आजकल जल संकट की समस्या ने भयावह रूप धारण कर लिया है। इस वर्ष प्रदेश में 8% अधिक वर्षा होने के बावजूद, जिस तरह से इन दिनों गर्मी पड़ रही है, उस पानी का भी गर्मियों तक सूखने की संभावना है। इसी गंभीर स्थिति पर आधारित एक जल नाटिका "नहीं आ रहा पानी" का मंचन भारत विकास परिषद "सुभाष" के दीपावली मिलन कार्यक्रम में किया गया।
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इस नाटिका में दिखाया गया है कि कैसे घरों में पांच दिनों से नल सूखे पड़े हैं, और महिलाएं पानी की तलाश में हाथ पंप तक जाती हैं, पर वह भी सूखा मिलता है। अंततः, वे पास के पुराने कुएं की पनघट पर पहुंचती हैं, जहां पानी लेने के लिए उनके बीच संघर्ष होता है। यह दृश्य भविष्य के जल संकट की भयावहता को बखूबी चित्रित करता है।
एक महिला, जिसके बालों में शैंपू लगा होता है, नहाते समय पानी खत्म होने पर बाल्टी लेकर वहां पहुंचती है, लेकिन वहां भी सूखा ही मिलता है। तभी दूसरी महिला आती है, जो कहती है कि उसके ससुर बहुत बीमार हैं और उसे पहले पानी चाहिए। तीसरी महिला अपने छह महीने के बच्चे को छोड़कर पानी लेने पहुंचती है और बताती है कि उसके घर में बिल्कुल पानी नहीं है। इसी बीच एक अन्य महिला चुपके से पनघट से अपना पाइप जोड़कर पानी लेने लगती है, लेकिन अन्य महिलाएं उसका पाइप निकाल फेंकती हैं। वह महिला कहती है कि उसे अपने स्विमिंग पूल के लिए पानी चाहिए, पर बाकी महिलाएं उसे धक्का देकर वहां से जाने के लिए कहती हैं। उनके बीच की यह लड़ाई, स्वार्थ और पानी की बर्बादी की तस्वीर साफ तौर पर दर्शाती है।
इस बीच, मोहल्ले की एक बुजुर्ग महिला वहां आती है और सभी को समझाती है कि यदि उन्होंने बारिश के पानी को बचाकर उसे ट्यूबवेल में रिचार्ज किया होता, और रोजमर्रा के जीवन में पानी का संरक्षण किया होता, तो आज यह स्थिति नहीं आती। इस संदेश के साथ नाटिका समाप्त होती है, जो जल संकट के प्रति एक गहरी सीख छोड़ जाती है।
इस नाटिका को डॉक्टर मंजू जैन द्वारा रचित और जल मित्र डॉक्टर पी.सी. जैन के निर्देशन में प्रस्तुत किया गया, जिसमें डॉक्टर मंजू जैन, एडवोकेट अंजना नागदा, सुशीला अग्रवाल, सीमा खमेसरा, मीनाक्षी खुर्दिया और रेखा धाकड़ ने अपने भावपूर्ण अभिनय से सभी का दिल जीत लिया।