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हाड़ौती अंचल के महिला काव्‍य से निकलता संदेश

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30 Nov 24
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हाड़ौती अंचल के महिला काव्‍य से निकलता संदेश

कोटा साहित्‍य का समाज से सीधा सीधा संबंध रहता है। साहित्‍यकार   समाज से अनुभूतियाँ लेता है और समाज को ही लौटा देता है। महादेवी अपने काव्‍य में कहती हैं- ''मैं नीर भरी दुख की बदरी'' तो करूणा से स्‍पंदित भाव छोड़ देती है और जब सुभ्रदा कुमारी चौहान लिखती है- ''सिंहासन हिल उठे राजवंशों से भुकुटी तानी थी, बूढ़े भारत में आई फिर से नई जवानी थी''। तो वो जैसे जवानी को नई चुनौती देती दिखाई देती है। राजस्‍थान से भी प्रभा ठाकुर कहती है:

''शब्‍द अर्थहीन हो गये

जब से तुम जहीन हो गये''।

जिस तरह कवि समाज को संदेश देते दिखाई देते हैं उसी तरह कवयित्रियों के स्‍वर भी कम तो नहीं है। पिछले वर्षों में कोटा महानगर में दो महिला संगठनों आर्यन लेखिका मंच और रंगितिका कला-साहित्‍य संस्‍थान सृजनात्‍मक प्रवृतियों से जुड़े रहे है। इनसे लेखिकाओं की एक लम्‍बी श्रृंखला सामने आई है। इनमें से अधिकांश कवयित्री हैं। 

इन महिलाओं के काव्‍य से श्रृंगार, करूणा, वीर रस सभी निसृत होता हैं, तो बालकाव्‍य, समकालीन काव्‍य की भी ध्‍वनि सुनाई देती है। इनकी कविताएँ मन के घनीभूत अध्‍यात्‍म मंथन से आई है, तो कही प्रकृति प्रेम से, तो कहीं प्रेम से, तो कहीं समाज की विद्रुपताओं से इस प्रकार कहीं न कहीं इनका काव्‍य विविध दिशाओं में संदेश देता दिखाई देता है। आज हाड़ौती अंचल में कवयित्रियों के काव्‍य से चहुँमुखी रसधार निकल रही है।

    इस काव्‍य में कहीं कहीं दर्शन और चिंतन के अप्रतिम स्‍वर भी है। डॉ. नील प्रभा नाहर का मूल स्‍वर राष्‍ट्रावाद, आध्‍यात्‍म और दर्शन का है। नश्‍वर देह को संदेश देती उनकी पंक्तियाँ-

मिट्टी में बनकर मिट्टी हो जाना है

खाली हाथ आये थे खाली हाथ जाना है

उनकी यह पंक्तियाँ से हमारी अगली पीढ़ी की शीर्ष क‍वयित्री शकुंतला रेणु याद दिलाती है जो कहती है:-

निज जीवन का सार न देखा

दु:ख बिन दूजा

कहीं प्रेम के साथ न देखा

दु:ख बिन दूजा (मधु संजीवन)

उन्‍हीं की धरती झालारापाटन से निर्मला आर्य कहती हैं-

टूट रहे परिवार ये रिश्‍ते, बिखर रहे ये सपने

कल तक जो अपने थे वो भी लगते नही हैं अपने

हाड़ौती अंचल में राष्‍ट्रीय स्‍तर पर प्रकाशित होने वाली कवयित्री डॉ. कृष्‍णा कुमारी ''कमसिन'' भी हैं। जो राजस्‍थान साहित्‍य अकादमी उदयपुर सहित विभिन्‍न संस्‍थाओं से सम्‍मानित है। उनके काव्‍य में माधुर्य भी है, उर्दू अदब भी और बाल काव्‍य विधा भी है। उनका अनुभव जन्‍य काव्‍य कहता है:-

शब्‍द नहीं जानते

रंग भेद/वर्ग भेद.....

