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प्रेम और त्याग का अतुलनिय उदाहरण है ‘‘आषाढ का एक दिन’’

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22 Jul 24
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प्रेम और त्याग का अतुलनिय उदाहरण है ‘‘आषाढ का एक दिन’’

धनाढ्य और पूंजीपतियों के आधिपत्य के चलते अपने माटी से उखडा कवि कालिदास

उत्तरदायित्वों व कर्तव्यों के बोझ तले वर्षों से दबा रहा सात्विक प्रेम

अपने प्रेमी कालिदास की प्रतिक्षा में वर्षो तक अभाव व भर्त्सना झेलती रही मल्लिका

उदयपुर। नाट्यांश सोसाइटी ऑफ ड्रामैटिक एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स द्वारा आयोजित एक दिवसिय नाट्य संध्या में रविवार 21 जुलाई 2024 को हिन्दी का सुप्रसिद्ध नाटक आषाढ़ का एक दिन का मंचन किया गया। अमित श्रीमाली द्वारा निर्देशित और मोहन राकेश द्वारा लिखित यह नाटक लगभग 6 दशक पहले लिखा गया। यह मोहन राकेश की लेखनी का चमत्कार है कि यह नाटक आज भी उतना ही सटिक और सार्थक है, जितना लेखन के समय रहा होगा। प्रत्यक्ष रूप से देखने पर यह नाटक संस्कृत के महाकवि कालिदास और उनकी प्रेयसी मल्लिका की प्रेम कहानी पर आधारित है। परन्तु समय-समय पर यह नाटक सत्ता के मद में चुर पूंजीपतियों की सोच को भी उजागर करता है, कि कैसे पूंजीपति और साधन सज्जित लोग अपने स्वार्थ सिद्धी और लालसा को तृप्त करने के लिए प्रतिभावान लोगों को शोषण करते है। साथ ही यह नाटक शिक्षा प्रणाली और कार्मिक तंत्र पर भी प्रकाश डालता है। वरिष्ठ रंगकर्मी श्री भानु भारती जी के मार्गदर्शन में टीम नाट्यांश के कलाकार इस प्रस्तुति को तैयार करने के लिए विगत 3 माह से निरन्तर प्रयासरत है।


 

कथासार

मल्लिका और कालिदास हिमालय की गोद में बसे एक छोटे से गाँव में रहते जो उज्जयिनी राज्य के अधिन है। कालिदास अपने मामा - मातुल के घर रहते है। अपनी माँ के साथ मल्लिका भी उसी गाँव में रहती है। बालसखा होने व साहित्य से अनुराग होने के कारण मल्लिका और कालिदास, दोनो के बीच बहुत प्रेम है। अपने निस्वार्थ प्रेम के चलते कालिदास विवाह के बंधन में नहीं बधना चाहता, और मल्लिका भी कालिदास को किसी बंधन में बंधा देख नहीं सकती।

मल्लिका की माँ अम्बिका को निस्वार्थ प्रेम की बातें समझ में नही आती और वो बार-बार मल्लिका को समझाने की कोशिश करती है, लेकिन मल्लिका के आगे उसकी एक नही चलती। उसी गाँव में रहते हुए कालिदास ने ऋतु संहार की रचना की, जो कुछ ही समय में बहुत ही प्रसिद्ध हो गई। इस रचना को पढ़ने के बाद उज्जयिनी के राजा ने कालिदास को राजकवि की उपाधी से सम्मानित करने हेतु राजदरबार आने का निमंत्रण भेजा। राजदरबार से इस निमंत्रण को लेकर आचार्य वररूचि इस गाँव में आये। परंतु कालिदास को ना तो सम्मान का मोह था और ना ही किसी पद की चाह। गाँव लोगों और मातुल के समझाने पर भी वो ग्रामप्रदेश को छोडकर नही जाना चाहता था। परंतु मल्लिका के आग्रह को कालिदास ठुकरा ना पाए। उसके समझाने और मनाने के बाद वो राजधानी जाने को तैयार हो गए। कालिदास का एक मित्र भी है - विलोम नाम से ही स्पष्ट है कि यह कवि कालिदास के बिलकुल विलोम है। विलोम और अम्बिका, मल्लिका से चाहते थे कि कालिदास के उज्जयिनी जाने से पहले उन दोनो की शादी हो जाए। लेकिन मल्लिका ने स्पष्ट रूप से मना करते हुए कह दिया कि उसका और कालिदास का प्रेम भावनाओं से जुड़ा हुआ है। उसे किसी रिश्तें या नाम की आवश्यकता नही है। मल्लिका के आग्रह पर कालिदास राजधानी चले गए।

कई वर्षों के बाद कालिदास ग्राम में लौट आये। परन्तु वो इस बार मल्लिका से भेंट करने नही आये, और ना ही उन्होंने इतने वर्षांे में मल्लिका की कोई खबर ली। परन्तु इस सबसे मल्लिका के निस्वार्थ और निर्मल प्रेम में कभी कोई द्वेश नही आया। वो पैसे जुटा-जुटा कर राजधानी से आने वाले व्यापारियों से अनुरोध करके कालिदास द्वारा रचित ग्रंथो की प्रतियाँ ख़रीदती रहती है।

