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मीरां की छवि पर पुनर्विचार की आवश्यकता

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22 Feb 25
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मीरां की छवि पर पुनर्विचार की आवश्यकता

 

उदयपुर । समाज में प्रचलित भक्तिमती मीरां की छवि पर पुनर्विचार आवश्यक है और उनकी रचनाओं को व्यापक दृष्टिकोण से समझने की जरूरत है।

यह विचार शुक्रवार को साहित्य अकादमी, नई दिल्ली और जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय मीरां महोत्सव में सामने आए।

मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित अकादमी के अध्यक्ष प्रतिनिधि प्रो. विजय बहादुर सिंह ने कहा कि मीरांबाई का जीवन चुनौतियों से भरा असामान्य जीवन था। राजप्रसाद में रहते हुए भी उन्होंने आत्मिक खोज और भक्ति का मार्ग अपनाया।

विद्यापीठ के कुलपति प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत ने कहा कि समाज में मीरां को लेकर भ्रांतियों को शोध के माध्यम से दूर किया जाना चाहिए और विश्वविद्यालयों को इसमें सक्रिय भूमिका निभानी होगी।

साहित्य अकादमी की सामान्य परिषद के सदस्य प्रो. माधव हाड़ा ने कहा कि मीरां की वर्तमान छवि जेम्स टॉड द्वारा निर्मित है, जिसे समाज अनजाने में दोहराता आ रहा है। उन्होंने मीरां के व्यापक अध्ययन की आवश्यकता जताई।

कार्यक्रम अध्यक्ष कुलाधिपति भंवरलाल गुर्जर ने कहा कि मीरांबाई के व्यक्तित्व को नए दृष्टिकोण से समझने के लिए सतत शोध किया जाना चाहिए।

भजन संध्या में गूंजे मीरां के पद

महोत्सव के अंतर्गत आयोजित भजन संध्या में मुंबई की भजन गायिका निहारिका सिन्हा ने मीरां के प्रसिद्ध पदों की प्रस्तुति दी। ‘पायोजी मैंने राम रतन धन पायो’, ‘ए री मैं तो प्रेम दीवानी’ जैसे भजनों ने वातावरण को भक्तिमय बना दिया।

राजस्थानी लोक गायक डॉ. भुट्टे खान मांगणियार और उनके समूह ने ‘पधारो म्हारे देश’, ‘निंबुड़ा’ और ‘दमादम मस्त कलंदर’ जैसे लोकगीत प्रस्तुत किए, जिससे समूचा वातावरण संगीतमय हो उठा।

भजन संध्या में बी. एन. संस्था के मंत्री महेंद्र सिंह अगरिया और प्रबंध निदेशक मोहब्बत सिंह रूपाखेड़ी सहित अनेक गणमान्यजन उपस्थित रहे।


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