(mohsina bano)
-राष्ट्र गान अखण्ड भारत का प्रतीक - डॉ. पाण्डेय
-भविष्य की दिशा तय करता है संविधान - प्रो. सारंगदेवोत
-दो दिवसीय नवम युवा इतिहासकार राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न
उदयपुर, 9 फरवरी। जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ की मेजबानी में अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना नई दिल्ली एवं माधव संस्कृति न्यास नई दिल्ली के तत्वावधान में आयोजित ‘भारतीय इतिहास, संस्कृति और संविधान’ पर राष्ट्रीय संगोष्ठी रविवार को संविधान में निहित भारतीय मूल्यों के संवर्धन के संकल्प के साथ सम्पन्न हुई। समापन सत्र में भारतीय इतिहास के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले डॉ. देव कोठारी व डॉ. एमपी जैन को बाबा साहब आप्टे राष्ट्रीय सम्मान प्रदान किया गया। इनके साथ ही चार अन्य वरिष्ठ इतिहाससेवियों का भी सम्मान किया गया।
समापन सत्र में मुख्य अतिथि इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय संगठन मंत्री डॉ. बालमुकुंद पाण्डेय ने कहा कि हमारा राष्ट्र गान अपने आप में अखण्ड भारत का प्रतीक है। उसमें आने वाली पंक्ति में पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा, द्राविड़, उत्कल, बंग भारत के अखण्ड राष्ट्र के अंग हैं। आज भी भारतमाता की पूजा करने वाले यही कामना करते हैं कि मैं जन्मा खण्डित भारत में हूं, पर मैं मरूं तो भारत अखण्ड हो।
उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद के संविधान से पहले भी भारत में संविधान था। उसमें सभासदों की सभा होती थी और ऋषियों की सभा होती थी। इसे लोकसभा और राज्यसभा का रूप माना जा सकता है। सभासद राजनैतिक चर्चा व निर्णय कर सकते थे तो ऋषिजन नैतिक मूल्यों के आधार पर पक्ष रखते थे। राजा कभी निरंकुश नहीं हो सकता था, उसे धर्म से दंडित किया जा सकता था। भारत का यह प्राचीन संविधान तब तक लागू था जब तक संविधान सेक्यूलर नहीं हुआ। अहं दण्डोस्मि श्लोक का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में इंद्र ने भी स्वयं को दंड के योग्य माना है। आदिकाल से भारत में राजतंत्र जब-जब निरंकुश हुआ, तब-तब लोकतंत्रात्मक राजतंत्र स्थापित करने का कार्य जनता ने किया।
समापन सत्र में मुख्य वक्ता भारतीय इतिहास संकलन योजना के संकलन समिति के कार्यकारिणी सदस्य और जनजाति आयाम प्रमुख प्रो शिव कुमार मिश्र ने कहा कि शेर को अपना इतिहास स्वयं लिखना चाहिए, नहीं तो शिकारी ही नायक रहेगा और इतिहास अपने अनुसार ही लिखेगा। उन्होंने कहा कि सारी संवैधानिक व्यवस्थाएं भारतीय पद्धतियों में सदैव से विद्यमान हैं, चाहे चुनाव हों, न्याय प्रणाली हो या गणतंत्रात्मक व्यवस्था। उन्होंने भारतवर्ष के गौरवशाली इतिहास के तथ्यों को जन-जन तक पहुंचाने का आह्वान किया।
भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय महासचिव हेमंत धींग मजूमदार ने पांच सूत्र बताते हुए कहा कि नागरिक कर्तव्य को आगे रखेंगे तो देश में कई समस्याओं और अपराधों का समाधान हो जाएगा। इसी तरह, पर्यावरण, कुटुम्ब प्रबोधन, स्वदेशी को अपनाते हुए मातृभाषा को नई पीढ़ी को सिखाने का आह्वान किया।
