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क्या दिल्ली में 26 साल के वनवास के बाद भाजपा सरकार की पुनः वापसी हो रही है?

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06 Feb 25
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क्या दिल्ली में 26 साल के वनवास के बाद भाजपा सरकार की पुनः वापसी हो रही है?

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए इस बार मतदान का प्रतिशत पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले कम रहा हैं। दिल्ली में 60 प्रतिशत से अधिक मतदान की खबर हैं। हालांकि मतदान के अन्तिम आंकड़ों का खुलासा अभी नहीं हुआ हैं,लेकिन मतदान के बाद आए एग्जिट पोल में एक दो को छोड़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के 26 साल से अधिक समय बाद राष्ट्रीय राजधानी की सत्ता में वापसी की संभावना जताई गई है। 11में से 9 एग्जिट पोल्स ने अरविन्द केजरीवाल की सत्ता पलटने का दावा किया हैं। साथ ही एक दशक बाद कांग्रेस का खाता खुलने की संभावना भी बताई गई है। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमों अरविन्द केजरीवाल स्वयं नई दिल्ली विधानसभा सीट पर तिकोने संघर्ष में फंसे हुए हैं।
विधानसभा में 36 सीटों पर चुनाव जीतने वाली पार्टी बहुमत से सरकार बना लेंगी।

दिल्ली की सभी 70 विधानसभा सीटों के लिए बुधवार को कतिपय घटनाओं को छोड़ कर  शांतिपूर्वक मतदान संपन्न हुआ। मतगणना आठ फरवरी को होगी। चुनाव के बाद लगभग सभी चुनाव सर्वेक्षण में भाजपा की जीत और आम आदमी पार्टी (आप) की हार का अनुमान व्यक्त किया गया है। अधिकतर सर्वेक्षणों में एक बार फिर संभावना जताई गई है कि कांग्रेस के लिए खाता खोलना भी मुश्किल हो सकता है। ‘मैट्रिज' के सर्वेक्षण के अनुसार, भाजपा 39 से 35 सीट जीत कर सरकार बना सकती है। इस एजेंसी ने आप को 32 से 37 तथा कांग्रेस को शून्य से दो सीट मिलने का अनुमान जताया है। ‘पी-मार्क' के एग्जिट पोल में संभावना जताई गई है कि भाजपा 39 से 49 सीट जीतकर पूर्ण बहुत की सरकार बना सकती है। इस सर्वेक्षण में आप को 21 से 31 और कांग्रेस को 0-1 सीट मिलने की संभावना जताई गई है। ‘पीपुल्स इनसाइट' के सर्वेक्षण में कहा गया है कि भाजपा को 40-44 सीट मिल सकती हैं। उसका अनुमान है कि आप को 25-29 तथा कांग्रेस को 0-2 सीट मिल सकती हैं। ‘पीपुल्स प्लस' के एग्जिट पोल में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिलने का अनुमान जताया गया है. इसके अनुसार, भाजपा को 51-60 सीट मिल सकती हैं तो आप को सिर्फ 10-19 सीट से ही संतोष करना पड़ सकता है। इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि कांग्रेस का लगातार तीसरे विधानसभा चुनाव में खाता खुलने की संभावना नहीं है। ‘पोल डायरी' के सर्वेक्षण का अनुमान है कि भाजपा को 42-50 सीट मिल सकती हैं तथा आप 18-25 सीट के साथ सत्ता से बाहर हो सकती है। सर्वेक्षण में कांग्रेस को 0-2 सीट मिलने का अनुमान हैं।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार जिस प्रकार का पाला बदल हुआ और चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की टीम ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह,अन्य केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा कांग्रेस और आप पार्टी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उनके मंत्रिपरिषद के मंत्रियों तथा पार्टी नेताओं ने जिस प्रकार चुनाव प्रचार किया वह अपने आप में ऐतिहासिक रहा। सभी पार्टियों ने साम, दंड और भेद सहित सभी प्रकार के तरीके अपना कर मतदाताओं को लुभाने का प्रयास किया। चुनाव प्रचार अरविन्द केजरीवाल  पर शीशमहल बनाने और मोदी सरकार पर प्रतिपक्ष के नेताओं को गलत तरीकों से फंसाने दल बदल कराने तथा मुफ्त योजनाओं की बौछारें किए जाने आदि मुख्य चुनावी मुद्दें रहें। साथ ही आठवें वेतन आयोग के गठन की घोषणा तथा केन्द्रीय बजट में 12 लाख रु तक की आय पर आयकर के छूट आदि का असर भी दिल्ली के सरकारी और मध्यम  वर्ग के 70 लाख मतदाताओं पर देखने को मिला। फिर भी केजरीवाल को अपने कमिटेड और मुस्लिम मतदाताओं एवं भाजपा को हिन्दू मतदाताओं के ध्रुवीकरण तथा कांग्रेस को अपने परम्परागत वोटों के फिर से अपनी ओर झुकाव होने की उम्मीद हैं।

दिल्ली में 28 दिसंबर 2013 आम आदमी पार्टी (आप) ने कांग्रेस की मदद से दिल्ली में पहली बार सरकार बनाई थी। अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन छोड़कर राजनीति में आए अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में 2013 में चुनावी समर में उतरी आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई और 28 सीट जीत कर सारे राजनीतिक विश्लेषकों के अनुमानों को गलत साबित कर दिया था। इस चुनाव में 8 सीट जीतने वाली कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए आम आदमी पार्टी को बिना शर्त समर्थन देकर उसकी सरकार बनाने का रास्ता साफ कर दिया था। हालांकि, अरविंद केजरीवाल ने कुछ समय बाद ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके चलते 2015 में दिल्ली में मध्यावधि चुनाव कराए गए थे। 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीतों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी, जबकि भाजपा को मात्र 3 सीटें मिली थीं और कांग्रेस खाता तक नहीं खोल पाई थी। इसके बाद 2020 के विधानसभा चुनाव में भी ‘आप’ ने 70 में से 62 पर जीत दर्ज की और भाजपा महज को 8 सीटों से संतोष करना पड़ा था। वहीं कांग्रेस लगातार दूसरी बार फिर से बिना एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई थी।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दिल्ली विधानसभा के चुनाव को भारतीय जनता पार्टी ने  इस बार अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना दिया और अपनी सारी ताकत चुनाव में लगा दी जिसके कारण अनुमान  है कि हरियाणा और महाराष्ट्र की तरह त्रिकोणीय और बहुकोणीय मुकाबला होने का फायदा इस बार भाजपा को मिलने का अनुमान लगाया  जा रहा हैं। ऐसे में दिल्ली में फिर से कमल खिले तो कोई आश्चर्य नहीं।

देखना है कि आठ फरवरी को ईवीएम मशीने एग्जिट पोल्स के परिणामों को कितना सच साबित करती हैं ?


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