वीर- वीरांगनाओं वाले प्रदेश राजस्थान के 14वें मुख्यमंत्री के रूप में भजनलाल शर्मा ने जीवन के 56वें पड़ाव पर 15 दिसंबर को शपथ ली। करीब 33 वर्ष बाद प्रदेश को संघ पृष्ठभूमि में दीक्षित ब्राह्मण मुख्यमंत्री मिला है। जिन्हें राजनीति और संगठन में 35 वर्ष का कार्यानुभव है। शर्मा 2023 के चुनाव में सांगानेर सीट से पहली बार विधायक बने हैं। एक मध्यम वर्गीय परिवार तथा जमीन से जुड़े नेता होने से समाज के गरीब-दलित-दिव्यांग यहां तक हर वर्ग की आशाएं बढ़ गई है। राजस्थान में हर 5 साल में सरकार बदलने का रिवाज रहा है। जिसके चलते जनभावनाओं पर खरा उतरने के लिए शर्मा सरकार को संवेदनशीलता और त्वरित निर्णय व समस्याओं के निस्तारण की नीति और नीयत रखनी होगी। तभी वे राज्य में नए युग की नींव रखने के साथ अपने को भी स्थापित कर पाएंगे। यह इसलिए भी जरुरी है कि उनके पूर्ववत्ती मुख्यमंत्रियों के पास काफी लम्बा अनुभव रहा है,चाहे वह उनके ही दल की वसुंधरा राजे हो या फिर प्रतिद्वंद्वी पार्टी के अशोक गहलोत।ऐसी स्थिति में उन्हें वयोवृद्ध व युवा विधायकों -नेताओं के साथ सामंजस्य बिठाकर चलना होगा।पार्टी आलाकमान ने उन्हें इस भरोसे पर प्रतिष्ठित किया हैं कि अगले चार माह बाद होने वाले लोकसभा चुनाव में सभी 25 सीटों पर भाजपा को पुनः जीत दर्ज करवाए।यह तभी होगा जब 6 करोड़ जनता से किए वादे समय पर पूरे होंगे।
राज्य को कर्ज की स्थिति से उबारना भी उनके सामने एक बड़ी चुनौती है।आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार राज्य पर 5.59 लाख करोड़ का ऋण है। प्रतिव्यक्ति 70,848 रूपये कर्ज है।नई सरकार पर राजस्व प्राप्ति लगभग 1 लाख 14 हजार करोड़ की तुलना में खर्च 1 लाख 29 हजार करोड़ को कम करने का भी दबाव रहेगा।
घोषणा पत्र में किए गए वादे पूरे करने के लिए सम्पूर्ण मंत्रीमंडल को इच्छा शक्ति दिखानी होगी। चुनाव के दौरान बीजेपी ने जनता से 450रुपये में गैस सिलेंडर, 2.50 लाख सरकारी नौकरियां,किसानों को 12000 रु. सालाना सहयोग,छात्राओं को निशुल्क स्कूटी वितरण और केजी से पीजी तक फ्री शिक्षा सहित आमजन को महंगाई से राहत की गारंटी दी हैं। जिसे पूरा करने के लिए सरकार को कड़े निर्णय लेने होंगे। विपक्ष में रहते हुए बीजेपी ने पेट्रोल -डीजल की कीमते कम करने की बातें की थी। अब आमजन को ईंधन की कीमतों में कटौती का बेसब्री से इंतजार है। स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को निरन्तर रखना भी किसी चुनौती से कम नहीं होगा।पूर्ववर्ती गहलोत सरकार ने फ्री बिजली, राशन, चिकित्सा,चिरंजीवी बीमा, महिला पेंशन,वृद्धावस्था पेंशन, दिव्यांग पेंशन,फ्री रोडवेज यात्रा, महिलाओं को फ्री मोबाईल वितरण, महात्मा गाँधी इंग्लिश मीडियम स्कूल जैसी अनेक योजनाएं दी थी। क्या नई सरकार आमदनी से अधिक खर्च की नीति पर बढ़ेंगी? यह विचारणीय है।
20 नए जिले और 3 संभाग को मूर्त रूप देना इतना आसान नहीं - किसी नये जिले को शुरू करने में अपेक्षित आधारभूत प्रणालियों,भवन -व्यय और संरचना का आंकलन बहुत आवश्यक होता है। पर पूर्ववर्ती सरकार ने नए 20 जिले और 3 संभाग बनाने की घोषणा की और चुनावों से पूर्व सभी जिलों में विशेषाधिकारी भी नियुक्त कर दिए।अब इन नए जिलों का गठन करने और विधिवत प्रशासकीय स्वरूप में सुचारु संचालित करना सरल काम नहीं है। शर्मा सरकार को नए जिलों और संभाग के संचालन में गहन समीक्षा करनी होगी। सरकार को सियासी लाभ के लिए गठित हुए नए बोर्ड और पुराने आयोगों पर भी चिंतन करना चाहिए।राजनीतिक पार्टीयां अपने कार्यकर्ताओं और वोट-बैंक को उपकृत करने के लिए विभिन्न तरह के पैतरे अपनाती है। इसी के चलते राजस्थान में भी 15 से अधिक नए बोर्डों का गठन किया गया। क्या ये बोर्ड,आयोग प्रासंगिक है ? इन बोर्ड के माध्यम से उस वर्ग,जाति को क्या लाभ हुए। उनके आगामी विजन और व्यय को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
इसके आलावा मुख्यमंत्री शर्मा को पिछले कुछ समय से प्रदेश में बढ़ रहे हत्या, बलात्कार,चोरी,भ्रष्टाचार,पेपर लीक,जातिवाद-साम्प्रदायिक उन्माद और महिला सुरक्षा के बीच रोजगार और राज्य की आर्थिक सेहत के लिए रिफायनरी शुरू करने के लिए अविलम्ब कदम उठाने की चुनौती रहेगी। प्रदेश को भयमुक्त,चिंतामुक्त,समृद्ध, वैभवशाली, गौरवशाली व सामाजिक सौहार्द से परिपूर्ण एक विकसित-प्रदेश बनाने की दिशा में दूरदर्शी एवं योजनाबद्ध संकल्प का परिचय देना होगा।
उम्मीद करते है कि संगठन में जैसा उनका लम्बा अनुभव है, जनता के बीच व्यवहार और उनकी कार्यशैली है। उससे लगता है कि शर्मा तमाम चुनौतियों से पार पाते हुए समृद्ध एवं विकसित राजस्थान का निर्माण करेंगे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपेक्षाओं के अनुरूप विकसित भारत में अपना योगदान देंगे।