बांसवाड़ा/अमरथुन – राउमावि अमरथुन में वर्ष 2012 में करंट लगने से एक मजदूर की मौत के मामले में न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश का पालन अब तक नहीं किए जाने पर विद्यालय के विरुद्ध डिक्री की कार्यवाही शुरू हो गई है। इससे न केवल मृतक के परिजन को न्याय नहीं मिल पाया है, बल्कि विद्यालय में अध्ययनरत 700 से अधिक विद्यार्थियों का भविष्य भी अधर में लटक गया है।
घटना 22 सितंबर 2012 को उस समय घटी थी जब RMSA योजना के तहत विद्यालय में कक्षा-कक्ष निर्माण का कार्य चल रहा था। निर्माण के दौरान हरीश चरपोटा, पुत्र छतरा चरपोटा, की स्कूल परिसर में विद्युत करंट लगने से मौके पर ही मृत्यु हो गई। बताया गया कि निर्माण कार्य शुरू करने से पूर्व बिजली के खंभे और तार हटाने की जिम्मेदारी तत्कालीन संस्था प्रधान आनंदीलाल सुथार की थी, लेकिन लापरवाही के चलते यह कार्य नहीं किया गया और दुर्घटना घटित हो गई।
लगभग दस वर्षों तक चले न्यायिक विवाद के बाद 04 मार्च 2022 को बांसवाड़ा न्यायालय ने शिक्षा विभाग एवं RSEB को संयुक्त रूप से ₹6,74,800 की क्षतिपूर्ति राशि देने का आदेश दिया। इसमें शिक्षा विभाग का हिस्सा 20% यानी ₹1,34,960 मूल राशि तथा ₹1,00,770 ब्याज (मार्च 2024 तक) रहा। आज तक भुगतान न होने के कारण यह राशि बढ़कर ₹2,55,770 (अप्रैल 2025 तक) हो गई है।
मौजूदा संस्था प्रधान अरुण व्यास ने बार-बार उच्च अधिकारियों को पत्र, ईमेल और व्यक्तिगत उपस्थित होकर न्यायालय के आदेश की पालना हेतु मार्गदर्शन मांगा, लेकिन शिक्षा विभाग की ओर से अब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई। जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा वित्तीय प्रस्ताव दिनांक 24.03.2025 और 27.03.2025 को निदेशालय बीकानेर भेजा गया है। साथ ही जिला कलेक्टर बांसवाड़ा को पत्र लिखकर अपर लोक अभियोजक गौरव उपाध्याय को नियुक्त किया गया है। बावजूद इसके न्यायालय के आदेश की पालना नहीं की गई।
ग्राम पंचायत अमरथुन की आमसभा में यह मुद्दा ग्रामीणों, अभिभावकों, पीड़ित परिवार व नागरिकों के समक्ष रखा गया। सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि मृतक के परिजनों को न्याय दिलाने हेतु ₹2 करोड़ मुआवजा और एक परिजन को सरकारी नौकरी दी जाए। इसके साथ ही विद्यालय परिसर में विद्युत फिटिंग अस्त-व्यस्त होने से भविष्य में हादसों की आशंका बनी हुई है, जिस पर सरकार से बजट जारी कर मरम्मत कार्य करवाने की भी मांग की गई।
10 वर्षों से न्याय की बाट जोह रहा मृतक का पिता भोलाराम अब वृद्धावस्था में दर-दर भटकने को मजबूर है। आनंदीलाल सुथार, जो उस समय प्रधानाचार्य थे, अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। लेकिन उनकी लापरवाही के कारण आज विद्यालय के विद्यार्थियों का भविष्य खतरे में पड़ गया है।