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मोदी के बाद कौन होगा भारत का नेता?

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26 Feb 25
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मोदी के बाद कौन होगा भारत का नेता?

26 अगस्त 2014 को भाजपा द्वारा जारी एक प्रेस रिलीज़ में जानकारी दी गई कि 75 वर्ष से अधिक आयु के अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और डॉ. मुरली मनोहर जोशी को ससम्मान मार्गदर्शक मंडल में शामिल किया जा रहा है। इससे संकेत मिला कि इन वरिष्ठ नेताओं की सक्रिय राजनीति समाप्त हो जाएगी। 2019 के लोकसभा चुनाव में लागू 75 वर्ष की आयु सीमा के कारण आडवाणी, जोशी और सुमित्रा महाजन को टिकट नहीं मिला। अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सितंबर में 75 वर्ष के होने जा रहे हैं, तो भाजपा की अलिखित रिटायरमेंट पॉलिसी चर्चा का विषय बन गई है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि मोदी के बाद अगला उत्तराधिकारी कौन होगा?

कौन बनेगा भाजपा का अगला चेहरा?

क्या यह गद्दी योगी आदित्यनाथ को मिलेगी, जो भाजपा के सबसे चर्चित हिंदुत्ववादी चेहरा हैं? या फिर यह जिम्मेदारी नीतिन गडकरी को मिलेगी, जो केंद्र में अपनी कार्यशैली के लिए सबसे अधिक प्रशंसा बटोरते हैं? या फिर राजनाथ सिंह, जो पर्दे के पीछे से पार्टी और संगठन को संतुलित करते हैं, इस कुर्सी के दावेदार होंगे? हालांकि, मेरी राय में ये तीनों ही नाम मोदी की जगह नहीं ले सकते।

योगी, गडकरी और राजनाथ क्यों नहीं?

  1. योगी आदित्यनाथ – उनकी कट्टर हिंदुत्ववादी छवि भाजपा की राष्ट्रीय नीति और संघ की विचारधारा से मेल नहीं खाती, जिससे उनका पीएम बनना मुश्किल लगता है।
  2. नीतिन गडकरी – संघ से करीबी होने के बावजूद, उनकी स्वतंत्र शैली उन्हें भाजपा के वर्तमान नेतृत्व के अनुकूल नहीं बनाती। इसके अलावा, वे चुनावी रणनीतियों में कमजोर माने जाते हैं।
  3. राजनाथ सिंह73 वर्ष की आयु और पार्टी की 75 वर्ष की अनौपचारिक रिटायरमेंट नीति उनके खिलाफ जाती है। लोकप्रियता और करिश्मे की कमी भी उनके पीएम बनने की राह में बाधा बन सकती है।

नए चेहरों की संभावना

क्या ज्योतिरादित्य सिंधिया और हिमंत बिस्वा शर्मा इस रेस में हैं? शायद नहीं, क्योंकि

  • बिस्वा पूर्वोत्तर में तो प्रभावी हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर मोदी की लोकप्रियता से काफी पीछे हैं।
  • सिंधिया मध्य प्रदेश तक ही सीमित हैं और भाजपा में उनकी भूमिका अब तक उतनी प्रभावशाली नहीं रही है।
  • संघ और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के साथ इन दोनों नेताओं की पकड़ अभी उतनी मजबूत नहीं है।

एक और नाम जो चर्चा में रहता है, वह है एस. जयशंकर

  • वे पीएम मोदी के करीबी हैं और विदेशी मामलों में गहरी समझ रखते हैं।
  • लेकिन उनका कोई जनाधार नहीं है और न ही जमीनी राजनीति का अनुभव
  • भाजपा के भीतर भी उनका प्रभाव सीमित है, जिससे उनकी दावेदारी कमजोर पड़ जाती है।

मोदी के बाद भाजपा की रणनीति

मोदी और शाह के नेतृत्व में भाजपा ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली जैसे राज्यों में नए लेकिन प्रभावशाली नेताओं को आगे लाने की नीति अपनाई है। यही नीति मोदी के बाद भी अपनाई जा सकती है। भाजपा और संघ किसी ऐसे नेता को आगे ला सकते हैं, जो प्रशासनिक रूप से सक्षम हो और पार्टी के ब्रांड को बरकरार रख सके।

नतीजा

मोदी के बाद कौन? इसका जवाब फिलहाल स्पष्ट नहीं है, लेकिन भाजपा का नेतृत्व ऐसे व्यक्ति को चुनेगा, जो भविष्य में मोदी की तरह ही पार्टी को लोकप्रियता की नई ऊंचाइयों तक ले जा सके।


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