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" कालेरा बास की बातें " ( कहानी संग्रह )

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18 Sep 24
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" कालेरा बास की बातें " ( कहानी संग्रह )

मानवीय मूल्यों और सामाजिक नैतिकता को स्थापित करते भोले - भाले  अभावग्रस्त इंसानों की कहानियां...........
चेहरे पर मुस्कान लिए शंकर ज़मीन की तरफ देखने लगा और सोचने लगा कि सच्चे ,मासूम और पवित्र लोग आज भी धरती पर, से समाप्त होती कहानी " एक था फरसा " कालेरा बास के उस फरसा काका की कहानी सुनता है जो अभावों में में गधा गाड़ी से मेहनत मजदूरी कर परिवार का पेट पालता है। यही फरसा मजदूरी खोटी कर अपनी भांजी के विवाह में तीन दिन पूर्व जा कर अपने गधा गाड़ी से उसके समान को इधर उधर ले जा कर बहिन का शादी के काम में हाथ बटाता है। जब की उसका सगा भाई शंकर विवाह के एन दिन पहुंचता है। बहन जब फरसा को तीन दिन सहायता के लिए खोटी हुई उसकी मजदूरी के लिए पांच सो रुपए देना चाहती है तब वह यह कह कर कि इंकार कर देता है बहन के घर का एक रुपया भी पाप है, मैं धन से नहीं तो तन से तो मदद कर ही सकता है। फरसा काका की इस बात से प्रभावित हो कर शंकर की आंखें खुलती हैं जो सगा भाई होकर भी तीन दिन पहले नहीं आया। मजदूरी के पेटे रुपए लेने से इंकार करने पर शंकर उसकी मानवता का कायल हो जाता है।
**  संग्रह की कहानी " खेमू "ऐसा बच्चे की कहानी है जो अपने बाल सखा के साथ मेला देखने की उत्सुकता में घर के पशुओं के लिए दो समय की घास की मुठिया इकठ्ठी कर शाम को घर पहुंच कर बापू से कहता है मैं पशुओं के लिए घास ले आया हूं अब तैयार हो जाता हूं , निजू के साथ मेला देखने जाऊंगा। बापू उसके पास आ कर कहता है बाबोसा के घर कुंवर सा को देखने मेहमान आए हैं, वे अपने पशुओं के लिए घास नहीं ला सके होंगे , यह घास मैं उनको दे आता हूं। उनकी सहायता करना हमारा फर्ज है। वह घास की गठरी वहां दे आता है और खेमू को फिरसे घास लाने को कहता है। कहता है मेला तो हर साल आता है, बाबोसा के यहां मेहमान तो नहीं आयेंगे। मेला देखने की लालसा मन में लिए खेमू फिर से घास लेने चल देता है। ऐसी ही कहानियां " नई चप्पलें", "नया कुर्ता ", आटे के लड्डू", " बापू की अगवानी" और बच्चे की मजदूरी" जैसे मर्मस्पर्शी प्रसंग समाज के सामने अत्यंत दरिद्रता में भी जीवन मूल्यों की स्थापना करने वाले चरित्रों को सामने लाती हैं। इनके स्वाभिमान का एक छोटा सा अंश भी हमें अपने दुखों से तुलना करने को मजबूर करता है। 
**  कहानी " बड़े लोग " ऐसे  परिवार की कथा कहती है जिसका पति बमुश्किल कुछ कमा कर पत्नी और बच्चे के गुजारे के लिए दो - तीन महीने में कुछ रुपए भेज पाता है। पत्नी बड़े घर की सेठानी से ब्याज मुक्त दो हज़ार रुपए मदद के लिए लेती हैं। इस अहसान के बदले वह समय - समय पर सेठानी को कुछ न कुछ देती रहती है। उसका बच्चा जब उधार लिए रुपए लौटाने जाता है तो सेठानी के कपटपूर्ण व्यवहार से आहत हो जाता है और सेठानी पांच महीने के 300 रुपए ब्याज काट कर उसे यह कहते हुए, मूल तो मैं एक साथ ही लूंगी 1700 रुपए लौटा देती है। उसे न घर के अंदर आने को कहती है और न प्यास लगने पर पीने का पानी मांगने पर पानी ही पिलाती हैं।व्यवहार से आहत बच्चा भारी मन से घर लौट आता है। काली दिवाली, विद्यालय का समय, लापरवाही की कीमत, प्रतिभा का सम्मान, सपना, भिखारी की मजबूरियां, चौखी बारहवीं भी ऐसी ही कहानियां हैं जो समाज में व्याप्त व्यक्तित्व के दो विरोधी पक्ष, पाखंड और सामाजिक मूल्यों के आपसी द्वंद को शिद्दत से उभरती हैं। ये कहानियां वर्तमान सामाजिक ताने - बाने की सच्चाई को हमारे सामने रखती हैं। मानव स्वभाव का प्रतिबिंब हैं " कल्या - कृष्ण और " , "फुटपाथ की नींद" और " जीने की ललक" कहानियां। लैंगिक आकर्षण से परे यथार्थ  एवम्  आदर्शवाद के  मध्य संघर्ष को बताती हैं  " नीम का पेड़" और " सोजदी का भाई" प्रेम आधारित कहानियां।
**  पुस्तक में संकलित 22 कहानियां हमारे समाज का वो आइना है जो अभावग्रस्त गांवों के भोले - भाले लोगों में छुपे मानवीय मूल्यों और नैतिक चरित्र को समाज के सामने ला कर एक उदहारण पेश करती हैं। इन कहानियों में कहीं ना कहीं कालजई उपन्यासकार और कहानीकार मुंशी प्रेम चंद की छाया दिखाई देती है। लेखक ने जिन कठानको और पात्रों पर कहानी का ताना बाना बुनकर जिन विषयों को छूने का प्रयास किया है वह उनकी अंतर्दृष्टि और समाज के प्रति चिंतन को दर्शाती हैं। 
**  अपने लेखकीय में वे लिखते हैं कि कलेरा वास कभी राजस्थान में चुरू के पास एक छोटा सा गांव हुआ करता था, जहां इनका बचपन बीता और कहानियों की घटनाएं सत्य और यथार्थ का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो स्वयं देखी और महसूस की हैं। इसीलिए पुस्तक का शीर्षक भी " कालेरा बास की बातें " रखा गया है। पुस्तक भी उन्हीं भोले भाले लोगों को समर्पित है " जो निस्वार्थ भाव से अपने काम में लगे रहते है। जिनकी सच्चाई और स्वाभिमान भले ही अन्य लोगों से उन्हें पीछे कर दें, लेकिन उन्हीं मासूम और मेहनती लोगों के कारण समाज सुंदर दिखाई देता है।" कह सकते हैं कहानियों में कथानक का मुख्य पात्र मानवीय और सामाजिक धरातल पर अत्यंत संवेदनशील व्यक्तित्व का घनी है। भाषा सरल और ह्रदयग्राही है।
**  अमेजोन.काम द्वार इस पुस्तक पर लेखक को " बेस्ट सेलिंग ऑथर " की श्रेणी में रखना ही इनके लेखन की सफलता की कहानी कहता है। लेखक गद्य और पद्य दोनों विधाओं में लिखते हैं। ये पश्चिम - मध्य रेलवे में कोटा में उप मुख्य वित्त सलाहकार के रूप में सेवाएं प्रदान कर रहे हैं।
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समीक्षक : डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवम् पत्रकार, कोटा

 


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