    जाति से/ धर्म से/ ऊँच नीच से/ दूर हैं इतने

जितनी धरती से दूर निहारिकाएँ.....

इस अंचल से अपने समय से कवि कर्म से राष्‍ट्रीय कवि मंचों का प्रतिनिधित्‍व करने वाली कवियित्री का नाम कुसुम जोशी है। उनके साथ मैंने भी गीत पढ़े है वो बहुमुखी प्रतिभा की धनी है और नई पीढ़ी के लिए प्रेरक भी है। उनके काव्‍य को इस मुक्‍तक से समझा जा सकता है:-

चहुँ दिशाओं में बादल गरजने लगे

भय दिखाने लगे और बरसने लगे

ज्‍यों ही देखा मेरे धीर विश्‍वास को

वेग से आ रही आँधियाँ टल गई।

उनका काव्‍य हाड़ौती के यशस्‍वी कवि रघुराज सिंह हाड़ा की याद दिलाता है। मन में एक प्रबल इच्‍छा थी एक सपना था हाड़ौती अंचल की समस्‍त विदुषी लेखिकाएँ एक जगह देखने को मिले। यह सपना पूरा किया लेखक और पत्रकार डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने जो कृति सामने लाये ''नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान''। यह कृति कितनी ही संभावनाओं और नारी लेखन के विमर्श के विभिन्‍न आयामों के द्वार खोलती है। कृति के आद्योपांत हाड़ौती अंचल की लेखिकाओं के सृजन कर्म को समझा जा सकता है।    

इस कृति की प्रथम नवोदित कवियित्री अदिती शर्मा 'सलोनी' बकानी इसमें पर्यावरण का संदेश देती दिखाई देती है-

यह पर्यावरण हमारा हैं, हमको प्राणों से प्‍यारा है

  है जीवन का आधार यही है, निराकार साकार यही है

  उपहार है अनुपम ईश्‍वर का, और धरती का श्रृंगार यही

  सौंदर्य इसी से सारा है, यह पर्यावरण हमारा है।

इस कृति में कोटा की क‍वयित्री जयपुर निवासी अक्षयलता शर्मा के काव्‍य का राष्‍ट्रीय स्‍वर भी सुनाई देता है-

राणा प्रताप की धरती, आ सूरां की धरती

      ई धरती के खातर छोड्या राजनिवास

      जंगल जंगल भटक गया वै पीग्‍या गाढ़ी प्‍यास।

यही जीवन दर्शन हैं कि यहाँ गम भी है खुशी भी है। इन सबसे समन्वित जीवन है इसको लेकर अनुराधा शर्मा ''अनुद्या'' कहती हैं-

जीवन मधु का प्‍याला भी

हालातो को पीना पड़ता है

यही जीवन राग है यहाँ मौसम की तरह लोग और हालात से बदल जाते है। इसे लेकर अर्चना शर्मा कहती है-

वक्‍त नही बदलता

बदलते है लोग रिश्‍ते/ मौसम

बदलते है दिन रात सुबह शाम

जिदंगी कल्‍पनाओं, भावनाओं, संभावनाओं का खेल है। डॉ. हिमानी भाटिया एक सुनसान शाम अपनी माँ को याद करती है-

तुम होती तो बहुत कुछ होता माँ

तेरे बिन खाली खाली लगता है माँ

इस कृति में बहुत से रिश्‍ते दिखाई देते हैं। इन्‍हीं रिश्‍तों में से एक रिश्‍ता बेटी का भी है। डॉ. इंदु बाला शर्मा बेटियों को याद कर कहती है:-

जीवन संघर्ष की आँधी सहती है बेटियाँ

गर्भ में ही दम तोड़ती है बेटियाँ

प्रेम संसार का मूल है इसी से संसार सुंदर दिखाई देता है। मनुष्‍य प्रकृति से प्रेम करे समाज में प्रेम करे स्‍वयं से प्रेम करे-

