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जितेंद्र 'निर्मोही ' जी बने पथगामी...........

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07 Nov 24
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जितेंद्र 'निर्मोही ' जी बने पथगामी...........

यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि न मुझे लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार आदरणीय जितेंद्र ' निर्मोही ' जी मिलते और न ही मैं साहित्य से जुड़ कर साहित्य पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखता। यूं तो स्व.रामचरण महेंद्र, दयाकृष्ण विजय, राकेश भारद्वाज, गजेंद्र सोलंकी, प्रेम जी प्रेम, धन्ना लाल सुमन, प्रेम लता जैन, शिव नारायण वर्मा, अतुल कनक, पुरुषोत्तम पंचोली, ओम नगर आदि कई साहित्यकारों का सानिध्य भी खूब प्राप्त हुआ है । 
** बात पुरानी नहीं कोई तीन साल पहले निर्मोही जी को न जाने मेरा नाम कहां से ज्ञात हो गया और मुझे ज्ञान भारती संस्था के एक कार्यक्रम में अध्यक्षता के लिए कहा तो मैं आवक रह गया। मैने कहा अजी किसी साहित्यकार को बुलाएं , मैं तो बस ऐसे ही कुछ लिख लेता हूं। कहने लगे आप क्या हो मुझे मालूम है। आपको आना ही है। पता नहीं उस समय मेरे बारे में क्या मालूम कर मुझे बुलाया। यह मेरा इनसे पहला परिचय था।
** कार्यक्रम में गया। राजस्थानी भाषा के साहित्य के पुरस्कार वितरण का कार्यक्रम था। इस भाषा के संदर्भ में विद्वानों के वक्तव्य सुने और समझे। बैठे- बैठे मन में कुछ विचार आया कि मुझे भी कुछ करना चाहिए। जब मुझे दो शब्द बोलने को कहा तो , राजस्थानी भाषा पर तो मैं अधिकृत रूप से क्या बोलता, अपना विचार बताते हुए कहा कि मैं हाड़ोती अंचल के साहित्यकारों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर लिखना चाहता हूं आप मुझे अपने परिचय उपलब्ध करवादें तो । सभी ने मेरे विचार का उत्साह से इस प्रकार स्वागत किया, जैसे पता नहीं कितनी बड़ी बात कह दी । 
**  कार्यक्रम के बाद में मेरा होंसला बढ़ाते हुए निर्मोही जी ने कहा यह तो पहले किसी ने नहीं किया आप करेंगे तो साहित्य के क्षेत्र में एक नया कार्य होगा। निर्मोही जी द्वारा मुझे इस कार्यक्रम से क्या जोड़ा आगे निरंतर उनकी प्रेरणा और मार्ग दर्शन से गहराई से जुड़ता गया। विकासात्मक और पर्यटन पत्रकारिता के बाद साहित्यिक पत्रकारिता में कदम बढ़ाया। साहित्यिक पत्रकारिता के छोटे से तीन वर्ष के काल खंड में ही यह क्षेत्र मेरे लिए भावी सीढ़ी का पायदान बन गया। 
** साहित्यकारों पर जब लेख लिखे शुरू किए और वे सोशल मीडिया और राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रसारित और प्रकाशित हुए तो उन्हें पढ़ कर उन्होंने सुझाव दिया इसकी एक किताब बना दो। इस सुझाव ने मेरे मन में जल रही आग में घी का काम किया और मैं ज्यादा तेजी से आगे बढ़ता गया। परिणाम स्वरूप " जियो तो ऐसे जियो" कृति सामने आई। अंचल के 63 साहित्यकारों के साथ अन्य क्षेत्रों की कुल 99 प्रतिभाओं वाली इस कृति को साहित्यकारों ने मुक्त कंठ से सराहा और प्रेरित किया।
