GMCH STORIES

वागड़ का प्रयागराज बेणेश्वर

( Read 479 Times)

07 Feb 25
Share |
Print This Page
वागड़ का प्रयागराज बेणेश्वर

दुनिया भर में बेणेश्वर एक ऐसा स्थान है जो अपनी कई अलौकिक विलक्षणताओं भरे इतिहास की वजह से ख़ासी पहचान रखता है। यह ने केवल एक टापू के रूप में बल्कि बेणेश्वर लाखों लोगों के हृदय में अंकित है।

राजस्थान के दक्षिणांचल में बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों के मध्य माही, सोम और जाखम नदियों के पावन जल से घिरा बेणेश्वर टापू लोक आस्थाओं का वह महातीर्थ है जहाँ हर साल माघ माह में दस दिन का विराट मेला भरता है जिसमें कई लाख लोगों की आवाजाही के कारण इसे इस अंचल के कुंभ की ही तरह मान्यता प्राप्त है।

कुल 144 साल बाद आए प्रयागराज महाकुंभ की वजह से इस बार बेणेश्वर के त्रिवेणी जल संगम तीर्थ में श्रृद्धालुओं की आवाजाही अधिक रहने का अनुमान है। विपन्नता और अन्य विषम परिस्थितियों के कारण जो लोग प्रयागराज नहीं जा पाए हैं वे बेणेश्वर कुंभ में अपनी आस्था की डुबकी लगाकर पुण्य पाएंगे।

बेणेश्वर धाम बांसवाड़ा जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर अवस्थित है जहाँ माघ शुक्ल एकादशी अर्थात 8 फरवरी, शनिवार से दस दिन का विशाल मेला भरेगा। मुख्य मेला माघ पूर्णिमा 12 फरवरी को भरेगा। मेले का समापन कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि के दिन 17 फरवरी को होगा। इस मेले का शुभारंभ एकादशी को संत मावजी महाराज की परम्परा के नवें महंत एवं बेणेश्वर पीठाधीश्वर गोस्वामी श्री अच्युतानन्द जी महाराज द्वारा मन्दिर पर ध्वजारोहण से होगा।

लोक लहरियों पर थिरकता है आस्था का महासागर

मेले में वागड़ अंचल से तो लाखों लोग भाग लेते ही हैं, देश के विभिन्न हिस्सों ख़ासकर मध्यप्रदेश और गुजरात जैसे पड़ोसी राज्यों से भी बड़ी तादाद में मेलार्थी भाग लेते हैं।

इसमें पवित्रा जल संगम तीर्थ में स्नान, अस्थि विसर्जन, देव दर्शन, मेला बाजारों से खरीदारी, मनोरंजन आदि के साथ वह सब कुछ होता है जो देश के बड़े-बड़े मेलों में होता है। लोक सांस्कृतिक आयोजनों के साथ ही आंचलिक परम्पराओं और धार्मिक तथा सामाजिक परिपाटियों का होने वाला दिग्दर्शन भी श्रृद्धा से अभिभूत कर देता है।

करीब तीन सौ वर्ष से संत मावजी महाराज और बेणेश्वर की गाथाएं सुनाने वाले इस मेले में लोक संस्कृति, धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं तथा दक्षिणांचलीय पुरातन व सम सामयिक लोक लहरियों का जीवन्त प्रतिदर्श देखने को मिलता है। जिसे दक्षिणांचल के लोकजीवन और तमाम परम्पराओं की सम्पूर्ण थाह पानी हो, उसके लिए बेणेश्वर मेला, उसकी परंपराएं और रोचक गाथाएं अपने आप में काफी हैं।

जय-जय-जय बेणेश्वर धाम

संत मावजी के अनुयायियों और भक्तों के लिए बेणेश्वर दूसरे सारे तीर्थों से बढ़कर है जहाँ मानते हैं कि मेले में भागीदारी से साल भर सुकून का अहसास होता रहता है। यही कारण है कि परिवार सहित लोग यहाँ आते हैं और प्रकृति, नदियों, देव धामों और जन गंगा के बीच अपने आपको पाकर आनंद का अनुभव करते हैं। जय-जय व्हाला मावजी, जय-जय-जय बेणेश्वर धाम।


Source :
This Article/News is also avaliable in following categories :
Your Comments ! Share Your Openion

You May Like