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RSS प्रमुख भागवत के बयान पर बवाल क्यो,TRF क्या है,

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05 Dec 24
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डाॅ.चेतन ठठेरा

RSS प्रमुख भागवत के बयान पर बवाल क्यो,TRF क्या है,

जयपुर।  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के नागपुर में दिए गए तीन संतान वाले बयान को लेकर पूरे देश में बवाल मचा हुआ है विपक्षी दल इंडिया गठबंधन इसे राजनीतिक मुद्दा बनाकर अलग-अलग बयान बाजी कर रहा है लेकिन संघ प्रमुख के बयान की वास्तविकता को कोई भी विपक्षी दल का नेता बयान नहीं कर रहा है। टोटल फर्टिलिटी के सरकारी आंकड़ों के अनुसार हिंदू सिख जैन की फर्टिलिटी घाटी है और मुस्लिम फर्टिलिटी बढी है। टोटल फर्टिलिटी रेट आखिर है क्या ? और संघ प्रमुख भागवत ने तीन बच्चे पैदा करने वाला बयान क्यों दिया ? आइए इस पूरे बयान को और टोटल फर्टिलिटी क्या है भागवत की चिंता क्यों है इसे समझते हैं  ।


भारत वर्तमान में विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला देश बन चुका है। बीते कई दशकों से यह बहस होती आई है कि देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए कोई कानून बनाया जाना चाहिए। कई जगह अधिक बच्चे वाले परिवारों को सरकारी योजनाओं से वंचित करने सम्बन्धी कदम उठाने की भी बात हुई है। इन सबके बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि देश में दम्पत्तियों को 3 बच्चे पैदा करने की जरूरत है। उन्होंने इसके लिए टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) के संबंध में बात की है।

संघ प्रमुख ने क्या कहा

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने यह बयान रविवार 1 दिसम्बर, 2024 को नागपुर में एक सार्वजनिक कायर्क्रम में दिया। उन्होंने कहा, “जनसंख्या में गिरावट चिंता का विषय है। आधुनिक जनसंख्या शास्त्र कहता है कि जब किसी समाज की जनसंख्या का टोटल फर्टिलिटी रेट 2.1 से नीचे चला जाता है तो वह समाज पृथ्वी से खत्म हो जाता है, उसे कोई नहीं मारेगा। कोई संकट न होने पर भी वह समाज नष्ट हो जाता है। इस प्रकार अनेक भाषाएँ और समाज नष्ट हो गये।

उन्होंने आगे कहा, “TFR 2.1 से नीचे नहीं जाना चाहिए, हमारे देश की जनसंख्या नीति 1998 या 2002 में तय की गई थी। लेकिन इसमें यह भी कहा गया है कि किसी समाज का TFR 2.1 से कम नहीं होनी चाहिए।  इन्सान जन्म नही ले सकता, इसलिये हमे दो से ज्यादा तीन की जरुरत है यही जनसंख्या विज्ञान कहता है।”


संघ प्रमुख भागवत इस बयान को लेकर देश भर मे सियासत होने लगी है औरअसदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस तथा कांग्रेस के सहयोगी गठबंधन दल  सपा ने विरोध जताकर बयान बाजी कर रहे हैं और इसे गलत बता रहे हैं इस बयान पर राजनीति कर रहे हैं लेकिन यह विपक्षी दल के नेता अपने बयानों में यह कहीं भी उल्लेख नहीं कर रहे हैं कि जनसंख्या नियंत्रण का कानून सब पर लागू हो जिसमें मुस्लिम समुदाय भी हो लेकिन विपक्षी दल का एक भी नेता मुस्लिम समुदाय का नाम नहीं ले रहा है इससे उनकी मंशा साफ जाहिर है कि मुस्लिम समुदाय को छोड़कर अन्य धर्म की आबादी नहीं बढे ?  हालाँकि, संघ प्रमुख  का यह बयान किसी राजनीतिक मुद्दे को लेकर नहीं था। RSS मुखिया मोहन भागवत ने इस बयान में जो चिंता जताई है, वह जायज भी है और उसकी पुष्टि खुद भारत सरकार के आँकड़े करते हैं।


भारत की वर्तमान में जनसँख्या 140 करोड़ से अधिक है। ऐसे में यदि को अधिक बच्चे पैदा करने सम्बन्धी बात करे तो यह काफी गलत लगती है। लेकिन यह तर्क पर 100% खरा है और जिन देशों ने समय रहते इस पर एक्शन नहीं लिया, वह आज बड़ी समस्याओं में घिर चुके हैं। भारत में यह समस्या समझने के लिए पहले आंकड़ो से समझते हैं।

क्या कहते हैं आँकड़े, टोटल फर्टिलिटी(TRF)क्या है 

जिस टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) की बात संघ प्रमुख ने की वह जनसंख्या वृद्धि का एक प्रमुख संकेतक है। 15 से 49 वर्ष की कोई महिला इन वर्षों में कितने बच्चों को जन्म देगी, वह TFR कहलाता है। देश भर की इस आयु की महिलाओं द्वारा जन्म दिए गए बच्चों की संख्या का औसत निकाला जाए तो राष्ट्रीय TFR मिलता है।इससे यह भी पता चलता है कि भविष्य में सामाजिक और आर्थिक रूप से देश की क्या स्थिति होगी और उसकी जरूरतें क्या होगीं। 


