प्रस्तुति : डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
(युवा कवि-उपन्यासकार किशन प्रणय द्वारा वरिष्ठ कथाकार और समीक्षक विजय जोशी से साक्षात्कार)
वरिष्ठ कथाकार-समीक्षक विजय जोशी ने कहा कि किसी भी लेखक के शब्द तभी प्रभावी होते हैं जब उनके भाव समृद्ध होते हैं। कृति समीक्षा में अनावश्यक तुलना लेखकीय परिवेश को प्रभावित कर देती है। यह विचार उन्होंने युवा कवि-उपन्यासकार किशन प्रणय से बातचीत के दौरान व्यक्त किए।
किशन प्रणय ने चर्चा में कहा कि कोटा में उभरते रचनाकार विजय जोशी के संपर्क में आकर अपने लेखन में निरंतर प्रगति करते हैं। इस संदर्भ में जोशी ने कहा कि समीक्षा करते समय भारतीय साहित्य की तुलना पाश्चात्य साहित्य से करना लेखक के परिवेश को नष्ट कर सकता है। उन्होंने कहा कि प्रायोजित पुस्तकें विचारों को सीमित कर देती हैं, जबकि नैसर्गिक लेखन विचारों को विस्तार देता है।
विज्ञान और पर्यावरण पर अपने लेखन की शुरुआत को याद करते हुए जोशी ने बताया कि उनका पहला आलेख 'कटते हुए वृक्ष : गहराता हुआ प्रदूषण' 1985 में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद उन्होंने अनेक विषयों पर लेखन किया। उनकी पहली कहानी 'टीस' आकाशवाणी कोटा से प्रसारित हुई, जिससे कथा लेखन को लेकर उनका आत्मविश्वास बढ़ा।
उन्होंने बताया कि अब तक वे दो हिंदी उपन्यास, पाँच हिंदी कहानी संग्रह, चार हिंदी समीक्षा ग्रंथ, दो राजस्थानी कहानी संग्रह और एक राजस्थानी समीक्षा ग्रंथ प्रकाशित कर चुके हैं। उनके राजस्थानी अनुवाद को 'बावजी चतर सिंह अनुवाद पुरस्कार' भी प्राप्त हुआ है।
अपनी कहानियों में भावों की प्रधानता पर ज़ोर देते हुए उन्होंने कहा कि साहित्य में शब्दों से अधिक भाव महत्वपूर्ण होते हैं। शब्द भावों के साथ स्वयं प्रवाहित होते हैं, इसलिए भाषा के साथ कृत्रिम प्रयोग आवश्यक नहीं है।
साहित्य में नवाचार पर बोलते हुए जोशी ने कहा कि साहित्य समाज का प्रतिबिंब होता है और नई पीढ़ी के लिए मार्गदर्शक हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि लेखकों को नई सोच के साथ साहित्य सृजन करना चाहिए। इस संदर्भ में उन्होंने अपनी एक लघुकथा भी प्रस्तुत की।
अंत में, जब श्रोताओं ने उनसे उनकी पसंदीदा गीत सुनाने का अनुरोध किया, तो उन्होंने "रे बंधु तेरा कहाँ मुकाम, भोर हुई जब सूरज निकला छूटा तेरा धाम" को भावपूर्ण तान में गाकर सुनाया, जिससे श्रोता भाव-विभोर हो गए।