पत्‍थरों से प्रेम कर रहे हो तुम

चाह होनी चाहिए

बंजर में अंकुर उपजाओं तुम

चाह होनी चाहिए

डॉ. कंचना सक्‍सेना महाविद्यालय कोटा में हिन्‍दी विभागाध्‍यक्ष भी रही है प्राचार्य भी रही है। उनकी हिन्‍दी साहित्‍य सेवा अविस्‍मरणीय रही है। उनके समकालीन का‍व्‍य से:-

    झूठे वादे, नकली रिश्‍ते/ चमक से/ चौधिंयाते मानव को/ और छल कपट से/ अंकुरित स्‍वार्थ/ चाट रहा है विश्‍वास को/ चलो एक बार/ फिर एक बार/ फिर एक बार करें प्रयास/ अमानव मन में/ मानवता ढूँढ़ते का।

मंजू किशोर 'रश्मि' गीत और समकालीन काव्‍य दोनों विधाओं में सृजन करती हैं। वो एक दिन नामवर होगी ही बशर्ते है वो सतत् लिखती रहे। उनके समकालीन काव्‍य की पहचान यूं की जा सकती है-

     खड़ा है मौन/ विरह ख्‍याल/ डस गया कब कैसे/ विप्रलंभ श्रृंगार/ स्निग्‍धा खो तृष्‍ण क्षय/ प्रौढ़ता लिए खड़ा है

    डॉ. मनोरमा सक्‍सेना 'मनु' अग्रज पीढ़ी की कवयित्री है। वो उन हिन्‍दी विभागाध्‍यक्ष में रही हैं जिन्‍होंने हाड़ौती गौरव रघुराज सिंह हाड़ा पर सर्वप्रथम शोध कार्य करवाया था। उनके गीत के स्‍वर संदेशपरक है:-

गुम कविता को ढूँढ़ रही हूँ

कहाँ गई वह कोई बताए

रसवती थी अति कमनीया

भावभरी थी नीर की नदीया

इसी श्रृंखला स्‍नेहलता शर्मा की काव्‍य की धारा को ले सकते है। वो जीवन को बड़ी गंभीरता से देखती है उनका एक जीवन संघर्ष का गीत-

जीवन का संघर्ष अकेले लड़ना है

ढूँढ़ों न अविलम्‍ब अकेले बढ़ना है

कंटक पथ पर चलने से क्‍यों डरते हो।

निर्भय हो जाओ इतने कि भय को डरना है।

बच्‍चों का संदेश देती वरिष्‍ठ कवियत्री श्‍यामा शर्मा राजस्‍थानी लोक साहित्‍य से अपनी यात्रा प्रारंभ करती है और बाल काव्‍य में रम जाती है-

बच्‍चों का बचपन न छीनो?

पढ़ना लिखना न इनका रोको

समकालीन काव्‍य में मेघना 'तरूण' भी हैं जो अपनी पहली कृति से ही पहचान बना लेती है। उनमें नामवर कवयित्री बनने की पूरी संभावना हैं-

वो कहती हैं –

तुम प्रयासों से न थकना

ऊँचाईयाँ तुम्‍हें गिराने के लिए नहीं

पैरों तले रखने के लिए बनी है।

रामगंजमंडी की डॉ. निशा गुप्‍ता ने फणीश्‍वर नाथ रेणु के साहित्‍य पर शोध कार्य किया है। वो भी जिंदगी का संदेश यूं देती नजर आती है।

जिंदगी एक सफर है सफर ही रहेगा

मजा इसमें क्‍या है यही देखना है

प्रार्थना भारती शिक्षाविद् हैं। उनका लम्‍बा अनुभव है शिक्षा के क्षेत्र में लेकिन जिंदगी का भी कम तो नहीं-

अजीब लोग, अजीब मंजर

अजीब दुनिया के रहबर हो गए है।

    प्रज्ञा गौतम का जितना सुंदर वैज्ञानिक कथाओं का साहित्‍य है उतना सुंदर है उनका काव्‍य है। उनके प्रतीक और बिम्‍ब लाजवाब है-

