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साहित्य में निरंतर साधना बुलंदी का सशक्त माध्यम- भरत चन्द्र शर्मा

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22 Mar 25
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साहित्य में निरंतर साधना बुलंदी का सशक्त माध्यम- भरत चन्द्र शर्मा

बांसवाड़ा | साहित्य जगत के राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त जाने-माने साहित्यकार, समालोचक और विभिन्न पुरस्कारों की ज्यूरी के सदस्य भरत चंद्र शर्मा ने कहा कि कविता भावों की वह अभिव्यक्ति है जो व्यक्ति और समाज के बीच हर युग में समन्वय सेतु का कार्य करती रही है । उन्होंने कहा है कि रचना धर्मिता मानव मात्र का ईश्वर प्रदत्त उपहार है इसमें निरंतर साधना से ही बुलंदी को छुआ जा सकता है।
शर्मा विश्व कविता दिवस पर उजास परिवार के तत्वावधान में शुक्रवार रात्रि में आयोजित साहित्यिक संगोष्ठी और कविता विषय पर समालोचना विषयक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। शर्मा ने कविता के अपने युगो पुराने सफल और उपलब्धियां से भारी यात्रा को रेखांकित किया और कहां की देश की आजादी हो या सनातन संस्कृति की स्वाभिमान से जुड़ी धरोहर कविता ने सदैव पाथेय प्रदान किया है। सामाजिक कार्यकर्ता अतीत गरासिया ने संस्कृतनिष्ठ सरस्वती वंदना प्रस्तुत कर आध्यात्मिक वातावरण निर्मित किया।
काव्य विधा विषय केंद्रित साहित्यिक समारोह में जीजीटीयू कुलगीत रचयिता कवि हरीश आचार्य ने ईश्वरीय सृजित प्रकृति और काव्य प्रकृति का अन्तर्लय संबंध स्थापित करते हुए " सृष्टि को कविता की दृष्टि से जब भी तुम देखोगे, ऐसा लगेगा कि आकाश से आज ही बरसी कविताएँ " जैसा आह्वान करते हुए " देती आई हैं सदियों से नफ़रत को चाहत का रूप, रेगिस्तान में दरिया बन कर अक्सर बहती कविताएँ " जैसा काव्य नाद भी किया। वरिष्ठ दोहा निष्णात शायर सईद मंज़र ने काव्य के प्रति सहज वैश्विक मानवीय रुझान को दर्शाते हुए " भक्तों की कोई बात कभी टालता नहीं, टल जाए जो मंज़र वो दुआ हो नहीं सकती " जैसे शायराना उदगार व्यक्त किए ।
शिक्षाविद साहित्यकार एवं मोटिवेशनल स्पीकर प्रकाश पंड्या ने कहा कि कविता केवल आप से ही उत्पन्न हो ऐसा आवश्यक नहीं।
*आह,वाह,चाह और निगाह पढ़ने का सामर्थ्य ही कविता है।* उन्होंने कविता की लम्बी यात्रा को प्रदर्शित करता गीत अंजुरी तुम, तुम समन्दर , तुम नभ की निहारिका.., उज्जयिनी तुम, तुम अयोध्या, तुम हमारी द्वारिका...पढ़ा।
शिक्षाविद साहित्यकार अमिता शर्मा ने ‘जिस बशर को  जितना हंसता देखा, उतना ही दुखी पाया इस जमाने में।’ धर्मिष्ठा पंड्या ने ‘नारी कविता है या कविता की नारी, यह कौन जान पाया है रीत न्यारी, नारी का श्रृंगार जैसे आभूषण है, वैसे छंद अलंकार से सजी कविता है।’ प्रस्तुत कर खूब तालियां बटोरी। कपिल मनतेज ने दुनिया की दुनियादारी का अजब चलन हो गया प्रस्तुत की। उजास परिवार संयोजक और विश्व कविता दिवस काव्य गोष्ठी के सूत्रधार भँवर गर्ग ‘मधुकर’ ने ‘कौन किसी को राह दिखाए? अपने संग दूजों का हित भी साधे वो कवि कहलाता है।’ कविता द्वारा कवि धर्म को रेखांकित किया।

इस अवसर पर राष्ट्रवादी व्यक्तित्व भुवन पंड्या ने ग्राम्य जीवन की कविता के साथ ही शिक्षाविद हरिकृष्ण आचार्य, मधुर गीतकार तारेश दवे, डॉ. दीपिका राव, नैतिक कलाल की एक से बढ़कर प्रस्तुतियों ने सबका मन मोह लिया वहीं विट्ठल डी. आचार्य, पूजा तारेश दवे ने भी अपनी कला का परिचय दिया। संचालन कोकिल कंठी कवयित्री सारिका भुवन त्रिवेदी ने किया।
 


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