वह शुभ दिन
आज तक याद है
जब उनसे बंधी थी नेह की डोर
दिनों -दिन मजबूत हुई यह डोर,
चांद तारों की तरह
हम उनके
वो हमारे दिल में रहने लगे.
हम उनकी, वो हमारी राह बने,
हो जाता था हल
हर मसला हल
हिलमिल कर,
हर छोटी -मोटी बात को करके
नजरअंदाज और दरकिनार,
थामे रहे नेह की डोर
हम दोनों.
न जाने कैसे
नेह के चाँद पर
ग्रहण की तरह
आया एक दिन ऐसा
कि
इक छोटी सी भूल हमारी
नश्तर बनकर चुभी उन्हें..!
मनाने की अनुनय- विनय भी
आई नहीं काम
नेह का नाता टूट सा गया
चुभती शूल सी भूल
उन्हें
हरेक पल,
फिर भी
रही सदा ही मन में एक
आशा की किरण
कि जरूर आएगा
वो शुभ दिन
जब
मिल बैठेंगे साथ पुनः हम
सुखद समीरन के आँगन में ।