कोटा । कोटा शहर के महावीर नगर थाना प्रभारी महिला इस्पेक्टर कला चौधरी पर सट्टे के अड्डे चलाने के आरोप लगाते हुए उन्हें समाज में बेइज्जत कर निलंबित किया है वह सरासर महिला इंस्पेक्टर कलावती चौधरी के साथ अन्याय और नाइंसाफी है। पुलिस विभाग द्वारा निलंबित करना तबादले करना सामान्य प्रक्रिया है लेकिन कई बार पुलिस के आला अफसर अपने मातहतों को सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक दबाव के चलते निलंबित करने की सजा दे देते हैं। यदि हम सट्टे के अड्डे जुए के अड्डे अवैध शराब तस्करी की बात करें तो शायद कोटा शहर एक भी ऐसा थाना नही है जिसमे यह अपराध नही होते हो। ऐसी आरोपों पर निलंबन करने की कार्यवाही की जाएगी तो शहर के सभी थाना प्रभारियों को निलंबित करना पड़ेगा क्योंकि शहर में ऐसा कोई थाना नहीं है जहां पर इस तरह के अपराध ना होते हैं यह अलग बात है यह कहीं खुल्लम खुल्ला होते हैं तो कहीं थाना प्रभारी के डर के मारे छुपकर होते हैं लेकिन होते सब जगह है। शहर पुलिस अधीक्षक केसर सिंह शेखावत की क्लास टीम ने पहले भी कई स्थानों में जाकर सट्टे के अड्डे पकड़े हैं तब उन थाना प्रभारियों को क्यों निलंबित नहीं किया गया। शहर में चलने वाले सट्टे के अड्डे, अवैध शराब तस्करी, जुए के अड्डे की जानकारी शहर पुलिस कप्तान को भी मालूम है और उनकी स्पेशल टीम के लोगों को भी मालूम है लेकिन हमेशा ऐसे आरोप लगाकर किसी सीआई को निलंबित नहीं किया जाता है हम बेईमानी और ईमानदारी की बात नहीं कर रहे हम सिस्टम की बात कर रहे हैं कि जो आरोप लगाकर महिला इंस्पेक्टर कलावती चौधरी को निलंबित किया है वह सरासर अन्याय और नाइंसाफी है। पुलिस विभाग में निलंबन वैसे कोई बड़ी सजा नहीं है लेकिन जिस तरह समाचार पत्रों में छवि खराब की जाती है उससे निलंबित होने वाले को दुख होता है। महिला इंस्पेक्टर कलावती चौधरी कुछ दिनों निलंबित रहने के बाद वापस ड्यूटी पर आ जाएंगी लेकिन उन्हें इस बात का दुख रहेगा कि उन्हें बेवजह के आरोपों को लगा कर निलंबित किया गया था। महिला इंस्पेक्टर कलावती चौधरी की राजनीतिक पहुंच नहीं हो जिसके कारण उन्हें निलंबित होना पड़ा हो। जिस तरह उन पर आरोप लगाए गए उससे तो ऐसा लगता है कि कोटा की मात्र एक ही महावीर नगर थाने में सट्टे के अड्डे चल रहे हैं।उनकी भी राजनीतिक पहुंच होती तो शायद उनको निलंबित नहीं किया जाता। महिला इंस्पेक्टर कलावती चौधरी अभी तक पीड़ितों को न्याय दिलाने का काम कर रही थी स्वयं पीड़ित है। स्पेक्टर कलावती चौधरी अपनी पीड़ा किसी को बता भी नहीं सकती और इंसाफ की मांग भी नहीं कर सकती है। क्योंकि पुलिस विभाग में अनुशासन के नाम पर बड़ी-बड़ी सजाएं दी जाती है। इसलिए पुलिस महकमे में अफसरों और कर्मचारियों को चुपचाप अपनी पीड़ा सहनी पड़ती है।