उधर कालिदास का विवाह गुप्त वंश की एक राजकुमारी से हो गया, और उज्जयिनी के राजा ने कालिदास को काश्मीर का शासन को सम्भालने की जिम्मेदारी दी है। इसी सन्दर्भ में काश्मीर जाते हुए कालिदास रास्ते में पड़ रहे इस गाँव में आए है और राजकुमारी के कहने पर वो अपने गाँव में एक दिन के लिए रुकने को भी तैयार हो जाते है।

वास्तव में उनकी पत्नी मल्लिका से मिलना चाहती थी। जिसकी बात कालिदास हमेशा करते रहते थे। राजकुमारी यहाँ मल्लिका को अपने साथ चलने के लिए कहती है, लेकिन मल्लिका नही नहीं मानती। राजकुमारी ने उसे प्रस्ताव दिया कि वो उनके किसी सेवक से शादी कर ले, परंतु मल्लिका इस प्रस्ताव को भी स्विकार नही करती। राजकुमारी के जाने पर अम्बिका, मल्लिका को ताना मार कर कहती है कि ‘देख लिया अपने निस्वार्थ प्रेम का परिणाम, कालिदास ने तुम्हें अपना नौकर बनाने के लिए अपनी पत्नी को भेजा था।’ परन्तु मल्लिका इस सब के विषय में कुछ बात नही करती।

कहानी कुछ साल और आगे बढ़ती है। मल्लिका की माँ का देहांत हो गया है। मातुल का गाँव में बढ़िया सा मकान बन गया है। मल्लिका अभी भी अपने झर्झर हो रहे घर में रहती है। घर में मल्लिका और कालिदास के ग्रंथ पडे है। मातुल के माध्यम से मल्लिका को पता चलता है कि कालिदास राज-पाठ छोड़ कर सन्यास ले कर काशी निकल गए है। मल्लिका को विश्वास ही नहीं होता। कि तभी द्वार खुलता है, और सामने धूल, कीचड़, पानी और फटे कपड़े में कालिदास सामने दिखाई देते है। वर्षाें बाद मिलने पर दोनो की आँख से आंसू निकल पडते है।

कालिदास बताता हैं कि क्यों वह इतने सालो तक मल्लिका से नहीं मिले। उससे दूर रह कर भी उनकी सारी रचनाओं की नायिकाएँ मल्लिका से ही प्रेरित थी, कि तभी कालिदास कहते है कि - ‘‘मैं चाहता था, तुम ये सब पढ़ पाती।’’ इतना सुनते ही मल्लिका कालिदास की सभी रचनाएं ले आती है और कहती है - मैने तुम्हारी सभी रचनाएं पढ़ी है। यहाँ कालिदास पुनः सब कुछ अथ से आरम्भ करना चाहते हैं तभी एक बच्चें के रोने की आवाज़ आती है। तभी विलोम का प्रवेश होता है। वो ही कालिदास को बताता है कि कि मल्लिका का विवाह विलोम से हो गया है।

मल्लिका ने अपने जीवन का काफी समय कालिदास की प्रतिक्षा में काट दिया। कालिदास भी यह समझ गया कि उन्होने आते-आते बहुत देर कर दी और वो मल्लिका को अपने हाल पर छोड कर चला जाता है। मल्लिका एक बार फिर इस घर की चारदिवारी में अकेली रह जाती है। नाटक यहीं समाप्त होता है।

कलाकारों में मंच पर कालिदास और मल्लिका की भूमिका में क्रमशः अगस्त्य हार्दिक नागदा और हर्षिता शर्मा ने अपने अभिनय से दर्शकों का मन मोह लिया। मातुल की भुमिका में उमंग सोनी, विलोम की भुमिका में अरशद कुरैशी, अंबिका की भुमिका में उर्वशी कंवरानी, राजकुमारी प्रियंगुमंजरी की भुमिका में रिया नागदेव व निक्षेप के किरदार में यश जैन ने अपने अभिनय की छाप छोड़ी। राजप्रासाद से आये आगन्तुक में रंगीनी और संगीणी की भूमिका में क्रमशः नेहा श्रीमाली संगिनी और ख़ुशी नेगी, दन्तुल तथा अनुस्वार की दोहरी भूमिका में दिव्यांश डाबी और अनुनासिक की भूमिका में पार्थ सिंह चूंडावत ने अभिनय किया।

वहीं मंच पार्श्व में संगीत संयोजन - यश शाकद्वीपीय, संगीत संचालन - रेखा सिसोदिया, प्रकाश रचनाकार और संचालन - अशफ़ाक़ नूर खान पठान, रूपसज्जा और वस्त्र विन्यास - योगीता सिसोदिया, मंच निर्माण - मोहम्मद रिज़वान मंसूरी, मंच सहायक - धर्मेश प्रताप सिंह, हर्ष दुबे, चक्षु सिंह, कुशाग्र भाटिया, आषाढ़ की पेंटिंग - आँचल गांधी, फोटोग्राफ़ी - फ़सीह ख़ान ने भी प्रस्तुति को सफल बनाने में अतुलनीय कार्य किया।

पोस्टर विमोचन

नाटक की समाप्ती के बाद कलाकारों ने अपने आगामी नाटक - ‘‘ऑक्सिजन’’ के पोस्टर का भी विमोचन किया गया। यह नाटक थिएटरवुड कम्पनी के संस्थापक अशफ़ाक़ नूर खान पठान द्वारा लिखित व उन्हीं के द्वारा निर्देशित होगा।

कार्यक्रम संयोजक

अश्फाक नुर खान पठान

नाट्यांश सोसायटी ऑफ ड्रामेटिक एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स


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