GMCH STORIES

राष्ट्रप्रेम और विश्व शांति से प्रेरित डॉ. मनोरमा सक्सेना मनु की रचनाएं......

( Read 2079 Times)

15 Jun 24
Share |
Print This Page
राष्ट्रप्रेम और विश्व शांति से प्रेरित डॉ. मनोरमा सक्सेना मनु की रचनाएं......

               

सुख की थामें डोर, 

चलें हम विश्व शांति की ओर,

द्यौ शांत हो शांत गगन हो, 

सारी धरती शांत रहे, जल में शांति, 

शांति औषधि में, वनस्पति सब शांत रहें।

देश भक्ति, राष्ट्र निर्माण और विश्व शांति की  कामना एवं भावनाओं से प्रेरित रचनाकार डॉ. मनोरमा सक्सेना मनु  ने यह कविता " सुख की थामें डोर" लिखी है। यही संदेश दिया है कि ब्रह्माण्ड में चहुं ओर शांति रहे। कविता में आगे लिखती हैं................

निर्भय हो हर भोर, चलें हम विश्व शांति की ओर,

 सारा ही ब्रह्माण्ड शांत हो, देव सदाशय शांत रहें, 

सारा पर्यावरण शांत, मन सब के शांत प्रशांत रहें, 

जन मन रहे विभोर, चलें हम विश्व शांति की ओर.॥ 

सुख की थामे डोर, चलें हम विश्व शांति की ओर॥ 

** रचनाकर का सृजन चेताता है कि साहित्यकार एक जलती हुई मशाल की तरह समाज को राष्ट्रीय चरित्र देने की शक्ति बने। अपनी इन्हीं भावनाओं के वशीभूत वे पिछले सात वर्षों से देश की सीमा की रक्षा करने वाले जांबाज़ फौजियों के बीच पहुंचकर उनकी जिंदगी, शोर्य की गाथाओं, शहीद परिवार का अध्ययन कर अपने रचनाकर्म का आधार बना रही हैं। वर्तमान में ये फौजियों को केंद्र में रख कर एक उपन्यास लिख रही है। वर्तमान समय में विश्व शांति ही अभीष्ट है। इन्हीं विचारों पर लिखी इनकी एक और कविता की बानगी देखिए.....

हे जग के पालक ये उपकार कर दो, 

सारे जगत में बस प्यार भर दो , 

सुख शांति वैभव भरी हों  दिशाएं ,

हों स्वस्थ तन मन की सारी शिराएं, 

चिर शांति , चिर प्रेम विस्तार कर दो , 

सुखमय जिएं, दीर्घ जीवन भी पाए 

माकूल हो फिर से सारी हवाएं, 

योगाभिमय तन का हर तार कर दो, 

बारूद एटम यह जैविक लड़ाई 

सदी आज शापित है डर की समाई ,

हमें डर के साए से बस पार कर दो,

माना कि विज्ञान मंगल पर जाए , 

लेकिन सुनामी भी पग पग पे लाए , 

परम शांति से सारा ब्रह्मांड भर दो , 

निर्मल हृदय पूर्ण परिवार कर दो , 

सदा सच्चिदानंद का सार भर दो, 

हे जग के पालक यह उपकार कर दो , 

सबके हृदय में बस प्यार भर दो॥             

**   संवेदनशील, मानवीय भावनाओं और राष्ट्रीय विचारधारा से ओतप्रोत रचनाकार हिंदी और हाड़ोती भाषा में गद्य और पद्य दोनों विधाओं में  कविता, गीत, दोहे, ग़ज़ल

,कहानियाँ, लघु कथा, उपन्यास और 

व्यंग्य लिखती हैं। काव्य में तुकांत और अतुकांत दोनों प्रकार की कविताएं लिखी हैं। लेखन शैली सरल, सहज है।राष्ट्रीय विचार धारा से ओतप्रोत वीर रस की कविता है। कालिदास के सौंदर्य बोध, भवभूति की करुणा, तुलसी की सर्वोच्च समर्पण की भावना से मंत्रमुग्ध हैं। कबीर, निराला, दिनकर, गोपाल सिंह नेपाली को भी खूब पढ़ा है। सबसे ज्यादा  महात्मा गौतम बुद्ध के जीवन दर्शन से प्रभावित है। बालकल्य से ही साहित्य पढ़ने और लिखने में रुचि रही है। साहित्य सृजन इनकी सांसों में समाया हुआ है। अनुभूतियों के गहनतम क्षणों में इनकी कलम ने सदैव राष्ट्रीय चेतना से देश प्रेम से ओतप्रोत रचना की कल्पना की है। संस्कृति, संस्कार, संस्कृत साहित्य शास्त्र ने इतना प्रभावित किया कि सदैव स्वस्थ व स्वच्छ साहित्य अभियान की शक्ति को अपनी लेखन की शक्ति बनाया । एक गीत की ये पंक्तियां देखिए...........