बादल बन अमृत कलश

बूँद बूँद भरा

तृप्‍त हुई रूदन कोशिनी

पीत वसना धरा

    प्रतिमा पुलक झालावाड़ की हैं, उनके काव्‍य पर मंचों का प्रभाव हैं। काव्‍य में वो अपना प्रभाव शिदृत से छोड़ती है देखा जाए तो उन्‍होंने देखते ही देखते मंच के साथ साथ राजस्‍थानी लेखिकाओं में  भी अपना महत्‍वपूर्ण बना लिया है।

कैसी ज्‍वाला फैल रही है बापू तुमसे क्‍या बोलूं

हर कोई भयभीत खड़ा है, किस काँधे दुखड़ा रोलूं।

    डॉ. रौनक रशीद खान जीवन के हर रंग में रंगी वरिष्‍ठ शायरा है। उनकी शायरी में उनका अनुभव बोलता हैं-

हकीकत है झूठी कहानी नहीं है

समंदर में पीने का पानी नहीं है

    शमा 'फिरोज' भी वरिष्‍ठ शायरा है। उनकी शायरी मैं स्‍व है उनका परिवेश हैं देश भक्ति है, समय है उनकी ग़ज़ल से ही एक शेर-

दिखाती मुफलिसी है जिंदगी में रंग बहुतेरे

अभावों में यह मुफलिस जीता है सरकार क्‍या जाने।

    प्रो. सज्‍जन पोसवाल ने माँ का अनूठा प्‍यार पाया है। उनका गद्य साहित्‍य जितना सुंदर है उतना ही उनका काव्‍य भी लाजवाब हैं उनकों काव्‍य से- 

तुम शब्‍द हो, भाव हो विचार हो थाम लेती हो

मेरी वेदना को सच्‍चे दोस्‍त की तरह।

    कृति 'नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान' देखें और अलग से हटकर रिश्‍तों पर बात करें तो डॉ. संगीता देव अपने पापा पर कविता करती दिखाई देती है:-

मुझे फिर से सीने से लगा लो ना पापा

फिर से वही रानी बिटिया बना लो ना पापा

    बारां की शकुंतला साहू 'कुंतल' वरिष्‍ठ कवयित्री है वो काव्‍य की हर विधा में लिखती है इन दिनों वह दोहे बड़े असरदार लिख रही हैं-

नागफनी मुस्‍करा रही, हँसता घोटाथूर

जूही चंपा मोगरा, हैं बगिया से दूर।

    डॉ. शशि जैन नारी पर बात करती दिखाई देती है-

नारी है शक्ति है नर की

नारी ही है शोभा घर की

बूंदी की सुमनलता शर्मा भी इन दिनों प्रभावी अभिव्‍यक्ति देती दिखाई देती है-

धन यौवन सम्‍पन्‍नता माया के ही रूप

मुग्‍ध मनुज को मोहती, कनक कुरंगी धूप

    बूंदी की ही डॉ. सुलोचना शर्मा मानवीय संवेदनाओं को शानदार चित्रण करती हैं- 'जीवन के कोरे कागज पर/ अंतर्मन की तूलिका से/ मैं भी अपनी बात लिखूँ/ तुम अपने जज्‍बात लिखो।'

    सच तो यह हैं कि आज हाड़ौती अंचल का साहित्‍य विशाल सागर सा रूप ले चुका है जिसमें कितनी ही नदियाँ आकर मिल गई है। उसका कारण है पिछले एक दशक में अंचल में लेखिकाओं ने एक वातावरण बनाया है रेखा पंचोली मूलत: कथाकार है पर वो अपनी काव्‍य धारा से भी प्रभावित करती है:-

सभ्‍यताओं को पनपाना/ और समंदर तक जाना

लक्ष्‍य तुम्‍हारा भूल न जाना/ स्‍मरण बस यही करती जाना/ नदी तुम बहती ही रहना।

    झालावाड़ की रेखा सक्‍सेना 'अरूणिम' यहाँ शिक्षा के आधार पर मानवता में प्रेम भरती नजर आती है- शिक्षा का उदेश्‍य यही है/ मानवता निर्माण करें/ सारे विश्‍व में शांति भरकर/ विश्‍व शान्ति साकार करें। 

