GMCH STORIES

हाड़ौती के मंदिरों की महिमा बताएगी पुस्तक

( Read 4047 Times)

12 Jul 24
Share |
Print This Page

हाड़ौती के मंदिरों की महिमा बताएगी पुस्तक

कोटा / आज देश मंदिर संस्कृति की ओर बढ़ रहा है। ऐसे  में कृति "हाड़ौती के मंदिर" पुस्तक का प्रकाशित होना महत्वपूर्ण है। राजस्थान में झालावाड़ जिले के जाने माने इतिहासकार महाराणा कुम्भा पुरस्कार प्राप्त  ललित शर्मा की आई नई पुस्तक हाड़ोती के मंदिर किसी भी प्रकार शोध कृति से कम नहीं है। काफी परिश्रम कर, प्रामाणिक ग्रंथों का अध्ययन और स्वयं स्थल पर जा कर प्रमुखत: इस कृति में भरपूर कोशिश रही है भीमगढ़, काकूनी, देहलनपुर, बूढादित,अटरु, विलास गढ़,छिनहारी पनिहारी, रटलाई,नकलंग, चंद्रमौलेश्वर, नागदा,सहरोद,चार चौमा,
कोलाना,ढोटी,कंवलेश्वर, केशवराय पाटन आदि 40 मंदिरों की जानकारी समाहित की गई है। यह पहली पुस्तक है जो हाड़ोती के चारों जिलों कोटा ,बारां, बूंदी एवं झालावाड़ के प्रमुख मंदिरों की जानकारी एक ही स्थान पर उपलब्ध कराती है। खास बात यह है कि इन मन्दिरों की जो मूर्तियां विभिन्न संग्रहालयों में हैं उनकी भी जानकारी मय कला व शिल्प वैशिष्ट्य उपलब्ध कराई है जो उस स्मारक के समग्र अध्ययन में अति उपयोगी सिद्ध होगी। पुस्तक में 113 फोटो यथा स्थान दिए गए हैं।
      मंदिरों के स्थापत्य, शैली एवं मूर्तिकला विज्ञान का पूरा ध्यान रखा गया है। कुछ अध्याय ऐसे भी हैं जिनसे मंदिरों के विभिन्न भागों को और मूर्तियो की स्थिति को आसानी से समझा जा सकता है। हाड़ोती क्षेत्र के मंदिरों के बारे में जानने के जिज्ञासुओं के लिए यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज होने के साथ - साथ पुरातत्वविदों के लिए अत्यंत उपयोगी  संग्रह है। शोधार्थियों के लिए अपरिहार्य संदर्भ ग्रंथ है।
       हाडौती पुरा सम्पदा से मालामाल क्षेत्र होने के बावजूद अपनी उपलब्ध विरासत को प्रकाशित करने में नाकाम रहा। इतिहास लेखन भी राजवंशों के संरक्षण में ही लिखे जाने से इस क्षेत्र को उपेक्षा ही मिली। कभी मालवा का हिस्सा रहा व परवर्ती काल में विभिन्न राजपूत राजवंशो के आधिपत्य में रह कर वर्तमान में राजस्थान का सुदूरवर्ती दक्षिणी पूर्वी छोर है।
      हाडौती में प्रागैतिहासिक काल से लेकर नागवंश , प्रतिहार , परमार , सूर , मुगल वँशो के अतिरिक्त विभिन्न राजपूत राजवंशो के आधीन एक सीमावर्ती क्षेत्र रहा। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में पुरातत्व विभाग की स्थापना के साथ कुछ उत्साही ब्रिटिश अन्वेषकों द्वारा इन अमूल्य विरासतों की खोज तो की गई लेकिन इनके ऐतिहासिक , पुरातात्विक व कलात्मक पक्ष की विवेचना का अभाव रहा। जो इनके गम्भीर अध्येताओं व जिज्ञासुओं को खलता था।
       इतिहास के क्षेत्र में देश में अपना विशिष्ठ स्थान बना चुके  इतिहासकार एवं गम्भीर अध्येता ललित शर्मा, झालावाड़ की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक हाड़ोती के मंदिर इस दिशा में सराहनीय व स्तुत्य प्रयास है। पुस्तक में लेखक नें मन्दिरों का इतिहास , शिल्प , कला पक्ष आदि की सरल शब्दों में जनसामान्य को बोधगम्य भाषा,शैली में विस्तृत विवेचन किया है। इतिहास के विविध पक्षों पर इन्होंने अब तक 16 पुस्तकों का लेखन कार्य किया है । इस गुरुत्तर कार्य के लिए इनको मेवाड़ फाउण्डेशन ट्रस्ट उदयपुर द्वारा " महाराणा कुम्भा पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
   इस पुस्तक का प्रकाशन साहित्यागार, जयपुर द्वारा किया गया है। इसका मूल्य 500 रुपए हैं। पुस्तक एमेजॉन और फिलिपकार्ट पर उपलब्ध है।
     उल्लेखनीय है कि कुछ समय पूर्व लेखक और इतिहास अध्ययेता डॉ.प्रभात कुमार सिंघल और कोटा राजकीय संग्रहालय के पूर्व  अधीक्षक पुरातत्व उमराव सिंह के संयुक्त लेखन में आई पुस्तक हाड़ोती का पुरा वैभव भी इसी श्रंखला की महत्वपूर्ण पुस्तक है।


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories :
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like