प्रस्तुत नहीं कर पा रहे हैं।
प्रातः 9.00 बजे ध्वजारोहण का कार्यक्रम भी सम्पन्न किया गया। आरम्भ में तपोवन विद्या निकेतन के बच्चों ने ‘जयति ओ३म् ध्वज व्योम विहारी’ गीत गाया। इसके बाद गुरुकुल पौंधा के दो ब्रह्मचारियों ने वैदिक राष्ट्रीय प्रार्थना का गीत ‘ओ३म् आ ब्रह्मन् बा्रह्मणों ब्रह्मवर्चसी जायताम’ गाया। इसका हिन्दी में कविता रूप में अनुवाद भी सबने मिलकर गाया। स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी ने इस अवसर पर सम्बोधित करते हुए कहा कि ओ३म् परमात्मा का चिन्ह है। सबका नियामक व सबको बनाने वाला परमात्मा है। संसार में एक ही परमात्मा है। उसी की उपासना सबको करनी चाहिये क्योंकि वही एक मात्र उपासनीय है। उसका सबको मनन करना है और उसके बनाये सब नियमों का पालन करना है। स्वामी जी ने वेदमंत्रों के महत्व को भी बताया। इस अवसर महात्मा शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने भी सम्बोघित किया। उन्होंने शिवाजी महाराज और उनके गुरु स्वामी रामदास जी के ओ३म् ध्वज विषयक प्रसंगों को भी भावूपर्ण शब्दों में प्रस्तुत किया। इसके बाद आश्रम के मंत्री श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने उत्सव में पधारे सभी ऋषि भक्तों का स्वागत किया और उनसे अनुरोध किया कि वह आश्रम को अपना मानकर व्यवहार करें। विद्युत व जल को आवश्यकता न होने पर बन्द रखें तथा स्वच्छता आदि का भी ध्यान रखें।
इसके बाद आश्रम के वृहद सभागार में भजन व प्रवचनों का कार्यक्रम आरम्भ हुआ। आर्य भजनोपदेशक श्री रमेश चन्द्र स्नेही जी ने भजन प्रस्तुत किये। उनके भजन की प्रथम पंक्ति थी ‘प्रभु तेरा ओ३म् नाम सबका सहारा है’। इसके बाद पं. नरेश दत्त आर्य जी के दो भजन हुए। प्रथम गाये भजन के शब्द थे ‘दुनिया बनाने वाले महिमा तेरी निराली चन्दा बनाया शीतल सूरज में आग डाली।’ दूसरा भजन था ‘जिसने ईक्षण से अखिल विश्व को बनाया है, वह विश्वकर्मा सारे विश्व में कहाया है।’ इसके बाद श्री पीयूष शास्त्री जी का ईश्वर से सृष्टि रचना के विषय में प्रभावशाली उपदेश हुआ। उन्होंने कहा कि परमात्मा अजन्मा व सर्वव्यापक है। ईश्वर संसार को प्रकृति से बनाते हैं। उन्होंने कहा कि ईश्वर काया रहित हैं। पीयूष जी के बाद पं. सत्यपाल पथिक जी के भजन हुए। उनके भजन के बोल थे ‘प्राकृतिक परमाणुओं से सकल सामग्री मिली, स्वयंभू परमात्मा ने तब सकल सृष्टि रची।’ पथिक जी ने दूसरा भजन गाया जिसके बोल थे ‘पूर्ण वह परमात्मा है पूर्ण ये संसार है। अपनी-अपनी पूर्णता से पूर्ण हर व्यवहार है।’ इसके बाद आचार्य उमेश चन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का व्याख्यान हुआ। उन्होंने कहा कि परमात्मा निराकार है। वह वेद ज्ञान देता है। कैसे? इसका उत्तर था कि परमात्मा हमारी आत्मा के भीतर भी विद्यमान है। वह सर्वज्ञ है। वेद उसके ज्ञान में सदा सर्वदा से हैं। ऋषियों की पवित्र आत्मायें परमात्मा की वेद ज्ञान विषयक प्रेरणा को ग्रहण कर लेती है। इसके बाद वह चार ऋषि अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा उस प्राप्त वेद ज्ञान को ब्रह्मा जी को प्रदान करते हैं। ब्रह्मा जी के बाद वेद ज्ञान को बोल कर बताने व सुनकर ग्रहण करने की परम्परा चली जो अद्यावधि जारी है। आचार्य जी ने वेद ज्ञान को सार्वभौमिक ज्ञान बताया और कहा कि यह ज्ञान परमात्मा की ओर से संसार के सभी मनुष्यों के लिये दिया गया है। आचार्य जी ने विस्तार से सृष्टि रचना पर प्रकाश डाला। हम बाद में उनका विस्तृत प्रवचन देने का प्रयत्न करेंगे।
आचार्य उमेश कुलश्रेष्ठ जी के बाद श्री उम्मेद सिंह विशारद जी ने एक भजन गाया जिसके बोल थे ‘हर दिल में जो बसा है’। इसके बाद स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि परमात्मा ने जीवात्माओं के सुख के लिये संसार की सब चीजें बनाईं हैं। हमारा शरीर उसी ने बनाया है। वह अन्दर से रचना करता है। वह जो वनस्पति उगाता है उसके बीज होते हैं जिनसे वह वनस्पतियां पुनः उगाई जा सकती हैं व उगती हैं। स्वामी जी ने कहा कि परमात्मा ने संसार की रचना आदि कारण प्रकृति से की है। उन्होंने कहा कि परमात्मा अपनी सामर्थ्य से संसार की रचना करता है। संसार में उसके समान कोई नहीं है। उन्होंने कहा कि ईश्वर ने प्रकृति की सम अवस्था में विषमता उत्पन्न कर सृष्टि को रचा है। स्वामी जी ने कहा कि हम परमात्मा को जानकर ही जन्म व मरण तथा दुःखों के बन्धन से मुक्त हो सकते हैं। कार्यक्रम के संयोजक श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने श्रोताओं को कहा कि आप यहां होने वाले प्रवचनों की मुख्य बातों को अपनी डायरियों में नोट किया कीजिये। बाद में उन पर चिन्तन करें। इससे आपको दीर्घकालीन लाभ होगा। शान्ति पाठ के बाद यह सभा समाप्त हुई। इसके बाद सभी लोगों ने आश्रम में स्वादिष्ट भोजन किया। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
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