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होली और जुम्मे की नमाज़: सौहार्द की परीक्षा

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15 Mar 25
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होली और जुम्मे की नमाज़: सौहार्द की परीक्षा

डॉ. अतुल मलिकराम (राजनीतिक रणनीतिकार)

होली का पर्व रंगों, उल्लास और आपसी भाईचारे का प्रतीक है। यह सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की वह पहचान है, जो अनेकता में एकता को दर्शाती है। हालांकि, हाल के वर्षों में यह देखा गया है कि होली हो या दिवाली, ईद हो या बकरीद, त्यौहार अपने आयोजन से पहले ही एक खास सियासी रंग में रंग जाते हैं।

ताजा उदाहरण बिहार के दरभंगा जिले की मेयर अंजुम आरा का बयान है, जिसमें उन्होंने जुम्मे की नमाज़ के मद्देनजर होली को दो घंटे के लिए रोकने की अपील की। इसके जवाब में बीजेपी विधायक मुरारी मोहन झा ने स्पष्ट किया कि होली नहीं रुकेगी, और मुस्लिम समाज को अपने स्तर पर नमाज़ के समय को समायोजित करना होगा। वहीं, विधायक करनैल सिंह ने अपील की कि जुम्मे की नमाज़ घर पर पढ़ी जाए

यह सोचने की जरूरत है कि आखिर शासन-प्रशासन को ऐसी बयानबाजी क्यों करनी पड़ रही है? इस मुद्दे को कई नजरियों से देखा जा सकता है, लेकिन एक उचित दृष्टिकोण यह भी है कि प्रशासन और समाज दोनों को संयम और समझदारी से काम लेना चाहिए। किसी एक धर्म के अनुयायियों को दूसरे धर्म के आयोजनों में बाधा डालने का अधिकार नहीं है, लेकिन हर किसी को एक-दूसरे की आस्था का सम्मान भी करना चाहिए।

अगर होली कुछ समय पहले या बाद में खेली जा सकती है, तो नमाज़ भी विशेष परिस्थितियों में कुछ समय आगे-पीछे की जा सकती है। संभल के सीओ अनुज चौधरी का यह बयान कि "अगर रंग लगने से किसी का धर्म भ्रष्ट होता है तो वे घर से न निकलें," एक प्रशासनिक अधिकारी की जिम्मेदारी भरी टिप्पणी नहीं मानी जा सकती। प्रशासन का काम समाज को तोड़ना नहीं, बल्कि जोड़ना होता है।

भारत की खूबसूरती इसी में है कि यहां हर धर्म, जाति और विचारधारा के लोग मिल-जुलकर रहते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, हर साल सौहार्द के नाम पर विवाद बढ़ते जा रहे हैं। जरूरी यह है कि हम होली और नमाज़ के संयोग को टकराव की तरह न देखें, बल्कि इसे सौहार्द का अवसर मानें।

समाज के दोनों पक्षों को चाहिए कि वे एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करें और ऐसा कोई भी कार्य न करें जिससे अशांति फैले। प्रशासन को भी ऐसी अपीलें करनी चाहिए जो मेल-जोल को बढ़ाएं, न कि विभाजन का कारण बनें।

इस बार होली पर हम सभी यह प्रण लें कि कोई भी रंग आपसी प्रेम और भाईचारे से ऊपर नहीं होगा, और कोई भी इबादत इंसानियत से बड़ी नहीं होगी

 


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