GMCH STORIES

ऐसा देशभाई मेरा / साहित्य राधा तिवारी

( Read 5490 Times)

11 Apr 24
Share |
Print This Page
ऐसा देशभाई मेरा / साहित्य राधा तिवारी

विषय विशेष के बंधन से परे स्वतंत्र रूप से काव्य सृजन में रत राधा तिवारी एक ऐसी नवांकुर रचनाकार हैं जो स्वांतसुखाय लेखन करती हैं। अकेले में अपने आप ही ईश्वर से बात करना काव्य सृजन की प्रेरणा मानती हैं। विषय इनके लिए महत्व नहीं रखता, जब भी जो ख्याल आता है उसी पर लेखनी चल निकलती है। इनके लेखन का विश्लेषण इन्हें मानवीय संवेदनाओं से जोड़ता है और श्रृंगार रस विशेष है। पर्व ,त्योहार अंधविश्वास, तन्हाई , नायिका, अध्यात्म परिवार पर संबंधों पर कविता बनती गई। इनकी गद्य और पद्य शैली की रचनाएं हिंदी भाषा का प्रतिनिधित्व करती है। इनकी रचनाएं नवाचार के साथ समय के साथ बदलने का संदेश भी देती हैं। ज्यादा समय नहीं हुआ जब कोरोना काल में इन्होंने लिखना शुरू किया पर अल्प समय के सृजन में एक सुघड़ कवियित्री की झलक दिखाई देती हैं। मंच पर काव्यपाठ से दूरी बनाए रखते हुए प्रचार और पुरस्कार के मोह से दूर अपने लिखे पर स्वयं ही प्रसन्नता अनुभव करती हैं।
पंच भूत शरीर को एक दिन मिट्टी में मिल जाता है, मोह - माया के चक्कर में लग कर राम का सुमरिन बिसरा दिया और तेरी - मेरी के फेरे में बंधे रहते हो के कटु सत्य को " पंछी " कविता में बंद पिंजरे में पंछी को आधार बना कर जिस प्रकार खुबसूरती से आध्यात्म का पुट दिया है देखते ही बनता है.............
पिंजरे के पंछी सोच तुझे, एक दिन उड़ जाना है।
पिंजरे के पंछी सोच तुझे,एक दिन उड़ जाना है।
पांच तत्व का पिंजरे तेरा,जिसमें रैन बसेरा ।
पल पल यह हो रहा पुराना ,घटे दिवस और रैना।
बहुत गई अब थोड़ी बची है सफल इसे कर देना।
पिंजरे के पंछी सोच तुझे ,एक दिन उड़ जाना है।
छोड़ मोह पिंजरे का बंदे ,मान ले मेरा कहना।
कितने पंछी गए छोड़कर,सदा यहां नहीं रहना।
राम नाम का चुगले दाना, साथ यही है जाना।
पिंजरे के पंछी सोच तुझे ,एक दिन उड़ जाना है।
तेरा मेरा करते करते,आई काल की रैना.।
काल शिकारी खड़ा सामने ,धोखे में मत रहना।
अब तो प्रभु सुमिर ले बंदे,नहीं तो फिर पछतान।
पिंजरे के पंछी सोच तुझे ,एक दिन उड़ जाना है।
कहती राधा सुन मन पंछी,छोड़ मोह डाली का।
नीड छोड़ उड़ जा तू गगन में,कर ले संग हरि का।
सौंप दे उसके हाथों खुद को ,यही सार जिंदगी का।
पिंजरे के पंछी सोच तुझे, एक दिन उड़ जाना है ।
मानवीय संवेदनाओं की एक और बानगी इनकी " श्राद्ध" कविता में यूं झलकती है -
हमारे पूर्वजों ने कमा कर हमारे लिए छोड़ दिया और हमारे सपनों को पूरा करना के लिए अपने सपनों का त्याग किया उनके श्राद अवसर पर उनके साथ अपने बुजुर्गो को दुखी नहीं करने के संकल्प लेने का मानवीय संदेश दे कर वर्तमान में तिरोहित हो रही बुजुर्गो की सेवा भावना पर कटाक्ष कर अपने भाई की आकस्मिक मृत्यु पर सृजित कविता " श्राद्ध " में लिखती हैं............
नमन करें हम उन पूर्वजों को
जो देकर सब कुछ चले गए
जो भी कमाया इस दुनिया में
वह छोड़ हमारे लिए गए । 1 ।
पैसा कौड़ी माल खजाना
जो भी था उनके पास यहां
एक पल में हो गया पराया
गए वो खाली हाथ वहां ।
सारा जीवन कमा कमा के
हमको पैरों पर खड़ा किया
करके त्याग अपने सपनों का
सपना हमारा साकार किया ।
जिसको कहते अपना अपना
वह तो है उनका परसाद