भारत में टोटल फर्टिलिटी रेट जानने के लिए सरकार एक सर्वे करवाती है। यह सर्वे 1990 के दशक से हो रहे हैं। यह नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) के नाम से जाना जाता है।
अब तक इसके 5 सर्वे हो चुके हैं। सबसे नया सर्वे 2019-20 के बीच किया गया था। इस सर्वे के अनुसार, वर्तमान में देश का TFR 1.99 है। यह आँकड़ा चिंता का विषय इसलिए है क्योंकि यह उस स्तर से कम है, जितना यह होना चाहिए। जनसंख्या विज्ञानियों के अनुसार, किसी भी समाज का औसत TFR 2.1 होना चाहिए।


यदि किसी समाज का TFR 2.1 होगा तभी वह अपनी वर्तमान जनसंख्या बरकरार रख पाएगा। इस रिप्लेसमेंट लेवल TFR कहते हैं। यदि यह आँकड़ा इससे नीचे जाता है तो जनसंख्या आगामी समय में घटती जाएगी। भारत में यह आँकड़ा 2.1 से नीचे आ चुका है। ऐसे में यह चिंता का विषय होना चाहिए।

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी यही चिंता जताई। भारत से संबंधित आँकड़ों को गहराई से देखे तो और भी चिंताजनक तस्वीर सामने आती है। आँकड़े दिखाते हैं कि मुस्लिमों को छोड़ कर देश के किसी भी धर्म की महिलाओं का रिप्लेसमेंट लेवल TFR 2.1 नहीं है।

ऐसे समझे TRF

1990 के दशक में उदारीकरण और शिक्षा का प्रचार-प्रसार बढ़ने के कारण लगातार देश में सभी समाज में तेजी से TFR में गिरावट आई है। इसका असर यह है कि हिन्दू, सिख और जैन धर्म 2 से नीचे आ चुके हैं।
 देश के TFR में 1992-93 से अब तक 41% की कमी आ चुकी है। वर्तमान में मुस्लिमों का ही देश में TFR 2.1 के स्तर से ऊपर है। उनका TFR वर्तमान में 2.36 है।

जापान, कोरिया से समझे TRF

घटता TFR वर्तमान में जापान, कोरिया, चीन समेत तमाम पश्चिमी देशों की समस्या है। जापान और कोरिया में यह समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है। कोरिया में वर्तमान में TFR 0.7 है। यानी औसतन एक महिला एक भी बच्चे को जन्म नहीं दे रही है। यह विश्व में सबसे कम है। कोरिया ने इस समस्या से लड़ने के लिए पुरुषों की पेड छुट्टियों में तक बढ़ोतरी की है।
इसके अलावा इस छुट्टी की अवधि 90 दिन से 120 दिन कर दी है। सरकार ने यह भी फैसला लिया है कि जिन भी घरों में 1 वर्ष के कम की आयु के बच्चे हैं, उन्हें ₹63,500/माह देगी। वहीं 2 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों के घरों को सरकार ने ₹42000 से अधिक देने की घोषणा भी की है। कम TFR के चलते कोरिया की जनसंख्या भी घटने लगी है। उसकी जनसंख्या 2018 में 5.18 करोड़ थी जो कि अब घट कर लगभग 5.16 करोड़ हो गई है। कोरिया को चिंता है कि यदि उसकी इसी तरह जनसंख्या घटती रही तो उसे राष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर काम करने वाले लोगों तक की समस्या झेलनी पड़ेगी। कोरिया के जैसे ही हाल जापान का है।

जापान के पूर्व प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के एक वरिष्ठ सलाहकार ने हाल ही में कहा था कि यदि जापान में जन्म दर नहीं सुधरी तो देश एक दिन गायब हो जाएगा। जापान का TFR 1.26 है। यह लगातार घटता जा रहा है। इस घटते TFR के चलते जापान की लगभग 33% जनसंख्या अब 65 वर्ष या उससे अधिक है। जापान को इसके चलते श्रमिक समस्या से भी जूझना पड़ रहा है।

जापान की सरकार ने भी इसको लेकर कई कदम उठाए हैं। चीन का भी यही हाल है। चीन ने समस्या को भांपते हुए 1979 में लगाया गया एक बच्चा नियम 2016 में हटा दिया था। हालाँकि, इसके बाद भी चीन की जनसंख्या पिछले 2 साल से घट रही है।

संघ  प्रमुख  भागवत का बयान इसलिए..

यदि इन सब देशों के उदारहण को देखा जाए तो संघ प्रमुख की बात समय से पहले दी गई चेतावनी लगती है। संघ प्रमुख के बयान को खारिज करने वालों को भी यह उदाहरण देखने चाहिए। भारत भी समस्या रहते अगर चेत जाता है तो उसे ना आगे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिंता करनी होगी और ना ही उसे बूढ़ी होती जनसंख्या का दंश झेलना पड़ेगा।


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