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काव्य सुमेरू के शिखर रत्न इन्द्रधनुषी व्यक्तित्व के धनी - श्री हरीश आचार्य

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16 Feb 25
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काव्य सुमेरू के शिखर रत्न इन्द्रधनुषी व्यक्तित्व के धनी - श्री हरीश आचार्य

जहाँ हर दिन वासन्ती उल्लास से भरा हो, हर रंग-रस बिना किसी संकोच के भरपूर बरसते रहते हों, और व्यक्तित्व इतना अधिक इन्द्रधनुषी आभा लिए हो कि आसमाँ कहीं का हो, सुनहरी आभा में वही एक छवि है जो बार-बार उभर कर बिन्दासगी के साथ जीवन और जगत की मौज-मस्ती का दरिया उमड़ाने वाली हो, तो साफ तौर पर जान लीजियें कि वह व्यक्तित्व श्री हरीश आचार्य के सिवा और कोई नहीं हो सकता।

उनके लिए अभिव्यक्ति के माधुर्य प्रपात से लेकर अभिनय की मनोहारी भंगिमाओं के साथ हर पल जीवन नर्तन का पर्याय होकर आनंदित कर देने वाला ही सिद्ध होता है।

उनके लिए न उम्र कोई बाधक है, न और कुछ। जीने की अदाओं को जीते हुए सिद्ध रचनात्मक कर्मयोगी होने के सारे पड़ाव उन्होंने बखूबी पार करते हुए यह मुकाम हासिल किया है।

शिक्षा जगत की दीर्घकालीन सेवाओं में रहकर आंग्ल भाषाविद् एवं विशेषज्ञ के रूप में उनकी अध्यापन शैली के साथ अंग्रेजी और हिन्दी साहित्य का व्यापक अध्ययन इतना कि विदेशी साहित्यकारों और तत्कालीन महानायकों के जीवन चरित्र, शिक्षाओं और कर्तृत्व धाराओं का प्रभाव उनके व्यक्तित्व से लेकर साहित्य तक में छलकता हुआ पसरता और माधुर्य बिखेरता रहा है।

अकादमिक तौर पर समृद्ध बहुभाषी एवं सृजनधर्मी शख़्सियत के रूप में जीवन लक्ष्यों में आशातीत सफलता के सोपान तय करते हुए श्री हरीश आचार्य ने काव्य जगत के मंच पर अपना जो जलवा बिखेरना शुरू किया उसने उन्हें न केवल लोकप्रिय बल्कि लोकमान्य कवि और कलाकार के रूप में जो ख्याति दी, वह निरन्तर उत्कर्ष पाती रही।

आज वागड़ अंचल ही नहीं बल्कि राजस्थान और देश के अग्रगण्य रचनाकारों में उनका नाम आता है। शिक्षा और साहित्य जगत के विभिन्न पड़ावों और आँचलिक उत्सवधर्मिता के विभिन्न अवसरों पर अपनी अनूठी कला दृष्टि, अभिव्यक्ति कौशल और वैविध्यपूर्ण नवाचारों के सफलतम प्रयोगों ने उन्हें प्रयोगधर्मी कर्मयोगी के रूप में अद्वितीय पहचान दी।

हजारों काव्य गोष्ठियों, संगोष्ठियों और कवि सम्मेलनों में हिन्दी, वागड़ी कविताओं, दोहों, ग़ज़ल, नज़्मों, शायरियों और दोहों से लेकर काव्य विधा की तमाम पुरातन और आधुनिक धाराओं का बेहतरीन प्रयोग और प्राकट्य करते हुए वे काव्य सुमेरू के शिखर पुरुष के रूप में जाने जाते हैं।

इन्हीं विलक्षण प्रतिभा धाराओं के अजस्र प्रवाह ने उन्हें हर कहीं आदर-सम्मान और प्रतिष्ठा दी। कद्रदानों के दिलों से लेकर पुरस्कारों और सम्मानों तथा मीडिया के तमाम पहलुओं में उनकी सुन्दर छवि की झलक दृष्टिगोचर होती है। 

उत्तरार्ध में विभिन्न विधाओं में उनकी कई पुस्तकों के धड़ाधड़ प्रकाशन ने साहित्य जगत में जबर्दग्स्त खलबली मचायी। इन पुस्तकों की चर्चा आज भी हर कोई करता ही करता है।

लोक आयामों का कोई सा रचनात्मक आयोजन हो, उनकी अन्यतम रचनात्मक और धाँसू भागीदारी इनमें दिखाई देती है। आंचलिक गतिविधियों में उनकी उपस्थिति आयोजन के उद्देश्य और आनन्द को बहुगुणित कर देने का सामर्थ्य रखती है।

इकहत्तर पार वाली उम्र के इस पड़ाव में भी उनकी सक्रियता और सृजन हम सभी के लिए मननीय और अनुकरणीय है। श्री हरीश आचार्य जी को 72 वें जन्म दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ...।


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