गोपेन्द्र नाथ भट्ट
नई दिल्ली ।केरल के पूर्व मुख्य सचिव और पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त डॉ. विश्वास मेहता ने युवा पीढ़ी से कहा है कि जीवन में सफलता का कोई शोर्ट कट नहीं होता हैं। साथ ही केवल भाग्य के भरोसें बैठें रहने से किसी मंजिल तक नहीं पहुंचा जा सकता।
डॉ. विश्वास मेहता हाल ही अखिल भट्टमेवाड़ा साहित्य एवं संस्कृति सृजन परिवर्द्धन के मंच पर आयोजित अपने एक वेव साक्षात्कार में बोल रहें थे ।
उन्होंने विभिन्न प्रश्नों के सटीक जवाब देते हुए कहा कि जीवन की सफलता का मूल का मन्त्र हर व्यक्ति को अपना लक्ष्य निर्धारित कर और बिना समय गँवायें पूरे समर्पण के साथ नियमित रुप से कठोर परिश्रम एवं प्रयास में जुटे हुए करते रहना हैं।ऐसा करने वाला कोई भी अपने व्यक्ति जीवन के लक्ष्यों को पाने में कभी असफल नहीं हों सकता ।
डॉ.मेहता ने अपने जीवन की सफलता का श्रेय अपने परिवार की तीन पीढ़ियों के बेजोड़ त्याग,समर्पण और मेहनत विशेष कर अपनी दादी जानकी देवी मेहता को दिया जिन्होंने दादाजी नर्मदा शंकर मेहता के असामयिक निधन होने पर केवल 28 वर्ष की उम्र में विधवा होने के बावजूद उत्पन्न प्रतिकूल परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारी और अपने भरे पूरे परिवार का हॉस्टल में रोटिया सेंकने की नौकरी कर न केवल पालन पोषण किया वरन् दक्षिणी राजस्थान के डूंगरपुर जैसे छोटे से शहर में सभी प्रकार के अभावों में रहते हुए भी अपने बलबूते एवं स्वजनों की मदद से अपने दोनों बेटों पुरुषोत्तम और प्रीतम मेहता को पढ़ा लिखा कर योग्य बनाया।उन्होंने बताया कि मेरी माता सविता मेहता ने भी शिक्षिका बन परिवार को आगे बढ़ाने में अपूर्व योगदान दिया। पिताजी डॉ प्रीतम कुमार मेहता के लम्बे समय तक विदेश में रहने के दौरान भी हमारी माँ ने मेरे साथ ही मेरी दादी और मेरी इकलौती बहन स्मृति की बहुत ही शिद्दत के साथ सार संभाल की ।पिताजी की पंजाब में चंडीगढ़ में नौकरी लगने के कारण हमारी करीबन पुरु शिक्षा दीक्षा चंडीगढ़ में ही हुई और मैंने जियोलॉजी में पंजाब यूनिवर्सिटी से गोल्ड मेडल के साथ एमएससी की शिक्षा पूरी की।इसके बाद मैंने कुछ समय तक देहरादून में ओएनजीसी में भी काम किया।पिताजी के विदेश जाने पर हमने कुछ वर्ष डूंगरपुर में भी पढ़ाई की थी ।
डॉ विश्वास ने अपने आईएएस बनने की दिलचस्प कहानी सुनाने हुए बताया कि उनके पिता डॉ. मेहता ने उन्हें इसके लिए प्रेरित किया तथा सिविल सेवा की परीक्षा में पहली बार में ही उनका चयन आईपीएस में हो जाने से उन्हें लगा कि वे यदि थोड़ी और मेहनत करें तो सर्वोच्च सिविल सेवाओं को क्रेक कर सकते है और आईपीएस ट्रेनिंग से अवकाश लेकर वे उसमें जुट गए तथा आखिर में उन्हें सफलता मिली तथा वें नौवीं रैंक के साथ आईएएस बनें लेकिन कहानी अभी बाकी थी ।उन्होंने बताया कि मेरी पहली पोस्टिंग घर से तीन हज़ार किमी दूर दक्षिणी भारत के आखिरी छोर केरल में हुई जहाँ भाषा ही नहीं और खानपान भी बिल्कुल ही अलग था। इस दौरान राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी की पोती प्रीति से मेरा विवाह हुआ और प्रीति ने भी मेरे साथ उन सभी प्रतिकूल परिस्थितियों को चेहरे पर किसी प्रकार का शिकन लाये बिना मेरा पूरा साथ दिया और दोनों बेटों एकलव्य एवं ध्रुव को भी ऐसे ही संस्कार दिए। आज दोनों बेटे अपने परिवार के साथ आज अमरीका एवं दुबई में सेटल हैं ।
