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महिला लेखन की पूर्व पीठिका की निर्मिति :  'नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान'  

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07 Nov 24
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महिला लेखन की पूर्व पीठिका की निर्मिति :  'नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान'  

नारी की रचनाधर्मिता ने उनकी कल्पनाशीलता और संवेदनशील प्रतिभा के विविध आयाम अपने रचनाकर्म में व्यक्त कर समकालीन धारा का बखूबी चित्रण ही नहीं किया है वरन् उसे अपनी मौलिक सोच और गहरी दृष्टि से अनुभवों के गलियारों में गहराई से परखा भी है। 
         इन सभी सन्दर्भों की गहरी विवेचना डॉ. प्रभात कुमार सिंघल की इस कृति "नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान" में परिलक्षित होती है, जिसमें राजस्थान के साहित्यिक और सांस्कृतिक अंचल हाड़ौती ( कोटा, बूंदी, बारां और झालावाड़) की महिला रचनाकारों की साहित्यिक भाव भूमि में विद्यमान रचनात्मक उर्वरकता की सौंधी गंध रचनाओं में गंधायमान है। इस सुगंध से गद्य और पद्य की विविध विधाएँ शैलीगत विशेषताओं के साथ ही नहीं वरन् अभिव्यक्ति की कौशलता से सराबोर हैं। 
सृजन की इस विविधता में सामाजिक और पारिवारिक सन्दर्भ में विविध क्षेत्रों से जुड़ी सृजनशील और स्थापित महिला रचनाकारों के साथ - साथ नवोदित महिला रचनाकारों द्वारा सामाजिक सरोकारों से संदर्भित समकालीन परिवेश से संवेदित रचनाओं का लेखन कर  अपनी अनुभूतियों को शब्दों के माध्यम से उकेरा है। 
           इन सृजनशील महिला रचनाकारों की कथा - कहानियों में जीवन और जगत में उभरते सामाजिक परिवेश के साथ नारी जीवन और  उससे सम्बन्धित सामाजिक समस्याएँ और उनका समाधान उजागर होता है। इनके पात्रों में आत्म-मंथन बना रहता है। वे टूटते, बिखरते, छितरने के बजाय संघर्षरत रहते हैं, वे अन्याय के प्रति संघर्ष को दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए सफलता पाने में सक्षम होते हैं। यही नहीं उनके ये पात्र नारी-उत्पीड़न के विरुद्ध स्वर ऊँचा करने में भी पीछे नहीं हैं। 
         इन सृजनशील महिला रचनाकारों की कविताएँ भारतीय सांस्कृतिक परिवेश को समेटे हुए सामाजिक शोषण के विरुद्ध मुखर होती हैं। यही नहीं काव्य की विविध विधाओं में उभरी काव्य रचनाओं में मानव-मन की कोमल अनुभूतियाँ और मनोवैज्ञानिक गहराई तो दृष्टिगोचर होती ही है, साथ ही सांस्कृतिक परिवेश का प्रभाव भी स्पष्ट रूप से सामने आकर पाठक को अपने साथ यात्रा करवाता है। इनकी कविताओं में उदात्त प्रेम की सहज अभिव्यक्ति है तो अनुभवों का सजग चेतन स्वरूप भी सामने आता है। जीवन - दर्शन से संदर्भित इन कविताओं में सामाजिक चिंतन के विविध आयाम उभरे हैं तो सांस्कृतिक चेतना और संस्कारों के अटूट सम्बन्ध भी चित्रित हुए हैं।
        गद्य की विविध विधाओं में सृजनरत इन महिला रचनकारों का गद्य लेखन विषयवस्तु के अनुरूप सामने आया है, वहीं परिवेशजन्य अनुभूतियाँ अपने शैल्पिक सौन्दर्य से उभरी हैं।
भाषा, शैली के स्तर पर इन महिला रचनाकारों का लेखन सहज, सरल तो है ही साथ ही शिल्प और शैली के स्तर पर नवीन प्रयोग भी सामने आये हैं, यथा पाँच पंक्तियों में नौ शब्दों वाली सायली कविता।
         लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल ने अपनी समीक्षात्मक दृष्टि, सर्वेक्षणात्मक कौशल और शोधात्मक वृत्ति के साथ इन सभी महिला रचनाकारों के लेखन को गहन अध्ययन और साक्षात्कार के माध्यम से उकेरा है। कदाचित् इसीलिए इन आलेखों में रचनाकारों के लेखन का आरम्भिक सन्दर्भ, लेखन पर प्रभाव, लेखन विधा, भाषा, शैली, विषयवस्तु , विशेषता, इनकी सामाजिक उपयोगिता, लेखन का मर्म और सृजन के सामाजिक सरोकारों का विश्लेषण रचनात्मक अवदान के साथ गहनता से उभर कर सामने आया है।  
       लेखक ने अपनी अंतर्दृष्टि से रचनाओं का समुचित उल्लेख करते हुए प्रत्येक लेखिका के रचनात्मक भावों को उकेरा है। वहीं रचना के भीतर के तत्वों को विश्लेषित करते हुए उसके मर्म को उजागर किया है। यही नहीं प्रत्येक महिला लेखक के समूचे कृतित्व को अपनी समीक्षा पद्धति से सारगर्भित रूप में प्रस्तुत कर उनके व्यक्तित्व को संक्षेप में उभारा है तथा इन सभी  लेखिकाओं को समकालीन सृजन सन्दर्भों के समक्ष प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत कर सृजन परिवेश को समृद्ध किया है।
अन्ततः यही कि लेखक डॉ. प्रभात कुमार सिंघल की यह कृति समकालीन महिला लेखन सन्दर्भों में वह सृजनात्मक पड़ाव है, जो आने वाले समय में हाड़ौती अंचल की महिला लेखन की पूर्व पीठिका निर्मित करता है। 

 


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