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लौकिक एवं पारलौकिक कल्याण के लिए कल्पवृक्ष है रूद्रपाठ

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16 Feb 25
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लौकिक एवं पारलौकिक कल्याण के लिए कल्पवृक्ष है रूद्रपाठ

देवाधिदेव महादेव की प्रार्थना और उपासना से हर प्रकार की मनोकामना सिद्धि के साथ ही सांसारिक एवं आध्यात्मिक लक्ष्य सहजता से प्राप्त किए जा सकते हैं। शिव समर्थ दैव हैं जिनकी आराधना से दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से मुक्ति पायी जा सकती है।

शीघ्र प्रसन्न होने वाले महादेव आशुतोष शिव की उपासना से लौकिक एवं पारलौकिक सिद्धियां सहज ही प्राप्त की जा सकती हैं। शास्त्रों में रूद्रपाठ को कल्पवृक्ष कहा गया है। उसका अवलम्बन करने से अमृत तत्व की प्राप्ति होती है। भगवान शिव की साधना में रूद्राष्टाध्यायी का सर्वोपरि विशिष्ट महत्त्व है।

रूद्राष्टाध्यायी में आठ रूद्रों का समावेश माना गया है। रूद्राष्टाध्यायी में पृथिवी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश तथा मन, बुद्धि, अहंकार आदि के रूप में व्याप्त रूद्र के रूप में प्रार्थना की गई है।

शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ में काण्ड 6 तथा शिव महिम्नस्तोत्र के उद्धरण स्पष्ट करते हैं इनमें आठ रूद्रों का वर्णन है-भव, शर्व, रूद्र, पशुपति, उग्र, महादेव, भीम एवं ईशान। ये पांच तत्व तथा मन, बुद्धि एवं अहंकार के प्रतीक रूप में माने जाते हैं।

रूद्राष्टाध्यायी के सभी अध्यायों में समाहित वैज्ञानिक रहस्यों का अनुसंधान करें तो पाते हैं कि इसके प्रथम अध्याय मन को स्थिर करते हुए शिवसंकल्प मय बनाने का सूत्र छिपा है। दूसरे अध्याय में सहस्रशीर्षा से हजार शिर, हजार आँखें, हजार पाँव आदि कहकर विराट रूप में बसने वाले भगवान रूद्र की सर्वव्यापकता बतलाई गई है। तीसरे अध्याय में वायु तथा ओज की प्रार्थना की गई है।

पंचम अध्याय में संसार के तमाम पदार्थों में रूद्र की भावना की गई है। छठे अध्याय में समस्त प्रकार की कामनाओं व आयुष्य की वृद्धि करने तथा सप्तम अध्याय में सभी प्रकार की सुख प्राप्ति के लिए प्रार्थना की गई है। अष्टम् अध्याय में शान्ति प्राप्ति एवं पृथिवी तत्व, जल तत्व द्वारा हमें सुख एवं सौ वर्ष बोलने की वाणी, सौ वर्ष देखने की शक्ति तथा सौ वर्ष दीनता रहित व सौ वर्ष आयुष्यकामना की प्रार्थना भगवान रूद्र से की गई है।

शिव महिम्न स्तोत्र के श्लोक ‘‘श्मशानेश्वाक्रीड़ा....’’ की व्याख्या करने पर हम पाते हैं कि शिव को श्मशान प्रिय है। इसका आशय यह है कि हमारे हृदय व मन को हम निष्काम भाव और शुचिता से इतना परिपूर्ण कर लें और मन को शिव में स्थिर कर दें कि यह श्मशान की तरह खाली हो जाए, तभी भगवान शिव अपने हृदय में विराजित हो सकते हैं और तभी अनेक मंगलकामनाएं अपने आप पूर्ण होने लगती हैं और शिवत्व का आभास होता है।

इसी प्रकार दुर्गापाठ को कामदुधा कहा गया है जिसका शांतिपूर्वक अर्थानुसंधान पूर्ण श्रद्धाभाव से से पाठ किया जाए तो मनुष्य की तमाम कामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं।


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