वीरों की विरुधावली गाना,               

इस जीवन का काम यही है ।            

वीर सभा में शीश झुकाना ,।          

इस मस्तक का मान यही है ।          

वीर प्रसूता जननी पूजित,                 

वीर पिता की आन बहुत है।           

जहाँ वीर की यादगार है,                 

मेरे चारों धाम वहीं हैं।

**  रचनाकार के काव्य ख़ज़ाने से कतिपय लघु रचनाओं और दोहों की बानगी देखिए.....

( 1 ) शब्द शब्द परिचय है ,                        

और नया परिचय क्या,                 

 लहरें हम सागर की,                      

शून्य में समाना है ।                      

 रूप ,गंध ,स्पर्श ,त्वचा ,                 

रस का ही परिचय है  ।                 

प्राण की अकेले ही बांसुरी बजाना है।                                     

( 2 )  तरुवर मेरे तरुवर आंधी तोल रही है, 

मत डरो पखेरू कोयल बोल रही है। 

अपनी शाखों में तुम मजबूती लाओ,, 

रूठे जो उसको तुम हर तरह मनाओ,

बेदर्द हवा तरु को झकझोर रही है। 

तरुवर मेरे तरुवर आंधी तोल रही है।   

भोले पंछी तुम जाल में मत फस जाना 

भूखे रहना पर गलत ना दाना खाना , 

कुछ जहर पराई ताकत घोल रही है। 

उन बलिदानों की आज लाज रह जाए, 

हमको लाडवा कर लाभ न कोई उठाए।    

( 3 )

गुम कविता को ढूंढ रही हूं  ,           

 कहाॅ गई वह कोई बताएं           

रसवंती थी अति कमनीया             

भावभरी थी  नीरनदीया,।

**  गद्य विधा में मिट्टी की खुशबू व नारी विमर्श, भारतीय परिवार, परिवेश, पाश्चात्य संस्कृति के समावेश, बिखरते परिवार, बदलते जीवन मूल्यों से समरसता की  कोशिश कर जीने की कहानियाँ  लिखी हैं। कहनी इनकी अपनी मौलिक सूझबूझ और समय के साथ चलने के सामंजस्य है । निर्भीक, आशावादी, नि:स्वार्थ, बौद्धिक  प्रयासों से समाज को नई दिशा प्रदान करने वाली नारी पात्रों को कहानियों में गढ़ा है। जीवन को सरस ,सरल और मनोरम ढंग से जीने की अभिव्यक्ति लिए हैं कहानियां। जिस प्रकार मधुमक्खी विभिन्न फूलों से रस एकत्र कर शहद बनाती है,  बहुत मनोयोग से पूरी तन्मयता के साथ बयां अपना घोंसला बनाती है वैसे ही लेखिका ने भी आज के परिवेश की कहानियों को अत्यंत कुशलता पूर्वक प्रस्तुत करने का प्रयास किया है ।

** लेखिका के " मिट्टी की खुशबू " कहानी संग्रह में अठारह कहानियाँ शामिल हैं। गिरवी के कंगन, चंदन की शाख, मिट्टी की खुशबू, इक्कीसवीं सदी का परिंदा, डायरी एक हारी हुई औरत की, सबसे जहरीला, वह एक धड़कन ,एक और विभाजन , उजाड़ नदी, बॅटवारा, नींव का पत्थर। संग्रह की कहानियाँ सकारात्मक संस्कारों की कहानियाँ है इनमें समझदार नारी पात्रों की सृष्टि है, गहरी मनोवैज्ञानिक अंतर्दृष्टि एवं संस्कृति से जुड़ाव की छटा देखने को मिलती है। भारतीय जीवन मूल्यों की मजबूत डोर को थाम कर इन कहानियों के पात्र आज के बदलते हुए परिवेश में भी अपने आप को सार्थक भूमिका में पाते हैं। विश्वास और आस्था के सहारे जीवन का भरपूर आनंद लेते हैं । 

** इनके सृजन में "खोई हुई कविता " काव्य संग्रह में  राष्ट्र के सैनिकों का सम्मान तथा शहीदों के परिवारों से संबंधित कविताएं हैं।

"वीर चालीसा" संग्रह में  परमवीर चक्र विजेता सैनिकों के बारे में उल्लेख है । बाल साहित्य और शिशु गीत भी इनकी महत्वपूर्ण कृतियां हैं। इनकी कविताओं का सार है " भारत के राष्ट्रीय चरित्र की रक्षा, हमारी अस्मिता की सुरक्षा ।" इनके उपन्यास " माँ संग विवेकानंद "  में एक संन्यासी की माँ भुवनेश्वरी देवी के संघर्ष की  व्यथा कथा है। साथ ही स्वामी विवेकानंद के चिंतन का नवनीत भी इस उपन्यास में है। विगत 30 वर्षों से इनकी पुस्तक " अक्षर अल्पना " प्रौढ़ साक्षरता अभियान में चल रही है जो माँडनो से अक्षरों के  उद्भव की संकल्पना पर आधारित हिंदी वर्णमाला की पुस्तक है।

**  परिचय :

 वर्तमान समय की सामाजिक समस्या, हमारे देश के फौजी, विश्व शांति, हमारा राष्ट्रीय चरित्र, बिखरते परिवार, युवाओं के सपनों का आकाश और शिशुओं के भोले अबोध मन  पर कलम चलाने वाली रचनाकार डॉ. मनोरमा सक्सेना मनु का जन्म 5 अक्टूबर 1949 को बारां में पिता  राष्ट्र भक्त लाला रोशनलाल एवं माता कृष्णा सक्सेना विदुषी देश प्रेमी  के आंगन में हुआ। हाड़ोती में साहित्य सृजन की मशाल थामे रचनाकार ने हिंदी साहित्य में गोल्ड मेडल के साथ और संस्कृत साहित्य में स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त कर " राम चरित मानस में स्मृतियां " विषय पर शोध कर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की हैं। आपकी रचनाएं अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। समय - समय पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा आपको पुरस्कृत और सम्मानित किया गया है। 


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories : Headlines , Literature News
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like