भारतीय इतिहास संकलन समिति के सह संगठन मंत्री संजय मिश्र ने राष्ट्रीयता के भाव को आचरण में लाने का आह्वान करते हुए कहा कि हम कहीं भी विविध प्रांत-क्षेत्रों के आयोजनों में हम अपने-अपने क्षेत्र के लोगों से मिलते हैं, अन्य प्रांत-भाषायी लोगों से सम्पर्क करने में कुछ कमी रखते हैं, ऐसे में हम संकुचित ही रह जाते हैं, हमें हर क्षेत्र के लोगों से परिचय बढ़ाना चाहिए, यही सही मायने में राष्ट्रीयता का भाव जगाना होगा। इतिहास अमृत है। हम ऋषि तत्व है। कोई दुर्भावना नहीं है। हमारा लक्ष्य भ्रांतियों में से संजीवनी निकालना है।
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि इतिहास हमें बताता है कि हम कहां से आए हैं और किस रूप में निर्मित हुए हैं। संस्कृति प्रदर्शित करती है कि विविधता में एकता लिए हम किस रूप में परिष्कृत हो रहे हैं, जबकि संविधान बताता है कि हमें भविष्य में कहां और किस दिशा में अग्रसर होना है। उन्होंने भी कहा कि व्यक्ति को अपनी मातृभाषा से दूर नहीं होना चाहिए, मातृभाषा के विचार ही मौलिकता के परिचायक होते हैं।
संगोष्ठी प्रतिवेदन समन्वयक डॉ. जीवन सिंह खरकवाल ने प्रस्तुत किया। उन्होंने बताया कि संगोष्ठी में देशभर से आए युवा इतिहासकारों ने 8 अलग अलग तकनीकी सत्रों में संगोष्ठी के विभिन्न विषयों पर 165 शोध पत्रों का वाचन किया गया। आरंभ में राजस्थान क्षेत्र के संगठन मंत्री छगनलाल बोहरा ने स्वागत उद्बोधन दिया। सरस्वती वंदना डॉ. महामाया प्रसाद चौबीसा ने किया। संचालन डॉ सुरेश पांडे ने किया।
दो विभूतियों को बाबा साहब आप्टे राष्ट्रीय सम्मान
-क्षेत्रीय संगठन मंत्री छगनलाल बोहरा ने बताया कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में इतिहास के प्रति जीवन भर समर्पित रहने वाले व्यक्तित्व डॉ. देव कोठारी व डॉ. महावीर प्रसाद जैन को बाबा साहब आप्टे राष्ट्रीय सम्मान से अलंकृत किया गया। इनके साथ इतिहास के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के लिए हिम्मत लाल दुग्गड़, रोशन महात्मा, हरकलाल पामेचा व स्व. मोहनलाल श्रीमाली को वरिष्ठ कार्यकर्ता सम्मान प्रदान किया गया। स्व. मोहनलाल श्रीमाली का सम्मान उनके पुत्र भूपेन्द्र श्रीमाली ने ग्रहण किया। कार्यक्रम में हल्दीघाटी म्यूजियम के संस्थापक व इतिहास संकलन समिति चित्तौड़ प्रांत के निवर्तमान अध्यक्ष स्व. मोहनलाल श्रीमाली को पुष्पांजलि भी अर्पित की गई।
डॉ. खरकवाल अब चित्तौड़ प्रांत अध्यक्ष
-संगोष्ठी राष्ट्रीय संगठन मंत्री डॉ. बालमुकुंद पाण्डेय ने डॉ. जीवन सिंह खरकवाल को भारतीय इतिहास संकलन समिति के चित्तौड़ प्रांत अध्यक्ष पर मनोनीत किए जाने की घोषणा की। अब तक डॉ. खरकवाल उदयपुर जिलाध्यक्ष का कार्य संभाल रहे थे।
हल्दीघाटी की माटी को नमन
-संगोष्ठी में देश भर आए शोधार्थियों को रविवार सुबह हल्दीघाटी का भ्रमण कराया गया। वहां उन्होंने हल्दीघाटी म्यूजियम देखने के बाद दर्रे पर पहुंचकर हल्दीघाटी की माटी को नमन किया। एक-दूसरे को हल्दीघाटी की माटी का तिलक भी लगाया। इससे पहले, शनिवार शाम शोधार्थियों ने राजस्थान विद्यापीठ के साहित्य संस्थान का भी भ्रमण किया। शनिवार शाम को ही राजस्थानी लोकसंस्कृति की प्रस्तुतियां भी हुईं।