ऋषिकेश में परमार्थ निकेतन आश्रम के स्वामी चिदानंद जी सरस्वती से की भेंट*
नीति गोपेन्द्र भट्ट
नई दिल्ली । बच्चों और किशोरों में डायबिटीज का गम्भीर रोग (जुवेनाइल डायबिटीज टाईप -1) होने की दृष्टि से विश्व में सबसे अधिक संख्या वाले हमारे देश भारत में पीड़ित बच्चों के लिए सकारत्मक वातावरण बनाने के साथ ही जन जागृति पैदा करने की सबसे अधिक और सख्त जरूरत है । इसके लिए भारत सरकार और राज्य सरकारों के साथ समाज के सभी वर्गों और संगठनों के साथ ही धर्म गुरुओं को भी अपने प्रभाव का उपयोग करने की आवश्यकता है ताकि,भारत में बच्चों में मधुमेह के दाग को समाप्त किया जा सकें ।
यह विचार बच्चों और किशोरों में डायबिटीज के निदान और देखभाल के लिए देश के सभी जिला अस्पतालों में डायबिटीज केयर सेंटर खोलने के लिए वातावरण तैयार करने स्वयं की कार से देश के 12 राज्यों की ड्राइव पर निकली प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गृह नगर वड़ नगर से सटे गुजरात के विश नगर की दो डॉक्टर बहनों डॉ स्मिता जोशी और डॉ रावल शुक्ला ने गुरुवार को ऋषिकेश में परमार्थ निकेतन आश्रम के स्वामी चिदानंद जी सरस्वती को भारत में डायबिटीज बच्चों की दयनीय स्थिति के बारे में जानकारी देते हुए व्यक्त किए और जन जागृति के लिए उनसे सहायता माँगी तथा सायंकालीन गंगा आरती में भाग लेने पहुंचे श्रद्धालुओं को संबोधित किया।
डॉक्टर बहनों ने बताया कि भारत के सुदूर पिछड़े क्षेत्रों में वंचित समुदायों और आदिवासी क्षेत्रों में जन्म से ही बच्चों में डायबिटीज होने से हर वर्ष लाखों बच्चों की असामयिक मृत्यु हो रही है। विशेष कर लड़कों के मुकाबले बालिकाएं अधिक संख्या में इसका शिकार हो रही हैं क्योंकि आर्थिक दृष्टि से कमजोर माता पिता मधुमेह पीड़ित अपने बच्चों को एक दिन में तीन से चार बार इन्सुलिन के इंजेक्शन देने में समर्थ नहीं है।माताएं अपने बच्चों की यह पीड़ा देख खून के आंसू रोती है।
उन्होंने बताया कि भारत के बाद बच्चों और किशोरों में डायबिटीज के मामले में विश्व में अमरीका का दूसरा स्थान है लेकिन वहां आधुनिक और विकसित संसाधनों पम्प बेल्ट पद्धति से इन्सुलिन देने के कारण भारत की तरह बच्चों को एक दिन ने तीन से चार बार इन्सुलिन के इंजेक्शन का दर्द नहीं भोगना पड़ता है जबकि भारत में मासूमों को इंजेक्शन देते समय हर माँ की आँखों से कई बार आँसू गिरते है।
डॉ स्मिता जोशी और डॉ रावल शुक्ला ने बताया कि वे अपने परिवार के साथ वर्ष 2018 से डायबिटीज बच्चों के लिए सेवा के काम में जुटी हुई है तथा इसके लिए जन जागृत्ति पैदा करने के लिए भारत में कश्मीर से कन्या कुमारी और अमेरिका में ईस्ट कोर्स से वेस्ट कोर्स तक स्व स्फूर्त भाव से अपनी कार से 7000 किमी की ड्राइव कर चुकी है। परिणाम स्वरुप जो लोग पहले डायबिटीज को उम्र शुदा और अमीरों लोगो का राजसी रोग मानते थे, वे अब बच्चों में मधुमेह रोग होने को स्वीकार करने लगें हैं।
दुर्भाग से भारत में बच्चों और किशोरों में मधुमेह का रोग (जुवेनाइल डायबिटीज टाईप -1) देश की किसी भी स्वास्थ्य नीति में कवर नहीं होता। सभी स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम या योजनाएं 30 वर्ष अथवा उससे अधिक उम्र के रोगियों को ही लाभान्वित करने वाली है। इसलिए न तो इसे शिशु और मातृ स्वास्थ्य कार्यक्रम का अंग माना जाता है और नहीं इसे एनपी-एनसीडी कार्यक्रम में शामिल किया गया है। उस कारण मधुमेह से पीड़ित बच्चों को इसकी मंहगी दवाईयों और इंजेक्शन आदि के लिए कोई सरकारी सहायता उपलब्ध नहीं हो रही ।
