राजस्थान विधानसभा की सात सीटों पर 13 नवंबर को हुए उप चुनावों के आगामी 23 नवंबर को घोषित होने वाले चुनाव परिणामों के बाद प्रदेश में कई प्रकार के राजनीतिक परिवर्तन होने की संभावना है। ये चुनाव परिणाम भाजपा के साथ ही कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के ए भी दूरगामी परिणाम लाने वाले साबित होंगे।
विधानसभा उप चुनाव के परिणामों के बाद भजन लाल मंत्रिपरिषद के पुनर्गठन और राजनीतिक नियुक्तियों की पूरी संभावना हैं। हालांकि यह परिवर्तन अगले माह 9 से 11 दिसम्बर तक होने वाले राइजिंग राजस्थान ग्लोबल इन्वेस्टमेंट समिट 2024 के मेगा इवेंट के पहले या बाद में हो सकते है।
चुनाव परिणामों को लेकर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों पार्टियां उप चुनाव वाली सातों विधानसभा सीटें जीतने का दावा कर रही है। साथ ही क्षेत्रीय दल भारत आदिवासी पार्टी (बाप):और आरएलपी (रालोपा) भी अपने अपने गढ़ों को सुरक्षित मान रहें है। भाजपा का दावा है कि वह इस बार अपनी सलूंबर सीट को सुरक्षित रखने के साथ ही चौरासी, रामगढ़, झुंझुनूं, दौसा तथा उनियारा देवली सीट भी विरोधियों से छीनने जा रही है। वहीं राजनीतिक पर्यवेक्षकों का भी अनुमान है कि उप चुनाव वाली विधानसभा सीटों पर इस बार पिछले चुनावों के उलट स्थिति बन सकती है और कांग्रेस पार्टी एक अथवा शून्य तक सीमित हो सकती है तथा भाजपा को चार या पांच सीटें मिल सकती हैं। वहीं बाप के राजकुमार रोत और आरएलपी के सुप्रीमों हनुमान बेनीवाल एक बार फिर से अपनी ताकत का प्रदर्शन कर सकते है। यदि वे ऐसा नहीं कर पाए तो राजनीतिक रुप से सबसे अधिक धक्का हनुमान बेनीवाल को लगेगा और बेनीवाल की पार्टी का विधानसभा से अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि उप चुनावी में प्रायः सता में रहने वाली पार्टी को हर दृष्टि से लाभ मिलता है।
राजस्थान में इस बार पहली बार एक साथ सात विधानसभा सीटों पर उप चुनाव हुए है। इतनी बड़ी संख्या में पहले कभी उप चुनाव नहीं हुए। इस बार के चुनावों में सभी राजनीतिक दलों ने परिवारवाद,जातिवाद और सहानुभूति का कार्ड भी खेला। अन्य दलों के मुकाबले सत्ताधारी भाजपा नेताओं विशेष कर मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा, उनके मंत्रियों और प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ ने सुनियोजित ढंग से सघन,आक्रामक एवं धुंआधार चुनाव प्रचार अभियान चलाया।
उप चुनावों के परिणामों में इस बार यदि भाजपा चार या पांच विधानसभा सीटों पर चुनाव जीत कर बाजी पलट देती है और लोकसभा में मिली हार का बदला ले लेती है तो मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा को मंत्रिपरिषद में अपनी पसन्द के विधायकों को शामिल कर मंत्रिपरिषद के पुनर्गठन करने की छूट मिल सकती है। साथ ही प्रदेश में खाली पड़े सरकारी एवं गैर सरकारी पदों पर राजनीतिक नियुक्तियों का रास्ता भी साफ हो सकता हैं। वैसे भी उप मुख्यमंत्री प्रेम चंद बैरवा और विवादास्पद अन्य मंत्रियों के मामलों को शीर्ष नेतृत्व द्वारा उप चुनाव को देखते हुए पेडिंग रखना बताया जाता है। इसी प्रकार भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ को भी संगठन में फेरबदल की इजाजत मिल जाएगी। हालांकि मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष को इसमें क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों को भी साधना होगा तथा शीर्ष नेतृत्व की रजामंदी भी लेनी पड़ेगी। यदि उप चुनाव के परिणाम भाजपा के उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहें तो प्रदेश की वर्तमान भाजपा सरकार पर हालांकि इसका कोई असर नहीं पड़ेगा क्योंकि भाजपा को विधानसभा में पहले से ही बहुमत हासिल