उदयपुर, सलिल प्रवाह के संपादक श्री प्रकाश तातेड़ 3 अप्रैल 1950 को अपने आयुष के 75 वर्ष पूर्ण कर चुके हैं । इस गौरवशाली अवसर पर सलिला संस्था सलूंबर द्वारा उनके साहित्यिक योगदान पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस आयोजन में देश भर से पचपन से अधिक साहित्य प्रेमी और साहित्य सृजक सम्मिलित हुए। सभी ने खुले मन से, भावुकता के साथ प्रकाश तातेड़ को बधाई दी और शतक पूरा करने की शुभकामनाएं भी दी। इस ऑनलाइन कार्यक्रम के लिए समस्त तकनीकी सहयोग अणुव्रत विश्व भारती द्वारा प्रदान किया गया।
अणुव्रत एवं बच्चों का देश पत्रिका के संपादक, विचार एवं आचरण से अणुव्रती श्री संचय जैन ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की। इस कार्यक्रम में विशिष्ट वक्ता मथुरा, उत्तर प्रदेश से श्री संतोष कुमार सिंह, भोपाल, मध्य प्रदेश से डॉ. लता अग्रवाल, दिल्ली से श्री अनिल जायसवाल, अहमदाबाद, गुजरात से श्री श्याम पलट पांडे, सिरसा, हरियाणा से डॉ. शील कौशिक, इंदौर, मध्य प्रदेश से श्री गोपाल माहेश्वरी रहे।
कार्यक्रम की संयोजक एवं सलिला संस्था सलूंबर की अध्यक्ष डॉ विमला भंडारी ने विषय का प्रवर्तन करते हुए श्री प्रकाश तातेड़ के चार दशकीय साहित्यिक जीवन के प्रारंभिक वर्षों की गतिविधियों का उल्लेख किया। लखनऊ, उत्तर प्रदेश से श्रीमती नीलम राकेश ने संपूर्ण कार्यक्रम का सुचारु संचालन किया ।
बाल साहित्यकार एवं कवि श्री संतोष कुमार सिंह ने कहा कि प्रकाश तातेड़ जी बाल साहित्य के आकाश को अपनी बाल कविताओं के द्वारा चमत्कृत कर रहे हैं। डॉ लता अग्रवाल ने प्रकाश जी की प्रिय विधा अर्थात् पहेली विधा की विशेषताओं को उदाहरण सहित बताने के साथ ही उनके व्यक्तित्व के एक महत्वपूर्ण पहलू को रेखांकित करते हुए कहा कि अवरोधों को झेलकर कैसे आगे चला जा सकता है, इसकी मिसाल हैं प्रकाश तातेड़ जी।
पायस पत्रिका के संपादक एवं कहानीकार श्री अनिल जायसवाल ने बताया कि तातेड़ जी जुलाहे की तरह कहानी बुनते हैं। पूरे मनोयोग के साथ अपनी कहानी के साथ जुड़ते हैं। कोई भाषण नहीं, कोई आदर्श नहीं, बस परिस्थितियों के सहारे बच्चों तक अपनी बात पहुँचा देते हैं। आयकर आयुक्त से बाल साहित्यकार बने श्री श्याम पलट पांडे जी ने सुंदर, समीक्षात्मक ढंग से प्रकाश तातेड़ के संपादन कौशल को प्रकट किया। पांडे जी ने कहा कि प्रकाश तातेड़ जी एक ऐसे संपादक है जिसके अंदर संपादक होने का गुरुर नहीं है। बाल साहित्यकार एवं विख्यात लघु कथाकार डॉ. शील कौशिक ने कहा कि तातेड़ जी की लघुकथाओं की विशेषता है घनीभूत संवेदना, यथार्थ परकता, प्रखरता, व्यंगात्मक तथा उद्देश्यपूर्ण एवं सटीक अभिव्यक्ति। सहज सरल संप्रेषणीय भाषा उनकी लघुकथा की पहचान है।
प्रतिष्ठित पत्रिका देवपुत्र के संपादक श्री गोपाल महेश्वरी ने कहा - "मैं अनुभव करता हूँ कि इस प्रकाश के प्र में प्रतिबद्धता, का में कार्य दक्षता, श में शब्द साधना समाहित हैं। वे अपने माता-पिता द्वारा दिए गए नाम को सार्थक कर रहे हैं।"
कार्यक्रम के केंद्र बिंदु श्री प्रकाश तातेड़ सभी वक्ताओं के उद्बोधन से अभिभूत थे। सबके प्रति आभार व्यक्त करते हुए बोले- “सलिला संस्था सलूंबर की अध्यक्ष डॉ. विमला भंडारी ने मेरे जन्मदिन पर यह विशेष आयोजन किया। इसमें मेरे द्वारा साहित्य की विभिन्न विधाओं- लघुकथा, बाल कविता, बाल कहानी, पहेलियां एवं संपादकीय कौशल पर व्यापक विश्लेषण युक्त चर्चा हुई जो मेरे लिए दिशाबोधक है। संपूर्ण आयोजन मेरे लिए प्रेरणाप्रद है। सलिला संस्था और बच्चों का देश से जुड़ने से मुझे एक राष्ट्रीय पहचान मिली और मेरे सृजन को सही रास्ता मिला।" ऑनलाइन जुड़े साहित्यकारों में से डॉ उमेश चंद्र सिरसवारी ने कहा कि प्रकाश तातेड़ जी का कहानी कहने का तरीका बहुत अच्छा एवं रोचक है। वे विज्ञान कथाओं के क्षेत्र में शानदार कहानियाँ लिखते हैं ।
सरल व्यक्तित्व और सुविचारों के धनी श्री संचय जैन ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि जिनका बच्चों के साथ सीधा संबंध होता है तो लेखन में जान आ ही जाती है। तातेड़ जी की पहचान उनके नवाचार से बनी। संचय जी ने कहा कि जीवन में एक ऐसा मोड़ आता है जब लोग बताते हैं कि आप क्या हैं और आज प्रकाश तातेड़ जी वही अनुभव कर रहे हैं।
अंत में श्रीमती मधु माहेश्वरी, सलूंबर ने सभी वक्ताओं और अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया। सभी वक्ताओं ने निर्धारित समय अनुसार अपना सारगर्भित वक्तव्य दिया। कुछ वक्ताओं ने काव्यात्मक अभिव्यक्ति देकर कार्यक्रम को रोचक बनाया। ऑनलाइन जुड़े साहित्यकारों ने सलिला संस्था के इस नवाचार की भूरि-भूरि प्रशंसा की।