पिछले कई वर्षों के प्रयासों के बाद मधुमेह पीड़ित बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिये देश के दो प्रदेशों गुजरात और राजस्थान ने सर्वप्रथम पहल की है और दोनों प्रदेशों के वित्त मंत्रियों ने अपने बजट भाषण में अपने राज्य के सभी जिला अस्पतालो में डेडिकेटेड टाइप -1 डायबिटीज क्लिनिक प्रारंभ करने की घोषणा की है। हालांकि भारत सरकार का स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकसित भारत @2047 विज़न के अनुरूप स्वस्थ और सुखी भारत के सपने को साकार करने के लिए कटिबद्ध होकर इस दिशा में आगे बढ़ रहा है। केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री जे पी नड्डा और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय भी बच्चों और किशोरों के मधुमेह की रोकथाम और निदान के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाने का पक्षधर है लेकिन भारत के संघीय ढ़ांचे में स्वास्थ्य राज्य का विषय होने से भारत सरकार इस सम्बन्ध में जन चेतना लाने के कार्य में जुटे लोगों को प्रोत्साहित कर रही है।
डॉ स्मिता जोशी और डॉ रावल शुक्ला बताती है कि उन्हें 2018 से डायबिटीज बच्चों और उनके परिवार के निकट रहने से, उस तथ्य का पता चला है कि इस जानलेवा रोग का सामना करने के लिए सिर्फ़ इन्सुलिन ही काफ़ी नहीं है,बल्कि हमारे समाज में बच्चों के डायबिटीज को लेकर जो स्टिग्मा है उसे दूर करने के लिए जन जागृति और सरकारी नीतियों में परिवर्तन की सख्त जरूरत है ।
दोनों डॉक्टर बहनें डॉ.स्मिता जोशी और डॉ.शुक्ला बेन रावल,भारत के सभी राज्यों में पहले से मौजूद एनसीडी क्लीनिकों की तर्ज पर जिला सरकारी अस्पतालों में समर्पित टाइप -1 मधुमेह क्लीनिकों की स्थापना के लिए राज्यों को प्रेरित करने के लिए अपने स्वयं के खर्चे पर 12 प्रदेश की यात्रा पर निकली है। इसकी शुरुआत उन्होंने 20 अप्रैल को गुजरात की राजधानी गांधी नगर से की थी और 21 अप्रैल को राजस्थान की राजधानी जयपुर होते हुए वे 22 अप्रैल को राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली पहुंची जहां उन्होंने एम्स के निदेशक डॉ.एम.श्रीनिवास से मुलाकात की और उनसे आग्रह किया कि जिला अस्पतालों की तरह देश के हर एम्स में बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए डेडिकेटेड टाइप -1 डायबिटीज क्लिनिक चलाया जाना चाहिए। दिल्ली एम्स ने पहले ही यह पहल शुरू कर दी है। इस प्रकार एम्स दिल्ली सभी एम्स के लिए रोल मॉडल बनेगा। डॉ बहनों ने दिल्ली प्रदेश के राज्य स्वास्थ्य मिशन के स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ भी बातचीत की।
उन्होंने अपनी ड्राइव के अगले चरण में चंडीगढ़ में हरियाणा के निदेशक डीजीएचएस डॉ. कुलदीप सिंह और पीजीआईएमईआर,चंडीगढ़ के निदेशक डॉ. विवेक लाल और पीडियाट्रिक एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. देवी दयाल से मुलाकात की। उन्होंने बतायाकि हरियाणा राज्य के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ मधुमेह बच्चों की बेहतरी के लिए सरकारी जिला अस्पतालों में समर्पित टाइप -1 मधुमेह क्लिनिक की स्थापना के लिए हमारी बहुत अच्छी बातचीत हुई।
दोनों डॉक्टर बहनें डॉ.स्मिता जोशी और डॉ.शुक्ला बेन रावल का आगे उत्तराखंड की राजधानी देहरादून ,उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल जाने का कार्यक्रम है। वे भोपाल से महाराष्ट्र के नागपुर तथा नागपुर से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर और वहां से सेल्फ ड्राइविंग करती हुई ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर जायेंगी।भुवनेश्वर से आगे वे फ्लाइट से असम की राजधानी गुवाहाटी और अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर, मणिपुर के इम्फाल होते हुए भुवनेश्वर पहुंचेगी और तत्पश्चात स्वयं कार ड्राइव द्वारा भुवनेश्वर से अपने गृह प्रदेश गुजरात वापसी करेंगी।
भारत के करोड़ों बच्चों के हित में शुरु किए गए उनका यह अभियान स्वयं की समाज के प्रति जिम्मेदारी की भावना और जज़्बें को प्रदर्शित कर रहा है ।