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राजस्थान की झांकी को भले ही गणतंत्र दिवस की मुख्य परेड में शामिल होने का अवसर नहीं मिला लेकिन लोगों के दिलों पर राज करने का अवसर अवश्य मिला 

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30 Jan 25
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 गोपेन्द्र नाथ भट्ट 

राजस्थान की झांकी को भले ही गणतंत्र दिवस की मुख्य परेड में शामिल होने का अवसर नहीं मिला लेकिन लोगों के दिलों पर राज करने का अवसर अवश्य मिला 

 राजस्थान की झाँकी के इस बार गणतंत्र दिवस की मुख्य परेड में शामिल नहीं होने पर राजस्थान की सात करोड़ जनता के साथ साथ देश विदेश में बसे प्रवासी राजस्थानियों और दिल्ली वासियों को भी भारी निराशा हुई। वैसे 2024 में कर्तव्य पथ पर निकली झांकियों में राजस्थान की झांकी को शामिल किया गया था लेकिन उस बार केन्द्र और राज्य ने डबल इंजन सरकार के होते लोगों की उम्मीदें कुछ ज्यादा ही थी।

 

 वैसे गणतंत्र दिवस की मुख्य परेड में केन्द्र और राज्यों की झांकियों को शामिल करने का कार्य रक्षा मंत्रालय द्वारा गठित एक उच्च स्तरीय समिति की देखरेख में होता हैं। यह समिति झांकी की डिजाईन और उसके गुण दोषों तथा प्रासंगिकता के आधार पर चयनित झांकियों के मॉडल बनवाती है। जिस झांकी का मॉडल तैयार होता है तब अमूमन यह माना जाता है कि उस झांकी का गणतंत्र दिवस की मुख्य परेड में शामिल होना तय है। इस वर्ष राजस्थान की झांकी का जब मॉडल तैयार हुआ था तो माना गया था कि इस वर्ष भी कर्तव्य पथ पर राजस्थान की बहुरंगी संस्कृति और गौरवमय इतिहास एवं समृद्ध विरासत के साथ साथ विकास को समेटे राजस्थान की बहुरंगी झांकी भी निकलेंगी लेकिन ऐन वक्त पर राजस्थान की झाँकी को लाल किला पर आयोजित भारत पर्व की झांकियों में शामिल कर दिया गया। 

 

 बताया जा रहा है कि पिछले वर्ष रक्षा मंत्रालय द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति ने भारत सरकार की सहमति से यह निर्णय लिया था कि जिन झांकियों को वर्ष 2024 में मौका मिला है उन्हें अब 2026 में ही मुख्य परेड में शामिल किया जायेगा तथा ऐसी सभी झांकियां इस वर्ष भारत पर्व का हिस्सा बनेगी लेकिन राजस्थान को तब धक्का लगा जब राजस्थान की ही तरह 2024 में मुख्य परेड में शामिल हुई कतिपय झांकियों को तो गणतंत्र दिवस की मुख्य परेड में शामिल कर लिया गया लेकिन राजस्थान इस मामले में सौभाग्य शाली नहीं रहा तथा उसे लाल किला पर आयोजित भारत पर्व का हिस्सा बनने से ही सन्तुष्ट होना पड़ा। राजस्थान के साथ ही कुछ और प्रदेश भी मुख्य परेड में शामिल नहीं हो पाए तथा इसे लेकर कही न कही असंतोष के स्वर भी सुनाई दिए। यह भी बताया जाता है कि राष्ट्रीय स्तर पर झांकियों के कार्य पर कतिपय फेब्रिकेटर्स का आधिपत्य हैं और अधिकांश झांकियों वे स्वयं अथवा उनके सहयोगी बनाते हैं। ऐसे में कई राज्यों को दवाब में आकर भी काम करना पड़ता हैं। जानकारों का मानना है कि संभवत प्रधानमंत्री मोदी और केन्द्रीय रक्षा मंत्री के संज्ञान में कई बातें नहीं हैं अन्यथा राज्यों की झांकियों के चयन निर्माण और समानुपातिक प्रतिनिधित्व देने की दृष्टि से एक पारदर्शी और कारगर नीति बन जाती ताकि किसी प्रदेश की भावनाओं को ठेस नहीं लग सकें और विरोध के स्वर भी नहीं उभरे। 

 

 वर्ष 2014 में नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले गणतंत्र दिवस की मुख्य परेड में भारी भरकम पैसा खर्च कर तैयार होने वाली झांकियां अक्सर स्क्रैब में तब्दील हो जाती थी। नरेन्द्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब भी उन्होंने गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के बाद गुजरात की झांकी को स्क्रैब में जाने के बजाय गुजरात भवन में लोगों के दर्शनार्थ भवन में रखवाया। मोदी जी के जेहन में यह बात तब से ही घर कर गई कि कलाकारों के कठिन परिश्रम तथा राज्यों के मोटे बजट से बनने वाली झांकियों का ऐसा कोई हश्र नहीं होना चाहिए कि झांकियां क्षणिक अवलोकन मात्र बन जाए। यही कारण रहा होगा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने झांकियों को आम जनता को नजदीक से दिखाने तथा भारत की कला, संस्कृति और विरासत का दिग्दर्शन देश दुनिया के मध्य कराने भारत पर्व की शुरुआत कराई तथा प्रधानमंत्री मोदी की पहल से शुरू हुआ भारत पर्व आज इतना अधिक लोकप्रिय हो गया है कि है हर कोई ऐतिहासिक लाल किला पहुंच कर झांकियों और भारत पर्व के अन्य कार्यक्रमों को देखने का अवसर नहीं छोड़ना चाहता।

 

 इस बार भी भारत पर्व में शामिल हुई झांकियों में राजस्थान की झांकी को जो पब्लिक रिस्पॉन्स मिल रहा है उससे यह साबित हो गया है कि भले ही गणतंत्र दिवस की मुख्य परेड में शामिल होने का अवसर नहीं मिला लेकिन उसे हमेशा की तरह लोगों के दिलों पर राज करने का अवसर अवश्य मिला हैं।


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