भारत अब सिर्फ एक ‘बाजार’ नहीं, बल्कि वैश्विक रणनीतियों का ‘मार्गदर्शक’ बनता जा रहा है – इसका नवीनतम उदाहरण है अदाणी पोर्ट्स द्वारा नॉर्थ क्वींसलैंड एक्सपोर्ट टर्मिनल (NQXT) को दोबारा अपने पोर्टफोलियो में शामिल करने का फैसला। 2.4 अरब डॉलर के इस अधिग्रहण में नकद लेन-देन नहीं होगा, बल्कि शेयर ट्रांसफर के ज़रिए यह सौदा होगा जिससे प्रमोटर की हिस्सेदारी 2.12% बढ़ेगी।
यह अधिग्रहण अपने आप में केवल एक कारोबारी सौदा नहीं है, बल्कि भारत की एक ऐसी दूरदर्शी नीति का हिस्सा है जिसमें बंदरगाहों को भू-राजनीतिक व आर्थिक शक्ति के केंद्र के रूप में देखा जा रहा है। यह टर्मिनल ऑस्ट्रेलिया के बोवेन और गैलीली कोल माइंस से जुड़ा है और इसके ज़रिए भारत और चीन जैसे एशियाई देशों तक ऊर्जा व संसाधनों का प्रवाह होता है। भविष्य में यह ग्रीन हाइड्रोजन जैसे ईंधनों के निर्यात में भी अहम भूमिका निभा सकता है।
गौरतलब है कि यही टर्मिनल 2011 में अदाणी समूह ने खरीदा था, लेकिन 2013 में घरेलू विस्तार के लिए इसे प्रमोटर को सौंप दिया गया था। अब, भारत की वैश्विक ताकत को ध्यान में रखते हुए, यह पुनः रणनीतिक रूप से अधिग्रहित किया गया है। यह कदम भारत को उन देशों में मजबूती देता है जहां व्यापारिक हित मजबूत हैं – अब अदाणी पोर्ट्स के पास 19 बंदरगाह हैं, जिनमें 4 विदेशों में – इज़राइल, श्रीलंका, तंज़ानिया और अब ऑस्ट्रेलिया।
जब पनामा जैसे पोर्ट्स में ब्लैकरॉक जैसी कंपनियां अरबों डॉलर निवेश कर रही हैं, तब अदाणी पोर्ट्स का यह कदम भारत को उस वैश्विक पोर्ट पावर गेम में निर्णायक भागीदार बनाता है।
ऑस्ट्रेलिया में पहले से ही चीन का 9 अरब डॉलर से अधिक निवेश है। ऐसे में भारत की मज़बूत उपस्थिति वहां केवल प्रतिस्पर्धा नहीं, बल्कि ऊर्जा सुरक्षा, कच्चे माल की सुनिश्चितता और हरित भविष्य के लिए रणनीतिक दांव है। यह अधिग्रहण भारत की स्थानीय से वैश्विक बनने की सोच का स्पष्ट संकेत है – जहां भारत अब उन रास्तों को तय कर रहा है जिनसे भविष्य का वैश्विक व्यापार चलेगा।
और उन रास्तों पर, भारत का नाम – अदाणी पोर्ट्स जैसे संस्थानों के माध्यम से – दृढ़ता से अंकित होता जा रहा है।