गाड़ी बंगला बच्चे सर्विस
यह सब उनके आशीर्वाद ।
करते हैं हम एक प्रतिज्ञा
लेकर पूर्वजों को साथ
दुखी करेंगे नहीं बड़ों को
यही हमारा सच्चा श्राद्ध ।
" धरती का चांद " काव्य सृजन में बहती दिखाई देती है श्रृंगार रस की धारा । काव्य सृजन अद्भुत और अनुपम है जो दिल की गहराइयों तक सीधा उतर जाता है...
क्या उपमा दूं उपमा को ,
कोई शब्द नहीं आ रहा है।
देख तुम्हारा अनुपम सौंदर्य,
खुद चांद भी शर्मा रहा है।
उन्नत भाल गालों में लाली,
मांग सिंदूर से भर ली।
क्या कह दिया पिया ने ऐसा ,
जो आंखें नीची कर ली।
सुंदर है परिधान ,
हाथ में कंगन खनके।
गले में सोहे हार,
कान में कुंडल दमके।
कजरारे है नैन,
नाक में नथली चमके।
हाथ में कंगना और ,
बालों में गजरा महके।
कर सोलह सिंगार ,
लग रही रूप की रानी।
मनभावन है रूप ,
गले में चमके पानी।।
पद्य विधा में चैत्र माह में नव संवत सर से आरंभ होने वाले नए वर्ष पर लिखी इनकी अपील की खूबसूरत बानगी देखिए। मानवीय संवेदनाओं से भरपूर एवं नए साल पर जीवन भर शुभकनाएं करने की हिमायती लेखिका लिखती हैं काश हम सब नए साल के उपलक्ष में एक दिन हैप्पी न्यू ईयर कहने की जगह जीवन भर सभी के साथ शुभ शुभकामनाओं और शुभ कामनाओं के साथ पेश आए। घर हो, पड़ोस हो या फिर समाज, सभी को ऊपर उठते देख हमारा मन प्रसन्न हो। हमारे किसी भी कृत्य से किसी का दिल ना दुखे। हम मन ,वचन कर्म से सभी के प्रति वफादार रहे। सभी को प्रभु की संतान समझ आपस में भाई भाई का रिश्ता बनाए रखें। फिर देखिए दुनिया में हमें कोई पराया नहीं लगेगा। हमारा मन सदा पवित्र शांत और निर्मल रहेगा और फिर धरती पर चारों तरफ स्वर्ग ही स्वर्ग नजर आएगा। धरती पर स्वर्ग जादू से नहीं होगा हमारे ही नेक कर्मों से बनेगा। विक्रम संवत 2024 नए साल में हम सब इन्हीं भावनाओं के साथ प्रवेश करें तथा अंत तक इन भावनाओं को जिंदा बनाए रखें। तो आओ मिलकर करें प्रतिज्ञा।
जीवन परिचय
आध्यात्म से प्रेरित और मानवीय संवेदनाओं से लबरेज और स्वांतसुखाय सृजन करने वाली कवियित्री राधा तिवारी का जन्म बारां जिले के अंता कस्बे में 20 जुलाई 1970 को पिता मूलचंद शास्त्री और माता शांति बाई के आंगन में हुआ। इन्होंने संस्कृत विषय में स्नातकोत्तर और बीएड तक अध्ययन किया। चार साल की उम्र में पिता का साया सर से उठ गया और जीवन में कई मुसीबतों का सामना करते हुए आगे बढ़ी। सातवीं कक्षा में किसी व्यक्ति को अपनी आंखें दान करते हुए देख कर इनके मन में कभी अपनी आंखें दान करने विचार आया। बड़ी होने लगी मेरे मन में पूरी बॉडी दान करने की इच्छा उत्पन्न हुई और इन्होंने मार्च 2023 में अपनी बॉडी दान करने का निर्णय ले कर भारत विकास परिषद के माध्यम से फार्म भर दिया। पति धर्मेंद्र तिवारी के साथ सामाजिक सेवा में भी आगे रहती है। वर्तमान में आप
पंचायत समिति अंता के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय काचरी में 1999 से शिक्षिका धर्म का निर्वाह कर बच्चों में सुसंस्कृत कर ज्ञान ज्योति प्रज्ज्वलित कर रही है। अपने वीडियो के माध्यम से भी बच्चों को शिक्षा प्रद संदेश देती हैं, जो बच्चों में खासे लोकप्रिय हैं।
संपर्क : तिवारी एक्स-रे अंता, जिला बारा राजस्थान ।
----------


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories :
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like