उदयपुर, राज फिशरीज न्यूज़ लेटर के त्रिमासिक जून 2024 के अंक का प्रकाशन इस सप्ताह किया गया। पत्र के संस्थापक व मुख्य संपादक डॉ एल एल शर्मा, पूर्व अधिष्ठाता मात्स्यकी महाविद्यालय (एम पी यू ए टी) ने बताया कि राज फिशरीज् समाचार पत्र त्रैमासिक रूप से प्रकाशित होता है और लगातार 4 वर्ष से मत्स्य शिक्षा और जागरूकता के लिए समर्पित है। प्रकाशन का उद्देश्य राजस्थान के विशेष संदर्भ के साथ मत्स्य पालन पर वर्तमान मुद्दों/घटनाओं और दिलचस्प लेखों को शामिल करना है। इसकी सामग्री को मत्स्य वैज्ञानिकों, मत्स्य पालकों, शिक्षाविदों और छात्रों द्वारा पसंद किया और सराहा गया है। समाचार पत्रिका के नवीनतम जून अंक में उदयपुर के जलाशयों में बड़ी संख्या में मछलियों के मरने की घटनाओं के संदर्भ में विशेष संपादकीय लिखा गया है। हाल ही में उदयपुर के गंगु कुंड, नेला तालाब, रंग सागर और कुछ साल पहले एकलिंगजी के पास बाघेला तालाब बड़ी संख्या में मछलियों के मरने की घटनाएँ देखी गई हैं।
डॉ शर्मा ने बताया कि मानसून के मौसम में जलाशयों में मछलियों की मृत्यु दर कई परस्पर संबंधित कारकों के कारण हो सकती है, जिसमें गादयुक्त, गंदे अपशिष्टों का बारिश के पानी के साथ जलाशय में प्रवाहित होना, प्रकाश संश्लेषण की कमी, कम ऑक्सीजन स्तर और अन्य पर्यावरणीय परिवर्तन शामिल हैं। मानसून में पानी में प्रदूषण, जल गुणवत्ता में अचानक परिवर्तन, ऑक्सीजान की कमी, और जोरों से आकाशीय बिजली कड़कना, तापमान मे अचानक आया परिवर्तन इत्यादि इसका मूल कारण हो सकता है। की बारिश के कारण अक्सर आसपास की भूमि से जलाशयों में पानी का बहाव बढ़ जाता है, जो अपने साथ कृषि, औद्योगिक अपशिष्ट और शहरी क्षेत्रों से गाद, कार्बनिक पदार्थ और प्रदूषक ले आता है। गाद और अपशिष्टों का यह प्रवाह पानी की गुणवत्ता को काफी हद तक कम कर सकता है जिससे उन्हें सांस लेने में कठिनाई होती है। कीटनाशक, भारी धातु और कार्बनिक अपशिष्ट जैसे प्रदूषक मछलियों के लिए विषाक्त हो सकते हैं, जिससे मृत्यु दर बढ़ जाती है। अपशिष्ट में कार्बनिक पदार्थों के अपघटन से ऑक्सीजन भी खत्म हो जाती है, जिससे हाइपोक्सिक स्थिति और भी खराब हो जाती है। मानसून के दौरान, घने बादल छाए रहते हैं और सूरज की रोशनी कम हो जाती है, जिससे जलीय पौधों और शैवाल द्वारा प्रकाश संश्लेषण सीमित हो सकता है। जल निकायों में घुलित ऑक्सीजन (DO) के उत्पादन के लिए प्रकाश संश्लेषण एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। कम प्रकाश संश्लेषण का मतलब है कम ऑक्सीजन उत्पादन, जो हाइपोक्सिक या एनोक्सिक स्थितियों (कम या कोई ऑक्सीजन नहीं) में योगदान देता है। इसके अतिरिक्त, गंदे पानी के प्रवाह से प्रकाश का प्रवेश और भी कम हो जाता है, जिससे प्रकाश संश्लेषण और भी बाधित होता है। मानसून के दौरान जलाशयों में ऑक्सीजन की कमी मछलियों की मृत्यु का एक प्राथमिक कारण हो सकती है। इसमें कई कारक योगदान करते हैं: अपवाह द्वारा लाए गए कार्बनिक पदार्थों के अपघटन से घुली हुई ऑक्सीजन की एक महत्वपूर्ण मात्रा खर्च होती है। कई अन्य कारक भी मछलियों की मृत्यु में योगदान कर सकते हैं। मानसून का मौसम वयस्क मछलियों के प्रजनन का समय है और इसके लिए वे अक्सर प्रवास करती हैं जी उनके जीवन चक्र का एक महत्वपूर्ण पहलू है। हालाँकि, इस प्रवास से मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है क्योंकि मछलियाँ संकरी नहरों से ऊपर की ओर प्रवास करती हैं, वे अक्सर बाँध, नालों और अन्य मानव निर्मित संरचनाओं जैसी भौतिक बाधाओं में फंस जाती हैं। संकरी, तेज़ बहने वाली नहरों में बहता जल मछलियों के लिये शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण भी हो सकता है, जिससे उन्हें चोट लग सकती है या मृत्यु हो सकती है।
सह संपादक डॉ सुबोध शर्मा ने बताया कि मछली का अवैध शिकार और मछली पकड़ने की अपारंपरिक प्रथाओं का उपयोग मछली की आबादी को काफी कम कर सकता है। मानसून के मौसम में सिल्वर कार्प जैसी प्रजातियों पर बिजली कड़कने और तूफानों के बाद सीमेंट से बने तालाबों में रखे गए वयस्क सिल्वर कार्प में असमायिक मृत्यु देखी गयी है। बिजली गिरने से उत्पन्न आघात तरंगें तलछट में फंसी गैसों को भी छोड़ सकती हैं, जो संभावित रूप से विषाक्त स्थिति पैदा कर सकती हैं। उन्होंने बताया कि नियमित रूप से ऑन लाइन विधि से पत्र का प्रकाशन किया जा रहा है। इस बार के पत्र में फ़िशिंग चाइम्स के संस्थापक डॉ जे वी एच दिक्षितुलू को श्रधा स्वरूप मत्स्यकी क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए एक विशेष आलेख छापा गया है। साथ ही इस अंक में भगवान् विष्णु जी के मतस्यावतार पर रोचक आलेख, राजस्थान के लिये उपयुक्त सघन मत्स्यकी पर प्रो वी एस दुर्वे का आमंत्रित अलेख, कैंपस न्यूज़ में मत्स्यकी संस्थानो की उल्लेखनीय गतिविधियों कि झलक, पूर्व संयुक्त निदेशक मत्स्य विभाग श्री सी एस चौधरी सहित युवा मत्स्य वैज्ञानिको के बायो डाटा, सेमिनार संगोष्ठियों के समाचार और मत्स्यकी विषय की नव प्रकाशित पुस्तकों और उल्लेखनीय शोध पत्रों की जानकारी भी उपलब्ध करवाई गयी है। समाचार पत्र की सॉफ्ट कॉपी संपादक मंडल से एच ई टी एम पी यु ऐ टी एट जी मेल से ई मेल द्वारा भी प्राप्त की जा सकती है।