कवि जो देखता है वही लिखता हैं जो भोगता हैं वही लिखता है बूंदी की रेखा शर्मा चीथडों में बचपन देखता है- तो लिखती भी है-

चीथडों में थर थराता काँपता बचपन

भूख खड़ी कचरों में याचक सा मन

    ''नारी साहित्यिक चेतना की उड़ान'' काव्‍य कृति में सूक्तियाँ भी है, उक्तियाँ भी है और लोकोक्तियाँ भी है। ऐसी है एक सूक्ति रेणु सिंह 'राधे'' की है- परेशानी सबके साथ है मुस्‍कराता कोई कोई है, जिंदा तो सभी है जीता कोई कोई है। 

इस कृति में देश पर गर्व करती कितनी ही वाणियाँ है। उनसे एक वाणी रीता गुप्‍ता 'रश्मि' की भी है-

ऋषि मुनियों की ये पावन धरा

कल कल नदियाँ बहती है

है अपनी मातृभूमि पर गर्व मुझे

भिन्‍न संस्‍कृतियाँ जिसमें रहती है।

    काव्‍य की धारा में यहाँ गीत हैं, ग़ज़ल हैं, समकालीन काव्‍य है सोनेट है। उस पर अनुभूतियों के साथ प्रस्‍तुतिकरण हैं ऐसे में संजू श्रृंगी की यह ग़ज़ल-

बिखरे कितने गम है जमाने में

हर एक आँख है नम जमाने में

हाड़ौती अंचल की लेखिकाओं की काव्‍य धारा में नामवर नाम हैं, तो स्‍थापित भी है तो कुछ स्‍थापित होने की राह में है। उनमें से एक नाम है शिखा अग्रवाल का वो लिखती है-

संकल्‍प से सृष्टि का श्रृंगार होगा

आनंद चेतन का मार्ग प्रशस्‍त होगा

देखा जाए तो हाड़ौती अंचल की लेखिकाओं का काव्‍य इस अंचल की थाती है। उनके पास विषय वैविध्‍य के साथ साथ काव्‍य सौंदर्य के विविध चितराम भी है। अंचल की वरिष्‍ठ कवयित्रीयों में गंभीरता है और वैचारिक सघनता भी है उनमें से एक है डॉ. तारूणी कारिया, वो लिखती हैं-

हिम गल रहा है

कवि जल रहा है

पर इस अलौकिक प्रेम का

प्रतिकार पाना है

डॉ. वीणा अग्रवाल इस अंचल की वरिष्‍ठतम कवयित्री है। उन के काव्‍य को डॉ. रजनी कुलश्रेष्‍ठ ने ''राजस्‍थान का महिला काव्‍य'' कृति में उद्धारित किया है। जिंदगी के विभिन्‍न पहलुओं को लेकर उन्‍होंने अपने काव्‍य संग्रह ''जिंदगी तुम'' में चित्रण किया है। उसी काव्‍य संकलन से-

कभी तुम संगी सहेली हो तुम

कभी भीड़ में भी अकेली हो तुम

मैं न समझी तुम्‍हे तुम न समझी मुझे

एक अनुबूझ उलझी पहेली हो तुम

    सच कहा जाए तो कृति ''नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान'' के माध्‍यम से हाड़ौती अंचल की काव्‍य धारा के विभिन्‍न पक्ष हमारे सामने आते है। हाड़ौती अंचल की महिला काव्‍य धारा विभिन्‍न विमर्शों से ही नहीं गुजरती, वो समाज के विभिन्‍न पहलूओं को लेकर संदेश देती भी नजर आती है मेरा मानना है यहाँ को काव्‍य धारा प्रतिस्‍पर्धा के साथ देश में भी अपना महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखेगी। इसी भावना के साथ


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