GMCH STORIES

नर से नारायण बनने के लिए जागृत करनी होगी आत्मज्योति-हरीशमुनिजी म.सा. 

( Read 2959 Times)

04 Aug 24
Share |
Print This Page

नर से नारायण बनने के लिए जागृत करनी होगी आत्मज्योति-हरीशमुनिजी म.सा. 

 

 कीचड़ में कमल की तरह खिलने वाले का संसार में आना सार्थक- हितेशमुनिजी म.सा. 

 अम्बाजी के अंबिका जैन भवन में पूज्य मुकेशमुनिजी म.सा. के सानिध्य में चातुर्मासिक प्रवचन 

अम्बाजी, परमात्मा महावीर ने हमारी आत्मचेतना को जागृत करने का कार्य किया। प्राणी का मन अशांत होने पर सारा जगत अशांत हो जाता है। कषाय रूपी अग्नि में मनुष्य का जीवन जलने के साथ संसार भी जलने लगता है। क्रोध कभी कषाय को जड़ से सूखने नहीं देता है। कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी मन को शीतल रखने के साथ गुस्से पर नियंत्रण रखना चाहिए। ये विचार शुक्रवार को पूज्य दादा गुरूदेव मरूधर केसरी मिश्रीमलजी म.सा., लोकमान्य संत, शेरे राजस्थान, वरिष्ठ प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्रीरूपचंदजी म.सा. के शिष्य, मरूधरा भूषण, शासन गौरव, प्रवर्तक पूज्य गुरूदेव श्री सुकन मुनिजी म.सा. के आज्ञानुवर्ती युवा तपस्वी श्री मुकेश मुनिजी म.सा ने श्री अरिहन्त जैन श्रावक संघ अम्बाजी के तत्वावधान में अंबिका जैन भवन आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि ज्ञानीजन कहते है कि जो दिन व रात बीत गए वह वापस नहीं आएंगे यानि जो समय बीत जाता वह लौटकर नहीं आता इसलिए जो समय मिला है उसका अधिकाधिक सदुपयोग कर मानव जीवन को सार्थक बनाना चाहिए। धर्मसभा में सेवारत्न श्री हरीश मुनिजी म.सा. ने कहा कि आत्मशुद्धि होने पर व्यक्ति नर से नारायण बन सकता है। हमे बाहर के प्रकाश को छोड़ भीतर के प्रकाश को देखना होगा। जो अपने भीतर झांक आत्मज्योति जागृत करने में सफल हो जाता है वह नर से नारायण बन सकता है। जिनवाणी हमे आत्मचिंतन की प्रेरणा व मार्ग प्रदान करती है। जिनवाणी को आत्मसात करने वाले का जीवन सफल बनता है। उन्होंने जैन रामायण का वाचन करते हुए विभिन्न प्रसंगों का वाचन किया। मधुर व्याख्यानी श्री हितेश मुनिजी म.सा. ने कई बार मन में यह सवाल आता है कि संसार सार है या असार है। कई ज्ञानी कहते है संसार में बहुत सार है लेकिन हमे ज्ञान ग्रहण करना आना चाहिए। कीचड़ में कमल की तरह रहने वाला ज्ञानी होता है ओर उसके लिए संसार में आना सार्थक हो जाता है। संसार के सार को ग्रहण कर लिया तो नर से नारायण बन सकते है। उन्होंने सुखविपाक सूत्र का वाचन करते हुए बताया कि किस तरह गौतमस्वामी परमात्मा महावीर से सुबाहुकुमार के पूर्व भव का वर्णन जानते है। धर्मसभा में प्रार्थनार्थी श्री सचिनमुनिजी म.सा. ने कहा कि जैन सूत्रों में जिस तरह मानव जन्म पाने के लिए सरल ओर विनीत स्वभाव आवश्यक बताया गया है,उसी तरह मानव जन्म पाकर उसमें प्रगति व उन्नति के लिए, मानवता व मानवीय गुण धारण करने के लिए भी सरलता आवश्यक बताई गई है। सरलता से मानव की आत्मा शुद्ध रहती है ओर सरल प्रकृति वाला मरकर भी दुर्गति में नहीं जाता है। धर्मसभा में युवा रत्न श्री नानेश मुनिजी म.सा. का भी सानिध्य प्राप्त हुआ। अतिथियों का स्वागत श्रीसंघ के द्वारा किया गया। धर्मसभा का संचालन गौतमचंद बाफना ने किया। चातुर्मासिक नियमित प्रवचन सुबह 9 से 10 बजे तक हो रहे है।

 चातुर्मास में प्रवाहित होने लगी तप त्याग की धारा 

चातुर्मास में मुनिवृन्द की प्रेरणा से तप त्याग की धारा भी निरन्तर प्रवाहित हो रही है। धर्मसभा में शुक्रवार को सुश्रावक पवनकुमार मादरेचा ने सात उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। कई श्रावक-श्राविकाओं ने आयम्बिल, एकासन, उपवास तप के प्रत्याख्यान भी लिए। चातुर्मास के विशेष आकर्षण के रूप में 15 अगस्त को द्वय गुरूदेव श्रमण सूर्य मरूधर केसरी प्रवर्तक पूज्य श्री मिश्रीमलजी म.सा. की 134वीं जन्मजयंति एवं लोकमान्य संत शेरे राजस्थान वरिष्ठ प्रवर्तक श्री रूपचंदजी म.सा. ‘रजत’ की 97वीं जन्म जयंति समारोह मनाया जाएगा। इससे पूर्व इसके उपलक्ष्य में 11 से 13 अगस्त तक सामूहिक तेला तप का आयोजन भी होगा। रविवार को दोपहर 2.30 से 4 बजे तक धार्मिक प्रतियोगिता के तहत 64 श्लांधनीय पुरूषों के नाम पर प्रश्नपत्र होगा। चातुर्मास अवधि में प्रतिदिन दोपहर 2 से 4 बजे तक का समय धर्मचर्चा के लिए तय है। 

 प्रस्तुतिः निलेश कांठेड़
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन, भीलवाड़ा, मो.9829537627


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories :
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like