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अद्वितीय थे हड़प्पा संस्कृति के शहर - प्रो. शिन्दे

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22 Sep 24
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अद्वितीय थे हड़प्पा संस्कृति के शहर - प्रो. शिन्दे

 

‘हड़प्पा सभ्यता की खोज के 100 वर्ष: पुरानी समस्याएं और नवीन दृष्टिकोण’ विषयक दो दिवसीय संगोष्ठी का हुआ समापन।

 

 हड़प्पा संस्कृृति के शहर अद्वितीय योजना वाले थे। सामान्य शहर दो हिस्सों में बटे थे। गढी और निचला नगर के नाम से जाना जाता है। अब तक ज्ञात सभी सभ्यताओं में सबसे प्राचीन है। इसकी खोज 1921 में हुई। इसका विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा के किनारे हुआ। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा और राखीगढ़ी इसके प्रमुख केन्द्र थे, ये विचार भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली एवं साहित्य संस्थान जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय, उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्टीय संगोष्ठी के दूसरे दिन समापन सत्र में कहे।

‘हड़प्पा सभ्यता की खोज के 100 वर्ष: पुरानी समस्याएं और नवीन दृष्टिकोण’ विषयक संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि आज हड़प्पा खोज के 100 वर्ष पूर्ण हुए हैं। आज भी कई पहलू हैं जिन पर गहन शोध की आवश्यकता जान पड़ती है। हड़प्पा सभ्यता में पशुपति को प्रमुख देवता माना जाता था। उपलब्ध ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार इन्हें जंगलों और पशुओं के देवता के तौर पर पूजा जाता था। हड़प्पाई लिपि में लगभग 64 मूल चिह्न हैं जो सेलखड़ी की आयताकार मुहरों, तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं। 

 उन्होंने कहा की सभ्याता के पन्द्रहसौ ज्ञात बस्तीयों में नौ सौ भारत में और छह सौ भारत में है, इनमें से तीन विशाल षहर हड़प्पा माहनिा जोदाडो गनबेरी वाला पाकिस्तान में है। राखीगढी, कालीबंगा, रंगपुर एवं धोलावीरा भारत में है। अब तक नब्बे स्थलों का उत्खनन किया जा चुका है। यह सभ्यता अद्वितीय नगर नियोजन बाट, माहरें तथा विशिष्ट मिट्टी के बर्तनों लिपि के कारण पहचाने जाते है। विश्व की प्राचीन सम्याताओं में इसका क्षेत्रफल सबसे अधिक है, जो लगभग वर्तमान पाकिस्तान के बराबर है। इस सभ्यता की शंरुआत में लोगा का जीवन यापन गेहूं और जौ से हुआ, शहरी करण के अन्ति दौर में अनेक प्रकार के मोटे अनाज जैसे ज्वार बाजरा आदि का समावेश हुआ। यह अत्यन्त रोचक जानकारी है कि कोई भी दो हड़प्पा सभ्यता के शहर के नगर नियोजन समान नहीं है। इस सभ्यता के अनेक विशिष्ट क्षेत्र पहचाने गए है जैसे गुजरात, सिंध, पूर्वी क्षेत्र आदि आदिये क्षेत्रीय विशेषता इनके स्थापत्य मोहरो, मिट्टी के बर्तनों में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। सेमिनार के दूसरे दिन अनेक महत्वपूर्ण प्रश्नों पर केन्द्रित प्रस्तुत किए गए। उदाहरण के लिए तत्कालीन समुद्री प्राणियों यथा शंख आदि का उपयोग, तत्कालीन धातु तकनीक, विभिन्न वैज्ञानिक उपकरणों द्वारा स्थलों की जांच, राज्य की अवधरणा उतरी राजस्थान हरियाणा एवं अरावली के ग्रामीण कांस युगीन संस्कृति।

समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रो एस. एस. सारगंदेवोत ने कहा कि हड़प्पा की संस्कृति में भारतीय संस्कृति एवं धरोहर का प्रामाणिक स्वरूप परिलक्षित होता है। उन्होंने कहा कि नमस्ते अभिवादन भी हड़प्पा ने दिया। इस सभ्यता के अध्ययन एवं खोज में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग गुजरात राज्य पुरातत्व विभाग, डेक्कन कालेज, महाराजा सयाजी राव विश्वविद्यालय, एवं राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय का महत्वपूर्ण योगदान है। यह संगोष्ठी जिन जिन विषयों को केन्द्र में रख कर आयोजित की गई है वह सफल रहा है और आगे भी पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया जाएगा। पुरानी सभ्यताए हमारी पहचान है और यह हमारी धरोहर है। इनका संरक्षण आवश्यक है।

 विशिष्ट अतिथि प्रो के के भान के हड़प्पा सभ्यता विस्तार की बात कही और कहा कि यह एक समृद्ध सभ्यता रही है। 

कार्यक्रम का प्रतिवेदन प्रो. जीवनसिंह खरकवाल ने प्रस्तुत किया और कार्यक्रम का संचालन और धन्यवाद डाॅ. कुलशेखर व्यास ने ज्ञापित किया ।

समापन समारोह में भारत के विभिन्न शहरों से प्रतिभागियों में एस. के अरुनी, बेगुलुरु, प्रा.े वी. एच. सोनावाने, डा विकास कुमार सिह, डा. मनीषा सिंह, डाॅ. नरेन्द्र परमार, प्रो पीण् डी. सावले, डाॅ. दिया मुखर्जी, डाॅ. निल पोखरिया, डा. लडू आर चैधरी, तमेघ पावार, चन्द्रशेखर सिंह, डाॅ. किंशुक शर्मा, अभीक सरकार, सौरभ भास्कर, विशाल माथुर , कशिका भाटिया, पायेल सेन, राहुल, जितेन्द ्र ताबियार, नारायण पालीवाल, शोयब कुरेशी, महेश आमेटा, सुपर्णा दे, संगीता सेनी, तरुण पुरी गोस्वामी, वैदैही दशोरा, अंकिश बन्दवाल, ने भाग लिया।


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