हैं,लेकिन मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा और प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ के साथ ही भजन लाल मंत्रिपरिषद के सबसे वरिष्ठ मंत्री डॉ किरोड़ी लाल मीणा और अन्य मंत्रियों और पदाधिकारियों की छवि भी धूमिल होगी तथा कुछ मंत्रियों को मंत्रिपरिषद पुनर्गठन में मंत्री पद से भी हाथ धोना पड़ सकता है। दूसरी ओर भाजपा की जीत पर डॉ किरोड़ी लाल मीणा की पदोन्नति हो सकती है तथा मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा का कद और अधिक बढ़ने से उनकी प्रदेश की सियासत तथा राज्य प्रशासन पर पकड़ और अधिक मजबूत हो सकती है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि राजस्थान में विधानसभा की सात सीटों पर हुए उप चुनाव के परिणाम प्रदेश की राजनीति में दूरगामी परिणाम लाने वाले साबित होंगे। विधानसभा में भाजपा के विधायकों की संख्या बढ़ने पर आने वाले राज्यसभा चुनाव में भाजपा को ताकत मिलेगी। साथ ही भजन लाल मंत्रिपरिषद में खाली सीटों को नियमानुसार भरने का मार्ग भी प्रशस्त होगा।
दूसरी ओर उप चुनाव में आशानुरूप सफलता नहीं मिलने से कांग्रेस के अंदर का घमासान और अधिक बढ़ सकता है। उप चुनाव में कांग्रेस के केंद्रीय और स्थानीय बड़े नेताओं की चुनाव प्रचार में बेरुखी पर सवाल भी उठेगा। इस बार पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट ने चुनाव प्रचार के लिए आदिवासी अंचल सलूंबर और चौरासी तथा झुंझुनूं आदि विधानसभा सीटों की ओर रुख ही नहीं किया तथा कांग्रेस की पूरी चुनाव रणनीति स्थानीय नेताओं, सांसदों और विधायकों के कंधों पर ही निर्भर रही। हालांकि हाई कमान ने गहलोत और पायलट को महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव की जिम्मेदारियां भी दे रखी थी इसलिए वे ज्यादातर उन प्रदेशों के ही व्यस्त रहें। चुनाव प्रचार के लिए कांग्रेस के पास साधन सुविधाओं की भी कमी दिखी। यदि कांग्रेस उप चुनाव के परिणामों में वर्तमान की अपनी चार सीटों दौसा,झुंझुनूं, रामगढ़ और उनियारा देवली विधानसभा सीटों पर चुनाव हार जाती है तो विधानसभा में न केवल उनकी सीटें कम हो जाएगी वरन पूर्वी राजस्थान में सचिन पायलट की साख को भी गहरा धक्का लगेगा। साथ ही दौसा में सांसद मुरारी लाल मीणा तथा उनियारा देवली में सांसद हरीश मीणा की प्रतिष्ठा को भी नुकसान होगा। इसी प्रकार झुंझुनूं में शीशराम ओला परिवार तथा रामगढ़ में जुबेर खान परिवार के परंपरागत वर्चस्व को भी धक्का लगेगा । दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी अंचल में यदि कांग्रेस मुकाबले में दूसरे साथ पर भी नहीं रही तो उदयपुर के मेवाड़ और वागड़ अंचल में कांग्रेस के अस्तित्व को ही बचाने का बहुत बड़ा सवाल खड़ा हो जायेगा। वैसे यह इस अंचल में बाप पार्टी के उद्भव और तेजी से बढ़ते उसके प्रभाव को देखते हुए राजस्थान और इससे लगते गुजरात और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती आदिवासी इलाकों में कांग्रेस के साथ साथ भाजपा के लिए भी चिन्ता का विषय बन सकता है। साथ ही बाप पार्टी के एजेंडे में भील प्रदेश की मांग राष्ट्रीय विचार का मुद्दा भी बनेगा।
इस बार उनियारा देवली में एक निर्दलीय प्रत्याशी द्वारा ड्यूटी पर तैनात एस डी एम को थप्पड़ जड़ने के मामले की दुर्भाग्यपूर्ण घटना से प्रदेश का सरकारी अमला उद्वेलित है तथा इस मामले की पूरे देश में चर्चा हो रही है। कुल मिला कर राजस्थान विधानसभा के उप चुनाव के परिणाम भाजपा, कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के लिए दूरगामी परिणाम वाले साबित होने वाले हैं । देखना है राजस्थान का जहाज माने जाने वाला ऊंट इस बार राजनीतिक रुप में किस करवट बैठने वाला है?