** इसी पुस्तक के लोकार्पण समारोह में उन्होंने मुझे सुझाव दिया कि आप हाड़ोती अंचल की महिला साहित्यकारों के साहित्यिक अवदान पर नई पुस्तक लिख सकते हैं। सुझाव की गंभीरता को समझ,  विचार कर वहीं मैने यह पुस्तक लिखने का अपना मंतव्य व्यक्त कर दिया कि अगले महिला दिवस पर आप इसका लोकार्पण करेंगे। महिला साहित्यकारों का इतना आश्चर्जनक सहयोग मिला के " नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान " मात्र 8 महीने में यह कृति सामने आ गई। मै यह कहने में गर्व महसूस कर रहा हूं कि यह मेरी अब तक की सर्वाधिक लोकप्रिय कृति रही। उत्साह से लबरेज निर्मोही जी ने  नींव से निर्माण तक पहुंचा कर  इसका भव्य लोकार्पण स्वयं करवाया। महिलाओं का इतना उत्साह जोर उमंग मैने भी किसी कार्यक्रम में नहीं देखा। 
** निर्मोही जी जिस पथ के संवाहक बने मैने अपने जीवन के छोटे - छोटे संस्मरण लिख कर " नई बात निकल कर आती है" कृति में संकलित कर दिए। इस समय तक हाड़ोती के साहित्यकार रामेश्वर शर्मा ' रामू भैया ', विजय जोशी, डॉ. कृष्णा कुमारी, रेखा पंचोली, डॉ. संगीता देव, डॉ. हिमानी भाटिया, योगेंद्र शर्मा, जोधराज परिहार, हलीम आइना, डॉ. इंदु बाला शर्मा, रेणु सिंह ' राधे ', स्नेहलता शर्मा, महेश पंचोली, राम मोहन कौशिक, विजय महेश्वरी, डॉ.शशि जैन आदि से भी प्रमुख रूप से जुड़ गया। कह सकता हूं की ये मुझे साहित्यिक मित्र मिल गए।
** इसी सफर के मध्य मुझे जब कुछ ऐसे कार्यक्रमों में सम्मानित होने और भाग लेने का अवसर मिला जहां देश के विभिन्न अंचलों के साहित्यकारों से परिचय हुआ ( विशेष कर साहित्य मंडल नाथद्वारा का कार्यक्रम) तो राजस्थान के चुनिंदा साहित्यकारों के साहित्यिक अवदान पर लिखने का मानस बनाया। राजस्थान वासी और प्रवासी 63 साहित्यकारों की कृति " राजस्थान के साहित्य साधक " प्रकाशन प्रक्रिया में है। इसमें भी साहित्यकारों से परिचय कराने में निर्मिही जी की अहम भूमिका रही और मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ। विजय जोशी जी ने हर कृति में आशा से अधिक सहयोग कर अपना अमूल्य समय दिया।
** कई बार यह प्रश्न सामने आया कि बच्चों को साहित्य से कैसे जोड़ा जाए ? इस दिशा में बहुत छोटा सा प्रयास " बाल साहित्य मेला " के रूप में शुरू किया। अब तक 15 विद्यालयों में बाल साहित्य मेले आयोजित कर विविध साहित्यिक गतिविधियों से बच्चों को जोड़ा जा चुका है। मुख्य सप्ताह के कार्यक्रम आगामी 11 से 17 नवंबर को बाल दिवस के संदर्भ में आयोजित होंगे। किशन रत्नानी जी इन कार्यक्रमों का संयोजन कर रहे हैं। इसी दौरान बाल साहित्य लेखन को बढ़ावा देने के लिए साहित्यकारों की दो "बाल कविता लेखन"  प्रतियोगिता भी आयोजित की गई। कोटा साहित्य मंडल बनाने पर विचार चल रहा है।
** कहा जाता है निर्मोही जी ने हाड़ोती में राजस्थानी भाषा के विकास और नए साहित्यकारों को पनपाने में बड़ा काम किया है। औरों का तो मैं क्या कहूं पर मुझे साहित्य जगत से जोड़ने में नि:संदेह निर्मोही जी पथ गामी बने हैं। यह बात अलग है कि स्वाभाविक  वैचारिक विभिन्नता के चलते वे कभी कभी खिन्न हो जाते हैं , फिर मान भी जाते हैं। साहित्यिक पत्रकारिता की ओर मोड़ने के लिए उनका ह्रदय से बारंबार आभार....!


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