उदयपुर। संस्कृत 1.5 अरब अद्भुत शब्दों का संगम है और यह कंप्यूटर की सबसे उपयोगी भाषा मानी जाती है। उन्होंने कहा कि संस्कृत के बिना इतिहास को पूर्ण रूप से समझ पाना असंभव है।
यह विचार शुक्रवार को जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय एवं अंजुमन तरक्की उर्दू, राजस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित भाषा एवं संस्कृति महोत्सव 2025 के समापन सत्र में मुख्य वक्ता प्रो. योगानंद शास्त्री ने कही। माणिक्य लाल वर्मा श्रमजीवी महाविद्यालय में "लव एंड विजडम इन अवर लाइफ" विषय पर आयोजित इस सेमिनार में संस्कृत, हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी भाषाओं के विविध पहलुओं पर विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए।
प्रो. योगानंद शास्त्री ने भाषा की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भाषा का सीधा संबंध मानवीय जीवन से है और यह व्यक्ति की पहचान को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उन्होंने उल्लेख किया कि सम्राट अशोक के समय धर्म के विरुद्ध बोलने पर दोहरे दंड का प्रावधान था। वहीं, ब्रिटिश पुरातत्वविद् अलेक्जेंडर कनिंघम के उद्धरण को साझा करते हुए उन्होंने कहा कि बिना पांडुलिपियों के शिलालेखों को पढ़ना संभव नहीं होता। प्रो. शास्त्री ने श्रीलंका, बांग्लादेश और भारत की सांस्कृतिक समानताओं को रेखांकित करते हुए कहा कि भाषा ही वह कारक है जो इन देशों को ऐतिहासिक रूप से जोड़ती है। उन्होंने संस्कृत को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया और इसके वैज्ञानिक स्वरूप की भी सराहना की।
समकालीन हिंदी साहित्य में प्रेम और सौहार्द्र : प्रो. सारंगदेवोत
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. कर्नल शिव सिंह सारंगदेवोत ने "समकालीन हिंदी साहित्य में प्रेम और सौहार्द्र" विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिकता आज विश्व की एक बड़ी चुनौती है, और भाषाओं में प्रेम व सौहार्द्र का भाव संप्रेषित करने की क्षमता होती है। भारतीय संस्कृति में चेतना को विशेष महत्व प्राप्त है, जबकि कई विकसित देश इसे नकारते हैं। उन्होंने भारतीय भाषाओं के वैश्विक महत्व को भी रेखांकित किया।
विभिन्न भाषाओं के सत्रों का आयोजन
आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ. हेमेंद्र चौधरी ने बताया कि कार्यक्रम के अंतर्गत हिंदी, संस्कृत, उर्दू और अंग्रेजी भाषा पर केंद्रित अलग-अलग सत्र आयोजित किए गए। इन सत्रों में शोध पत्र प्रस्तुत किए गए और विभिन्न विषयों पर विस्तृत चर्चा हुई। समापन समारोह में सभी भाषाओं के सेमिनारों का सार प्रस्तुत किया गया। इस संगोष्ठी ने भारतीय भाषाओं की प्रासंगिकता और उनके संरक्षण की आवश्यकता पर गहन मंथन हुआ।
इससे पूर्व समापन समारोह के प्रारंभ में मुख्य वक्ता दिल्ली से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रो योगानंद शास्त्री, दिल्ली से डॉ नरेंद्र कुमार, प्रो.श्रीनिवासन अय्यर, डीन प्रो मलय पानेरी , कार्यक्रम संयोजक डॉ हेमेंद्र चौधरी, आदि की उपस्थिति में मां सरस्वती की पूजा अर्चना कर कार्यक्रम शुरू किया गया।
कार्यक्रम का संचालन संयोजक डॉक्टर हेमेंद्र चौधरी द्वारा किया गया।
इस अवसर पर विभिन्न भाषा के प्रो कल्याण सिंह शेखावत, डॉ युवराज सिंह, डॉ कुसुमलता टेलर, डॉ शारदा वी. भट्ट , डॉ आरती जैन,, डॉ. नारायण सिंह राव,निलेश जैन , डॉ चित्रा दशोरा, ज्ञानेश्वरी राठौर, डॉ ममता पानेरी, डॉ राजेश शर्मा, डॉ पंकज रावल, शाहिद कुरेशी, मोनिका सारंगदेवोत आदि की प्रमुख उपस्थिति रही।
रश्के-तरन्नुम में राधिका चोपड़ा की सुरमयी प्रस्तुति
-संगोष्ठी के तहत ही गुरुवार शाम आयोजित संगीतमय संध्या रश्के-तरन्नुम में गायिका राधिका चोपड़ा ने अपनी सुरीली आवाज से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम में उन्होंने दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे, है कोई उम्मीद बर नहीं आती, राज़े उल्फत छुपा के देख लिया जैसी मशहूर ग़ज़लों को अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति से जीवंत कर दिया। उनकी गायकी में गहराई, नज़ाकत और शास्त्रीय संगीत का अद्भुत संगम था, जिसने महफिल को यादगार बना दिया। जब उन्होंने सरबत वो एक नज़र में मुझे पहचान गया जब गाया, तो श्रोता भावविभोर हो उठे। इस संगीतमयी संध्या ने ग़ज़ल प्रेमियों को काव्य और संगीत की मोहक दुनिया में डुबो दिया। राधिका चोपड़ा की प्रस्तुतियां श्रोताओं के दिलों में संगीत की अनमोल छाप छोड़ गईं।