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लालीवाव मठ में सर्वपितृ मोक्ष के लिए वृहत् अनुष्ठान जारी,

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23 Nov 24
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लालीवाव मठ में सर्वपितृ मोक्ष के लिए वृहत् अनुष्ठान जारी,

देश के विभिन्न तीर्थों से संस्कृत एवं वेद विद्वानों का अपूर्व समागम

आस्था जगा रहा है 108 भागवत मूल पारायण का क्रम,

पोथी पूजन और तर्पण की पुरातन परम्परा का हो रहा अपूर्व दिग्दर्शन

बाँसवाड़ा,सहस्राब्दी से धर्म-अध्यात्म की अलख जगा रहे, सिद्ध तपस्वियों के धाम लालीवाव मठ में चल रहे विराट धार्मिक महोत्सव में देश के विभिन्न हिस्सों से आए साधु-संतों और साधक-साधिकाओं एवं अनुष्ठानी यजमानों के साथ ही श्रृद्धालुओं का ज्वार उमड़ा हुआ है।

दिवंगत आत्माओं की मुक्ति के लिए बड़ी संख्या में यजमान परिवारों द्वारा पूर्वाह्न काल में विभिन्न अनुष्ठानों में हिस्सा लिया जाकर विधि विधान से भागवत पोथी पूजन के उपरान्त पितरों के नाम दुग्ध, दर्भ, तिल इत्यादि से मंत्रों के नाम जलांजलि एवं तर्पण का विधान किया जा रहा है। इसके उपरान्त यज्ञ एवं आरती का क्रम बना हुआ है।

शुक्रवार को महोत्सवी अनुष्ठानों के आचार्य ब्रह्मर्षि पं. दिव्यभारत पण्ड्या के आचार्यत्व में यजमान परिवारों द्वारा भागवत पोथी पूजन के उपरान्त श्रीधाम वृन्दावन से आए जाने-माने भागवताचार्य आचार्य योगेन्द्र मिश्र, पं. बृजबिहारी उपाध्याय एवं पं. भक्तराज ने द्वितीय दिवस के भागवत पारायण विधान का शुभारंभ किया।

इसमें देश के विभिन्न हिस्सों से आए भागवत के विद्वानों द्वारा 108 सस्वर भागवत पारायण श्रृद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। भागवत पारायण के विस्तृत पाण्डाल में आकर परिक्रमा करने के लिए श्रृद्धालुओं के समूह उमड़ने लगे हैं। महोत्सव आयोजन समिति के पदाधिकारियों एवं स्थानीय संत-महात्माओं तथा विभिन्न धार्मिक संस्थाओं के पदाधिकारियों एवं प्रतिनिधियों ने भागवत पारायण पाण्डाल की परिक्रमा की।

भागवत पारायण में अपने-अपने पितरों के छायाचित्र सम्मुख रखकर उनका स्मरण कर भागवत पोथी का पूजन करते हुए महाविष्णु से इनके मोक्ष की कामना से प्रार्थना का क्रम जारी है।

भागवत पारायण का यह महानुष्ठान न केवल यजमानों परिवारों के पितरों बल्कि क्षेत्र भर की उन सभी दिवंगत आत्माओं की मुक्ति के लिए हो रहा है, जिनकी कोरोना काल में तथा अकाल मृत्यु के कारण देह छूट गई है तथा इनमें से कइयों की उत्तर क्रिया भी विधि विधान से नहीं हो पायी है।

इस दृष्टि से यह सर्वमंगलकारी अनुष्ठान है जो दिवंगतों की मुक्ति और उनके पितृ ऋण से उऋण होने के लिए वर्तमान पीढ़ी द्वारा किया जा रहा है और जिसका पुण्य लाभ आने वाली पीढ़ियों तक को कल्याणकारी दिशा-दृष्टि प्रदान करता रहेगा।


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