“जब कविता जीवन की अभिव्यक्ति बन जाती है तो वह सच्चे अर्थों में कालजयी हो जाती है | उद्भ्रांत की कविता में जीवन के विविध पक्षों का चित्रण है | इस अर्थ में वे हमारे समय के बड़े कवि हैं | वे कथ्य और शिल्प दोनों ही स्तरों पर प्रयोग करते हैं और अपना प्रभाव छोड़ते हैं |” उक्त विचार राजस्थान साहित्य अकादमी की संचालिका के पूर्व सदस्य मधुर गीतकार किशन दाधीच ने दिल्ली से आये कवी और साहित्यकार रमाकांत उद्भ्रांत के कविता संग्रह “यही तो ज़िन्दगी है” के लोकार्पण के पश्चात सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किये | उन्होंने कविता में शब्दों की मितव्ययता के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि शब्दों का अपव्यय भी ऐयाशी है | इस अवसर पर वरिष्ठ कवि डॉ सदाशिव श्रोत्रिय ने कहा कि अच्छी कविता बार बार पढ़े जाने की मांग करती है | कई बार कविता को पढने के बाद ही उसके अर्थ खुलने लगते हैं | उन्होंने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि अच्छी कविता के पाठक लगातार कम हो रहे हैं | कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि डॉ मंजू चतुर्वेदी ने अपने पिता स्वर्गीय नन्द चतुर्वेदी को स्मरण करते हुए कविता के उन सन्दर्भों की चर्चा की जिनसे सही अर्थों में कविता अर्थवान बनती है | उन्होंने उद्भ्रांत की कविता में माँ और पिता के संबंधों वाली कविता का उल्लेख करते हुएकहा कि ऐसे संबंधों को चित्रित करने वाली कविता ही किसी रचनाकार को बड़ा बनाती है | उनसे गुजरकर ही वह देश दुनिया के अन्य विषयों पर ईमानदारी से कलम चला जा सकता है | आखिर कविता क्यों लिखी जाए जैसे विषयों पर भी उन्होंने अपने विचार व्यक्त किये | राणा पूंजा महाविद्यालय के निदेशक नंद्किशोर शर्मा ने गाँधी मानव कल्याण समिति के विविध प्रकल्पों के बारे में जानकारी दी और सभा में उपस्थित अतिथियों और संभागियों का स्वागत किया | कार्यक्रम का सञ्चालन युगधारा के पूर्व अध्यक्ष अशोक जैन मंथन ने किया | पुस्तक के रचनाकार उद्भ्रांत ने अपने संकलन से माता ,स्वप्न में पिता , नवलगढ़ कविता श्रंखला जैसी अनेक कविताओं का पाठ किया | अंत में समता संवाद मंच के संस्थापक हिम्मत सेठ ने समाहार प्रस्तुत किया और सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया | कार्यक्रम में प्रो विमल शर्मा , प्रो हेमेन्द्र चंडालिया , जसपाल सिंह मक्कड़ , शैलेन्द्र लड्ढा, हिमांशी, सुनील टांक , इस्माइल अली दुर्गा और नगर के अनेक गणमान्य लेखक , पत्रकार और बुद्धिजीवी उपस्थित थे |