डॉ.मेहता ने केरल के वायनाड कलक्टर से राज्य के मुख्य सचिव बनने तक के अपने सफर को विस्तार से सुनाया और कहा कि उन्होंने न केवल मलयालम भाषा सीखीं वरन् अपने और अपने परिवार के जीवन की पूरी यात्रा पर आधारित एक पुस्तक भी लिखी जिसकी काफी चर्चा रहीं ।एक शिक्षक का सरस्वती पुत्र होने के कारण प्रशासनिक व्यस्तताओं के बीच भी मैंने एमबीए और अन्य देश विदेश के अन्य कई कोर्स भी किए ।
डॉ. विश्वास ने बताया कि वैसे तो उन्होंने केरल और राज्य के बाहर विभिन्न पदों पर अपनी सेवायें दी लेकिन, केरल के स्वास्थ्य सचिव और एसीएस गृह विभाग रहते हुए उन्होंने जो काम वहां किए विशेष कर कोविड के कालखंड के दौरान जिस प्रकार लोगों के जीवन की रक्षा करने के महायज्ञ में जो आहूति दी,वह मेरे दिल के बहुत नजदीक हैं। उन्होंने बताया कि उत्तर भारत की राजनीतिक और प्रशासनिक धारा से विपरीत मिजाज रखने वाले केरल राज्य में उन्हें सभी लोगों का स्नेह, अपनत्व और विश्वास मिला जो अपने आपमें एक उपलब्धि हैं और इसी कारण उन्हें सर्वोच्च प्रशासनिक पद मुख्य सचिव से रिटायर्ड होने के बाद भी वहाँ की सरकार की अनुशंसा पर केरल के मुख्य सूचना आयुक्त के अहम संवैधानिक पद प्रदान कर सम्मानित किया गया। वायनाड में मेरे द्वारा चाय बागान के क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों को केरल ने न केवल सराहा बल्कि बीस साल के बाद उस हिल्स का नाम मेरे नाम पर विश्वास रखा गया। इसी प्रकार कुछ उत्पाद के नाम भी विश्वास रखें गए । मेरे एक मित्र ने तो मेरे नाम से अपनी पुस्तक का नाम ही विश्वास रख दिया।
डॉ. विश्वास ने अपनी जन्म भूमि डूंगरपुर के प्रति अपने कर्ज को चुकाने के लिए केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्रालय में जॉइंट सेक्ट्री रहते डूंगरपुर में मेडिकल कॉलेज खुलवाने के लिए किए गए गंभीर प्रयासों की चर्चा भी की।साथ ही पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, उदयपुर में अपने छह वर्षों के कार्यकाल के दौरान शिल्प ग्राम उत्सव और डूंगरपुर वागड़ महोत्सव सहित राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र ,गोवा, दमन और दीव आदि प्रदेशों के इतिहास,कला, संस्कृति, लोक साहित्य, हस्तशिल्प आदि के विकास के लिए उल्लेखनीय कार्यों का उल्लेख भी किया। इस दौरान पीएचडी करने के साथ ही कल्चर टूरिज्म पर एक पुस्तक भी प्रकाशित कराई ।उन्होंने अपने निजी और प्रशासनिक जीवन में अपने फुफेरे भाई गोपेन्द्र नाथ भट्ट के अहम योगदान की विस्तार से चर्चा भी की ।
डॉ.विश्वास ने अपने संगीत और गायन के शौक एवं जुनून के बारे में पूछें गए प्रश्न का जवाब देते हुए बताया कि उन्हें गानें का शौक अपने ननिहाल से विरासत में मिला हैं । उदयपुर में पोस्टिंग के दौरान इस शौक को नए पंख लगें तथा कालांतर में मैरें कई स्टेज शौ हुए और गानों की रिकॉर्डिंग भी हुई जोकि यू ट्यूब और सोशल मीडिया आदि प्लेटफार्म पर उपलब्ध हैं ।
इस वेव साक्षात्कार का प्रभावी संचालन उदयपुर की साहित्यकार प्रमिला शरद व्यास ने किया और तकनीकी सहयोग अखिलेश जोशी का रहा।