GMCH STORIES

कविता-मानव का दम्भ

( Read 9541 Times)

06 Oct 21
Share |
Print This Page

- लक्षमीनारायण खत्री

कविता-मानव का दम्भ

तेरे
तितर-बितर 
रिश्ते 
वापस आत्मा से 
कभी नहीं जुड़ते 
मन के 
बंद दरवाजे 
पर लगे 
अलगाव के ताले 
नहीं खुलते 
जब तक 
इंसान के 
भीतर भरे 
दम्भ का नाश 
नहीं होता 
तेरे मानव
होने का
एहसास नहीं होता।


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories :
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like