(mohsina bano)
अजमेर स्थित ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह विश्व प्रसिद्ध है। मक्का के बाद यह मुस्लिम समुदाय का सबसे बड़ा श्रद्धा स्थल माना जाता है। यहां सभी धर्मों के लोग और विदेशी पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं तथा सूफी संत की मजार पर चादर चढ़ाकर शांति और सद्भाव की दुआ करते हैं। भारत और विश्व की कई प्रतिष्ठित हस्तियां भी यहां आकर चादर चढ़ा चुकी हैं।
दरगाह का निर्माण विभिन्न मुगल शासकों द्वारा समय-समय पर करवाया गया है। उत्तर दिशा में स्थित 85 फीट ऊंचा बुलंद दरवाजा, जिसे माण्डू के सुल्तान महमूद खिलजी ने लगभग 570 वर्ष पूर्व बनवाया था, दरगाह के प्रमुख प्रवेश द्वार के रूप में प्रसिद्ध है। सम्राट शाहजहां ने यहां जामा मस्जिद का निर्माण करवाया, जिसकी दीवारों पर सुंदर नक्काशीदार ग्यारह मेहराब बनी हुई हैं। इस मस्जिद में इमामशाह पर स्वर्ण अक्षरों में कुरान की आयतें लिखी गई हैं। संपूर्ण दरगाह संगमरमर से निर्मित है और इसका सुनहरी गुंबद दूर से ही आकर्षित करता है। यहां औरंगजेब द्वारा हाथ से लिखी गई कुरान भी सुरक्षित रखी गई है।
दरगाह परिसर में दो विशाल देग (बर्तन) हैं, जिनमें प्रसाद के रूप में चावल पकाए जाते हैं। बड़ी देग में 80 मन और छोटी में 40 मन चावल पकाने की क्षमता है। चावल निकालने की प्रक्रिया को देखने के लिए श्रद्धालुओं में विशेष उत्साह रहता है।
मजार शरीफ सदैव लाल मखमली चादर से ढकी रहती है, जिसे श्रद्धालु खादिम (सेवक) के माध्यम से चढ़ाते हैं। इस चादर को गुलाब के फूलों और इत्र से सजाया जाता है। प्रतिवर्ष रजब माह की 1 से 6 तारीख तक यहां ख्वाजा साहब का सालाना उर्स मनाया जाता है। उर्स की रस्में बुलंद दरवाजे पर झंडा फहराने से प्रारंभ होती हैं। इस दौरान आध्यात्मिक कव्वालियों की महफिलें लगती हैं, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक आनंद प्रदान करती हैं।
दरगाह परिसर के अंदर और बाहर गुलाब और इत्र की महक चारों ओर फैली रहती है, जिससे वातावरण दिव्यता और आस्था से भर जाता है।