विश्व शांति "
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विकृतियों को
देख
संसार से
हो कर विरक्त
पाया
कैवल्य ज्ञान
बोद्धि वृक्ष के नीचे
और
सिद्धार्थ से बन गए
'गौतम बुद्ध',
जीने के लिए
जग को दिखाया
मध्यम मार्ग,
थी सबसे ऊपर
अहिंसा
'बुद्धम शरणम गच्छामि'....
गूंजा
जयघोष कि...!
हिंसा के
युद्ध घोष
से हुआ
ह्रदय परिवर्तन,
धर्म घोष
की ओर
चल दिया
सम्राट अशोक....।
है समय की
यही पुकार
चलें
राष्ट्र की एकता
और
अखंडता के
लिए
मानवता की ओर,
विश्व शांति
के लिए
हिंसा से
अहिंसा की ओर....।