“इन पुत्रन के सीस पर, वार दिए सुत चार"
"चार मुए तो क्या हुआ, जीवित कई हजार।"
दिसंबर का महीना हमें उन साहसी आत्माओं की याद दिलाता है, जिन्होंने देश और अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। बात ज्यादा पुरानी नहीं है, बात है संवत 1760 (सन 1704) के पौष माह (दिसंबर) और चमकौर का युद्ध। इस दौरान, सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह साहिब जी के चार पुत्र वीरता से लड़े और शहीद हुए। जब इस घटना को विस्तृत जानेंगे तो रोंगटें खड़े होना स्वाभाविक है, आपको गर्व और अनुभूति होगी की साहस, त्याग, बलिदान में सिखों का कोई सानी नहीं है।
पौष माह (दिसंबर) सन 1704 में सिरसा नदी किनारे चमकौर नामक जगह पर सिखों और मुगलों के बीच ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया। इस युद्ध में गुरु गोविन्द सिंह साहिब जी के नेतृत्व में 40 वीर सिखों का सामना, वज़ीर खान के नेतृत्व वाले 10 लाख मुग़ल सैनिकों के साथ हुआ था। गुरु गोविन्द सिंह ने इस युद्ध का वर्णन ज़फरनामा में करते हुए लिखा है, चिड़िया नाल मैं बाज लड़ावां, गीदड़ां नू मैं शेर बणावां, सवा लाख ते एक लड़ावां, तां गोबिंदसिंह नाम धरावां।
दिनांक 22 दिसंबर 1704 को गुरु गोविंद सिंह साहिब के बड़े साहिबजादे अजीत सिंह और जुझार सिंह चमकौर युद्ध में लड़ते हुए शहीद हुए। वही दो साहिबज़ादे बाबा जोरावर सिंह (9 वर्ष) और बाबा फतेह सिंह (7 वर्ष) के साथ माता गुजरी (गुरु गोविन्द सिंह साहिब की माता एवं साहिबजादों की दादी) को फतेहगढ़ के ठंडा बुर्ज स्थान पर कैद में रखा गया इस दौरान उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए प्रताड़ित किया गया एवं कुछ दिनों बाद दिनांक 26 दिसंबर 1704 को ज़ालिम मुग़ल नव़ाब वज़ीर खान ने दोनों साहिबजादों पर धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया ओर प्रलोभन दिए, इस पर दोनों साहिबजादों ने इसका जोरदार विरोध करते हुए कहाँ की हम केवल हमारे अकाल पुरख (परमात्मा) और गुरु पिताजी के आगे ही सर झुकाते है किसी और को सलाम नहीं करते ओर अन्याय, अधर्म और जुल्म के लिए तो कभी भी नहीं। हम प्राण दे देंगे लेकिन झुकेंगे नहीं, इस पर वज़ीर खान ने दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया, जब कुछ समय बाद चुनी हुयी दीवार टूट गयी तब वज़ीर खान ने मानवीयता की सारी हदें पार कर दोनों साहिबजादों का गला रेंत दिया। माता गुजरी ने ठंडा बुर्ज में ही ईश्वर का धन्यवाद एवं अरदास करते हुए अपने प्राण त्याग दिए।
जब गुरु गोविन्द सिंह साहिब को यह खबर मिली तो उनके मुख से निकला “इन पुत्रन के सीस पर, वार दिए सुत चार, चार मुए तो क्या हुआ, जीवित कई हजार।
धन्य है गुरु गोविन्द सिंह साहिब उनके पुत्र एवं परिवार जिन्होंने धर्म, समाज, राष्ट्र पर इतने उपकार किए। गुरू गोविंद सिंह साहिब माँ भवानी के उपासक रहे, उन्होंने गौ रक्षा सहित भारतीय संस्कृति, धर्म के संरक्षण के लिए अपना जीवन, परिवार राष्ट्र को समर्पित कर दिया। उनकी अतुलनीय साहस और वीरता आज भी हमें प्रेरित करती है।
चार साहिबजादों की वीरता बलिदान की समृति में 9 जनवरी 2022 को श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 दिसंबर को 'वीर बाल दिवस' मनाने की घोषणा की। इसी क्रम में इस वर्ष से राष्ट्रीय बाल पुरस्कार गणतंत्र दिवस की बजाय वीर बाल दिवस पर दिया जायेगा जिसमें इस वर्ष पुरस्कृत होने वाले 17 बच्चों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू सम्मानित करेंगी।
भारत में आज हिंदू सनातन धर्म यदि जीवित है तो उसमें बहुत बड़ा योगदान गुरु गोबिंद साहिब द्वारा स्थापित खालसा पंथ है जिसमें सशस्त्र खालसा सेना में हिंदू धर्म के योद्धाओं को पंज प्यारो के रूप में चुना गया।
सत्य, धर्म और राष्ट्र के लिए साहस, त्याग और बलिदान का उदाहरण देने के लिए उम्र नहीं बल्कि संकल्प और समर्पण की आवश्यकता है। 26 दिसंबर का यह दिन न केवल सिख धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि समस्त भारतीयों के लिए प्रेरणादायक हैं।